मैंने किया तेरा इंतजार (भाग-2)
मैंने किया तेरा इंतजार (भाग-2)
किशोरावस्था की दहलीज़ लाँघने को तत्पर रावी के मन को सुशांत बड़ा भाया था। भैया का दोस्त बनकर ज़ब घर आया था तब रावी को वह घूँघराले बालों वाला और बड़ी बड़ी आँखोंवाला लड़का बड़ा अच्छा लगा था। दोनों कभी कभी औपचारिक बातें कर लेते थे।
तब रावी नवीँ कक्षा में थी। सुजाता आँटी उसे संस्कृत पढ़ाती थी। उन्होंने दोनों को बोलते बतियाते देख लिया था और माँ से शिकायत लगा दी थी। उन्होंने तो बढ़ा चढ़ाकर यहाँ तक कह दिया था कि रावी और सुशांत एक दूसरे का हाथ पकड़कर बैठे थे और सुशांत रावी को किस करने ही वाला था कि तभी सुजाता आँटी आ गई तो दोनों संभल गए।
जबकि हुआ ये था कि रावी का पेन गिर गया था उसे उठाने को वो और सुशांत एक साथ झुके तो दोनों के सर टकरा गए थे और दोनों को फिर हँसी आ गई थी। फिर तो माँ ने रावी का सुशांत से मिलना बिल्कुल बंद कर दिया था और भैया की दोस्ती भी खत्म।
उसके बाद उसने सुशांत से चुपके से मिलकर समझाया था कि,
अब मुझसे मत मिलना। सब हमारी दोस्ती पर शक करते हैँ। सबको लगता है कि हम आपस में प्यार करते हैँ !"
"तो.... इसमें गलत क्या है? तुम्हारे दिल में क्या है ये तो नहीं मालूम पर मैं तो तुमको प्यार करता हूँ !"
सुशांत ने जिस तरह गंभीरता से वह बात कही उसे सुनकर रावी एकदम अचंभित सी हो गई थी।
अब दोनों की सहज दोस्ती अजीब सी हो गई थी। एक दूसरे को दूर से देखते पर सामने आते ही खामोश हो जाते। रावी तो डर ही जाती थी और सुशांत भी अब ना तो उसे चिढ़ाते हुए उसकी चोटी खिंचता था।
फिर दसवीं के बाद ज़ब पापा का ट्रांसफर हो गया तो रीवा सुशांत से मिलने गई। उस दिन तो रीवा ने अपने मन की सारी बातें कह दी कि वह भी सुशांत को बहुत प्यार करती है। बड़ी होकर उसीसे शादी करना चाहती है।
बदले में सुशांत ने रीवा को चिढ़ाते हुए कहा था कि पहले बड़ी तो हो जाओ।
फिर सुशांत गंभीर होते हुए बोला था,
रीवा ! हम गरीब हैँ। तुम्हारे स्टेट्स की बराबरी नहीं कर सकते। पर मैं खूब मेहनत करूँगा और बड़ा आदमी बनकर शादी भी तुमसे ही करूँगा !"
बस यही उन दोनों की आखिरी मुलाक़ात थी।
फिर दसवीं का रिज़ल्ट वगैरह भी भैया आकर ले गए थे। फिर माँ की सख्त हिदायत कि,
सुशांत बहुत गंदा लड़का है। उससे बात मत करो !"
और भैया की नाराज़गी कि,
"मेरा दोस्त होकर मेरी बहन पर बुरी नज़र रखता है !"
शायद सुजाता आँटी की चुगली को भैया ने सच मान लिया था और उनका दिल बुरी तरह टूट गया था।
फिर अजमेर आकर रावी ने खुद को पढ़ाई में डूबा दिया था। आगे उसने किसी और से इतनी बात की भी नहीं थी। फिर मेडिकल की पढ़ाई फिर प्रैक्टिस। उड़ती उड़ती खबर सुनी थी कि सुशांत एक अच्छा वकील बन चुका था।
इस बीच भैया किसी काम से जयपुर गए तो सुशांत से मिले थे। दोनों दोस्तों के बीच गलतफहमी दूर हुई तो सुशांत ने बहुत गंभीर होकर कहा था कि,
वह रीवा से सच्चा प्यार करता है और उनदोनों के प्रेम ने कभी मर्यादा की सीमारेखा नहीं लांघी है।चाहे पूरी उम्र इंतजार करना पड़े वह शादी रीवा से ही करेगा।
ज़ब भैया ने आकर बताया था तो माँ को भी बहुत अफ़सोस हुआ कि उन्होंने सुजाता आँटी की बात पर विश्वास क्यों किया।
अब पापा ज़ब रिटायर्ड हुए तो सब वापस पुराने घर आए। अब तक अमित भैया की शादी हो चुकी थी और उनका एक दो साल का बेटा भी था जो रीवा को बहुत प्यारा था। रीवा डॉक्टर बन चुकी थी।और अब छुट्टी लेकर रावी भी आई थी।
रीवा बार बार सोचती कि शाम को सुशांत से मिलने पर क्या करेगी।कैसे बात करेगी। बड़े होने पर यह उनकी पहली मुलाक़ात होगी सोचकर रीवा एकदम अधैर्य हो रही थी।
खैर.... शाम को चिर प्रतिक्षित वह घड़ी भी आ गई ज़ब रावी को सुशांत से मिलना था।
आज सबने बड़े प्यार और सम्मान से सुशांत को घरवालों के साथ घर बुलाया था।
थोड़ी देर बाद ज़ब दोनों को एकांत मिला तो सुशांत ने रावी की आँखों में देखा तो रावी एकदम शरमाकर उसके गले लग गई।
दस सालों में पहली बार दोनों ने एक दूसरे को स्पर्श किया था।
मर्यादित व्यवहार वाले सुशांत ने इस स्थिति को ज़्यादा देर तक नहीं रहने दिया।
दोनों ज़ब नीचे आए तो छुटते ही सुशांत की माँ ने कहा कि,
"अब बहुत हो गया। अब जल्दी से अपनी बहू को हम अपने घर ले जायेंगे !"
सुनकर सब हँसने लगे।
सच..... प्यार सच्चा हो तो दो प्रेमियों को मिलने से कोई नहीं रोक सकता।

