मदद
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"बहन एक कटोरी चीनी तो देना " पड़ोस की भाभी पिछले एक महीने से रोज ही सुबह कोई न कोई चीज एक कटोरी भर मांग ही लेती थी।
पत्नी भी झट से दे देती थी। कोई समय नहीं लगाती थी कटोरी भर कर चीनी, चायपत्ती, नमक , जीरा जैसी छोटी मोटी चींजें देने में।
हमें अब ये रोज की कटोरी खलने लगी थी।
आखिर आज हमने पत्नी को टोक ही दिया।
"ये खुद सामान नहीं मँगा सकती क्या । पास ही तो बनिए की दुकान है। फ़ोन भर ही करना है !"
पत्नी ने हमें यूँ घूर कर देखा जैसे की हमने कोई बहुत गलत बात कर दी हो।
"सब कुछ होता है उनके घर में। बस कटोरी लेने के लिए यूँ ही कुछ भी मांग लेती हैं। "
"क्या मतलब !"
"पिछले महीने आईं थी तो बातों ही बातों में मांजी ने उनसे मेरी शिकायत की थी कि मैं दोपहर में बस दाल चावल बनाती हूँ । मुझे सब्जी भी बनानी चाहिए। सो बस तब से रोज कटोरी ले जाती हैं और दोपहर को कटोरी में सब्जी भर कर वापस कर जाती हैं।अच्छी तरह जानती हैं वो की सुबह से शाम मैं घर और बच्चों में कितनी व्यस्त रहती हूँ । मदद कर रहीं हैं वो ! समझे बुद्धू !"
सच में इन औरतों और इनके बीच के रिश्तों को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है !!
