Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

4.0  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

मैंने की खुद से शादी

मैंने की खुद से शादी

7 mins
157


मैंने की खुद से शादी

(गतांक से आगे, चतुर्थ भाग)  


रात देर से नींद लगने से मैं देर तक सोती रही थी। गहरी नींद में ही थी तब मम्मी, मुझे झिंझोड़ कर उठाते हुए कह रही थी - 

प्रिया उठ, बाहर दो समाचार चैनल वालों की गाड़ियाँ आईं हैं। (फिर उन पर व्यंग्य करते हुए) उनके विचार से, आज देश और दुनिया के लिए तेरी शादी ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। 

यह सुनते ही मैं तुरंत ही चेतन हो गई थी। मैंने मम्मी के व्यंग्य को उनका पूर्वाग्रह मान कर महत्व नहीं दिया था। मुझे लग रहा था कि मेरे तैयार होने की प्रतीक्षा चैनल वालों को करनी ही होगी। मैंने वॉशरूम में जाने की कोशिश की तो उसमें कोई, शायद मौसी थी। 

एक ही अन्य बाथरूम में गई तो मेरे भाग्य से, बुआ उसी समय उसमें से निकल रहीं थीं। मैं दौड़ कर उसमें घुस गई थी। मैं शीघ्रातिशीघ्रता दैनिक कर्मों से निवृत्त हुई थी। अपने कमरे में वापस आई तो वहाँ मौसी और बुआ भी थी। मुझे समय नहीं था कि मैं रूम खाली होने की प्रतीक्षा कर पाती। मैंने उन दोनों के सामने ही अपने वस्त्र बदलने शुरू किए थे। 

मेरा ध्यान मौसी की बात ने खींचा था वे कह रहीं थीं - प्रिया हमें तो तुम्हारी उम्र में किसी के सामने वस्त्र बदलने में लाज आती थी, आजकल तो जमाना अर्ध नग्न रहने का आया है। तुम भी कर लो अपने मन की, फिर यहाँ तो हम मायके की औरतें ही हैं। तुम्हारा कोई ससुराल तो है भी नहीं। 

मुझे लगा था, ये ‘मेरे अपने’ भी तरह तरह की बातों और शाब्दिक शूलों से सप्रयास/अनायास, मेरे हृदय को वेदना पहुँचाते रहेंगे। मैंने बुआ और उनमें होने लगी बातों से अपने कान हटाए थे। हल्का मेकअप करते हुए मुझे चैनल वालों से क्या कहना है, यह मन ही मन पुनः दोहराया था। फिर मम्मी, पापा, बुआ एवं मौसी के चरण छुए थे। मेरे अभिवादन की प्रतिक्रिया में, इनमें से किसी की भावभंगिमा उत्साहवर्धक नहीं थी। 

फिर मैं घर के दरवाजे पर आई थी। अब मेरा भाई मेरे साथ हो गया था। बाकी सब ऐसे लग रहे थे जैसे कि पास पड़ोस और चैनल वालों से मुँह छुपा रहे हैं। मुझे असाधारण होने की दिशा में बढ़ना था। मैंने स्वयं साहस बटोरा था और घर में ही मिलती उपेक्षा से, स्वयं को निराश करना उचित नहीं समझा था। 

बाहर पड़ोसियों की भीड़ लगी हुई थी। मुझे देखते ही सब के मुख से हँसी ठहाके के स्वर सुनाई पड़ने लगे थे। सरसरी दृष्टि उन पर करने से ही मैं समझ गई थी कि उनके ये हँसी/अट्टहास मेरा हास्य बनाने वाले थे। मेरे लिए उन सबके मन में तनिक प्रेम या आदर नहीं था। मनोविज्ञान की अपनी समझ से मैं जानती थी, हमारे आस पास ऐसे ही लोग अधिक होते हैं। मैंने पलक झपकते यह सब सोचा और इसे भी मन से निकाल दिया था। मुझे, मुझ पर इन हँसने वालों के मुँह बंद करने थे। मैं एक चैनल वाले रिपोर्टर एवं फोटोग्राफर की पहचान करते हुए, उनकी ओर मुखातिब हो गई थी। 

वे पहले ही तैयार थे, अतः मेरे पहुँचने पर तुरंत ही सब अपने काम में सक्रिय हो गए थे। उनमें से एक लड़की ने मेरी शर्ट पर वायरलेस स्पीकर लगा दिया था। तब रिपोर्टर ने मुझसे प्रश्न किया था - प्रिया जी आपने “खुद से शादी” का यह अनूठा “ढोंग” क्यों रचाया है?

“ढोंग” शब्द से मुझे समझ आया था, यह रिपोर्टर भी मेरा आदर नहीं कर पा रहा है। मुझे सिर्फ चटपटा समाचार बनाकर प्रस्तुत करना चाहता है। मैंने इस प्रश्न के उत्तर में मन ही मन अपना सच बताने का निर्णय किया और कहा - 

जी यह ढोंग नहीं मगर एक अनूठा काम अवश्य है। मैंने विवाह करने के बाद शोषित हो रही नारियों की दशा को जानने से, ऐसा करने का निर्णय लिया था। 

रिपोर्टर ने पूछा - क्या आप अपनी मम्मी को भी अपने पति की शोषित एक पत्नी मानती हैं?

मैंने सोचा हर बात के अर्थ अनेक होते हैं। यह रिपोर्टर वाचाल है, तुरंत ही कहने का सार ग्रहण करता है। मैंने सोचा और उत्तर दिया - 

मेरी मम्मी की मैं नहीं कहूँगी मगर यह अवश्य कहूँगी कि मेरी मम्मी की तरह की नारियों को अपना शोषित होने का आभास भी नहीं हो पाता है। हमारे समाज में पत्नी या नारी का जीवन ऐसा ही होता है, इसके लिए बेटियां अपने बचपन से ऐसी समझ के साथ ही बड़ी की जातीं हैं। 

रिपोर्टर ने पूछा - क्या आप ऐसी समझ के साथ बड़ी नहीं कीं गईं हैं या आपने समझ आने पर इस प्रकार विद्रोह किया है?

मैंने कहा - “मेरी खुद से शादी” का कारण मैंने बताया है। इसे आप विद्रोह नहीं कहिए अपितु इसे मेरी महत्वाकांक्षा कहिए। एक समस्या के समाधान की अपनी कोशिश के साथ ही, अपनी महत्वाकांक्षा में साधारण परिवार की, मैं साधारण बेटी असाधारण होना चाहती हूँ। मैंने सामान्य लड़कियों की तरह कल विवाह किया होता तो आप अपने समाचार प्रसारणों में उसे स्थान नहीं देते। 

रिपोर्टर ने पूछा - लेकिन अपनी असाधारण होने की महत्वाकांक्षा में, मानव संतति क्रम जारी रखने में आपने, अपने योगदान की संभावना से स्वयं को वंचित कर लिया है। 

‘मानव संतति क्रम’ का अर्थ समझने में मुझे कुछ क्षण लगे थे। मैंने अनुमान लगाया कि कदाचित् यह बच्चे जन्मने की बात है। यह समझ आने पर मुझे वह प्रश्न मिल गया था, जिसका उत्तर मैंने पिछली रात्रि में सोच रखा था। मैंने उत्तर देने की अपेक्षा रिपोर्टर से उलटा प्रश्न कर दिया - आपने यह कैसे समझ लिया कि मैं अपने बच्चे पैदा नहीं करूँगी?

अब चौंकने की बारी रिपोर्टर की थी। उसने पूछा - “खुद से शादी” से चर्चा मिल जाने के बाद, आप का इरादा कहीं किसी पुरुष से सामान्य विवाह करने का तो नहीं है?

मैंने अपने मुख पर आ गए अपने बालों को अपने हाथों से पीछे की ओर करते हुए कहा - जी मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है।  

अब रिपोर्टर ने हँसते हुए पूछा - क्या आपने ऐसी कोई पद्धति खोज ली है जिसमें बच्चे जन्मने के लिए, किसी नारी को पुरुष के समागम की आवश्यकता नहीं पड़ती है?

मैंने कहा - क्या आपने आईवीएफ (In Vitro Fertilization) के बारे में नहीं सुना है? मैं इस पद्धति से किसी पुरुष के समागम के बिना, नीरज चोपड़ा जी से स्पर्म डोनेशन का निवेदन इसी इंटरव्यू के माध्यम से कर रहीं हूँ। जब भी यह संभव होगा मैं इस टेस्ट ट्यूब विधि की सहायता से बच्चे को जन्म दूँगी और मानव संतति क्रम में अपना भी योगदान दूँगी। 

मेरे इस उत्तर को सुनकर हमारे आसपास लगी भीड़ के, मुझ पर हँसने के लिए खुले मुँह खुले ही रह गए थे। उनकी बत्तीसी खुली अवश्य थी लेकिन लग रहा था कि जैसे उनके मुंह से अब रोने की आवाज निकलेगी। रिपोर्टर भी असमंजस में क्या पूछूँ, यह समझ नहीं पाया तब मैंने ही आगे कहा -

आप यह भी समझ लें कि मैं और बच्चे भी पैदा करूँगी। इनके लिए मैं सुविख्यात कुछ अलग अलग पुरुषों से स्पर्म डोनेशन लूँगी और बिना सामान्य विवाह एवं बिना किसी से समागम किए, एक से अधिक सुप्रसिद्ध पुरुषों के बच्चों की माँ बनूँगी, जबकि सामान्य विवाह में कोई स्त्री प्रायः एक ही (किसी) साधारण पुरुष (पति) के बच्चों को जन्म देती है।

रिपोर्टर को शायद आवश्यकता से अधिक चटपटा मसाला मिल गया था। उसने मुझे थैंक यू कहने के बाद, अपनी टीम के साथ पैक अप करना शुरू किया था। अब मैं अपनी बारी की प्रतीक्षा करते, अन्य रिपोर्टर से मुखातिब हुई थी। मैंने उससे भी उसके प्रश्नों में इसी से मिलती जुलती बातें कहीं थीं। 

दूसरे समाचार चैनल वालों से इंटरव्यू पूरा होने तक तीसरे चैनल की टीम पहुँच गई थी। उन्हें भी इसी प्रकार का साक्षात्कार दे देने के बाद, मैंने अपने आसपास इकट्ठी हुई भीड़ की ओर, नीरज चोपड़ा के अंदाज में हाथ हिलाया था। तत्पश्चात् मैंने अपने कदम अपने घर द्वार की तरफ बढ़ा दिए थे। 

स्पष्ट है घर में सभी मेरी कही बातों को समझ गए थे। उनकी भावभंगिमा से उन्हें अब लगता प्रतीत हो रहा था कि मेरे कारनामे पर वे मन ही मन गर्व कर रहे थे। मैंने घर में एवं आसपास के लोगों को चैनल पर प्रसारित होने वाले मेरे इंटरव्यू को देखने सुनने के लिए प्रतीक्षारत छोड़ा और मैं अपने कमरे में आ गई थी। मुझे मेरे इंटरव्यू प्रसारण को देखने की कोई कामना नहीं थी। 

मैंने कमरे का दरवाजा अंदर से लॉक किया था एवं अपने पलंग पर हाथ एवं पैरों को फैलाकर पसर गई थी। कोई देख पाता तो मेरे मुख पर एक विजेता के भाव एवं होंठों पर ऐसी ही मुस्कान थी। अब मुझे देखना यह था कि -

नीरज चोपड़ा जी तक मेरी बात कैसे पहुँचती है एवं उस पर नीरज चोपड़ा जी की प्रतिक्रिया कैसी होती है?


(क्रमशः) 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy