Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

मैंने की खुद से शादी

मैंने की खुद से शादी

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मैंने की खुद से शादी

(गतांक से आगे, दूसरा भाग)  


मेरी अनूठी शादी में आए अतिथियों के कारण, सुबह से ही घर में चहल-पहल थी। मैं अनुभव कर रही थी कि यह जमघट, सामान्य विवाह वाले घरों से, कुछ अलग प्रकार का था। 

पहले मैंने अनायास मामा एवं मम्मी का वार्तालाप सुना था। मामा ने पूछा - लक्ष्मी, इस शादी से क्या अंतर पड़ेगा, ऐसी शादी के बाद भी प्रिया बैठी तो तुम्हारे ही घर में रहेगी। 

मम्मी ने उदास स्वर में कहा - भैया आप सही कह रहे हो। बेटी के विवाह कर देने से अपने दायित्व से मुक्त होने वाली अनुभूति, हमें दूर तक अनुभव नहीं हो रही है। 

मामा ने कहा - फिर क्यों यह विवाह का ढोंग रचाया जा रहा है?

मम्मी ने रो पड़ने से स्वयं को रोका था। रुआंसे स्वर में कहा था - भैया आपके दोनों बेटे ही हैं। बेटी के पिता होने की लाचारी आप नहीं अनुभव कर सकते। आजकल बड़ी हो गई बेटियां, हमारी नहीं मानती अपनी ही मनवाती हैं। 

आगे की बात सुनने का मेरा मन नहीं हुआ था। मैं वहाँ से हट गई थी। मेरे विवाह के इस शुभ दिन में, मम्मी की कही यह बात मुझे अशुभ लग रही थी। जब कि मैं एक अभूतपूर्व विशेष काम करने जा रही हूँ। मुझे दुःख हुआ कि इस पर गर्व करने के स्थान पर मेरी मम्मी, बेटी के माता-पिता होने की लाचारी दिखा रहीं हैं। 

वहाँ से हटी तो एक कमरे में मुझे मौसी एवं चाची के बीच हो रहीं बातें सुनाई पड़ीं थीं। मौसी कह रही थी - 

लक्ष्मी की बेटी, यह प्रिया तो विचित्र लड़की है। आखिर ऐसे विवाह का मतलब क्या है? इस विवाह के बाद भी प्रिया, पहले की तरह कुँवारी ही तो रह जाने वाली है। 

चाची ने हँसते हुए कहा - अपनी बहनौती को, आप स्वयं देख लो। मुझे लगता है आज वह दो रोल करेगी। पहले दूल्हे का मेकअप करके घोड़े पर बैठकर बारात के साथ आएगी। फिर मेकअप ऐसा करेगी कि आधे भाग से दुल्हन और आधे से दूल्हा दिखाई देगी। सबके सामने दुल्हन दिखाते हुए वर को वरमाला पहनाएगी। फिर दूसरी ओर से दूल्हा दिखते हुए, दुल्हन को वरमाला डालेगी। 

मौसी ने कहा - मगर वहाँ वरमाला पहनाए जाने के लिए दूसरा होगा कौन?

इस पर चाची पहले जोर से हँसी फिर कहा - प्रिया ने इसकी ट्रेनिंग ले ली है सामने वाले को वरमाला डालने का प्रदर्शन करते हुए दोनों बार स्वयं ही वरमाला पहन लेगी। आपकी और मेरी शादी में तो हमारे गले में एक-एक ही वरमाला डाली गई थी। प्रिया की तो बल्ले-बल्ले है। उसके गले में एक ही शादी से दो दो वरमाला हो जाएंगी। 

चाची के द्वारा अपनी यूँ उड़ाई जाती हँसी मुझे पसंद नहीं आई थी। यहाँ का वार्तालाप भी मुझे सहन नहीं हो रहा था। मैंने यहाँ से हटना ही श्रेयस्कर समझा था। बालकनी में जाते हुए मैं सोच रही थी कि जब मेरे रिश्तेदार एवं अपने ही, मेरी यूँ खिल्ली उड़ा रहे हैं तो बाकी दुनिया क्या क्या नहीं सोच और कह रही होगी। 

मैंने, डिग रहे विश्वास को बनाए रखने की कोशिश में स्वयं से तर्क किया कि - 

प्रिया, जो महान होता है, उसके आरंभिक प्रयासों की खिल्ली उड़ाए जाने की रीत प्राचीन समय से चलती आ रही है। मेरी खुद से शादी, से मुझे मिलने वाली उपलब्धियां मुझ पर इन हँसने वालों के मुँह पर, एक दिन अवश्य ही ताले लगा देंगी। 

मैं आकाश की ओर देखते हुए विचारमग्न खड़ी थी। तब दबे पाँव मेरी समवयस्क फुफेरी बहन, हमारी दो सखियाँ के साथ वहाँ आ गई थी। 

एक सखी ने मुझसे कहा - प्रिया यूँ तन्हा अकेली कैसी खड़ी हो। आज तो तुम हमारे बीच रहो। शादी वाले दिन दुल्हन को छेड़ने का अधिकार बहनों एवं सखियों को होता है। तुम क्यों हमें इससे वंचित कर रही हो? 

वे तीनों मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे कक्ष में खींच ले आईं थीं। सखी ने फिर पूछा - प्रिया तुम हमें ये तो बताओ कि सुहाग सेज पर तुम पति और पत्नी दोनों का रोल कैसे करोगी। 

दूसरी सखी ने मेरे उत्तर देने के पहले ही कहा - यह तकिए को पहले अपने बायीं ओर लिटाएगी, तब यह पति होगी। फिर कुछ देर में खुद तकिए के दूसरी ओर लेट जाएगी, तब पत्नी हो जाएगी। रात भर यह ऐसे ही स्थान बदल बदल कर कभी पति का कभी पत्नी का रोल कर पाएगी। इसका जीवन डबल रोल वाली एक मूवी जैसा बन जाएगा, है ना प्रिया?

फिर मेरे अतिरिक्त तीनों ठहाका मारकर हँसने लगीं थीं। अब मुझे छेड़ने के लिए बहन ने मुख खोला था। उसने कहा - प्रिया, तुम्हारी तो बचत हो जाएगी तुम्हें तो डबल बेड भी नहीं खरीदना होगा, तुम्हारा काम तो सिंगल बेड में ही चल जाएगा। 

इसके बाद वे तीनों पुनः हँसने लगीं थीं। 

इस बार मैं चिढ़ गई थी। मैंने कहा - हाँ तुम भी खुद से शादी कर लेना तो मेरे मजे अनुभव कर पाओगी। तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम पर हँसने का मेरा समय भी आएगा। आज तुम मुझ पर हँस लो तब मैं तुम पर हँसूंगी। 

पहली सखी ने पूछा - क्या मतलब, जब हम रियल दूल्हे से शादी करेंगीं तब तुम हम पर हँसोगी? 

मैंने कहा - नहीं, मैं जब नहीं हँसूंगी, मैं तब अवश्य हँसूंगी जब तुम अपने रियल पति के हाथों पिटकर दुखी हो रही होगी या शादी के दो तीन वर्ष बाद ही, अपने रियल हस्बैंड से डिवोर्स ले रही होगी। 

तब एक सखी ने अविश्वास का भाव में आँखे बड़ी करते हुए पूछा - यह क्या प्रिया, तुम हमारी सखी हो या बैरी? हम पर बुरा समय आएगा तब तुम हम पर हँसोगी? 

मैंने कहा - क्यों नहीं, तुम तीनों अभी यही तो कर रही हो ना, मेरे साथ!

अब बहन ने अपने मुख पर गंभीरता के झूठे भाव प्रदर्शित करते हुए पूछा - क्या मतलब प्रिया, क्या अभी तुम पर बुरा समय है?

मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझ रहा था। तब एक सखी ने कहा - प्रिया, तुम छोड़ो भी इसकी बात, मैं तुम्हें एक अच्छी बात बताती हूँ। तुम्हारी ऐसी अनूठी शादी अपनी तरह का एक रिकार्ड हो ही रही है। इसके साथ तुम्हारे पास एक और विश्व रिकार्ड बनाने का अवसर होगा। 

कहते हुए वह और बाकी दोनों भी, अपने होंठ दबा कर हँसने लगीं थीं। मुझे समझ आ रहा था तीनों मुझे परेशान करने की पूर्व योजना तैयार करके आईं हैं। यह सब तीनों की मिलीभगत से चल रहा है। 

मुझे विचारों में खोया देखा तो अगली ने पूछा - वह रिकार्ड क्या होगा, तुम प्रिया को बता दो, तभी तो वह उसे बनाने की सोच पाएगी। 

तीनों की शरारती दृष्टि मेरे मुख पर टिकी हुई थी। तब पहली ने कहा - वह यह कि खुद से शादी करके प्रिया ही पत्नी और प्रिया ही पति भी होगी। ऐसे में जब प्रिया गर्भवती हो जाएगी, तब वह मीडिया के सामने यह कहेगी कि ‘प्रिया पत्नी’ नहीं अपितु ‘प्रियपति’ प्रगनेंट है। तब दुनिया में ऐसा पहली बार होगा, जब कोई पति अपने शिशु को नौ माह अपनी कोख में रखने के बाद जन्म देगा। 

अब तीनों पुनः हँसने लगीं तो मैंने बिस्तर पर उलटी लेटकर तकिए में अपना मुँह छुपा लिया था। इस अवस्था में, मैं इन तीनों के मनोविज्ञान के बारे में सोचने लगी थी। मुझे लग रहा था, कहने को ये मेरी सखी एवं बहन हैं मगर ये मुझसे ईर्ष्या कर रहीं हैं। मुझे नाम और चर्चा मिल रही है यह इन्हें पच नहीं पा रही है। 

तब मुझे एक का स्वर सुनाई दिया वह पूछ रही थी - मगर खुद से शादी करने पर प्रिया गर्भवती कैसे होगी?

तब दूसरी ने कहा - यह कैसे होगा प्रिया ने खुद इसका उपाय सोच रखा होगा। जब प्रिया विवाह को बिलकुल नया रूप दे सकती है तब वह, उसे गर्भवती कैसे होना है यह तो सोच ही सकती है। 

फिर तीनों कक्ष से बाहर जाने लगीं थीं। एक कह रही थी - लगता है अपने साजन के बारे में सोचते हुए प्रिया, रात सो नहीं पाई है। अभी सोना चाहती है तो इसे सो लेने दो। 

मुझे उन तीनों का सयुंक्त ठहाका पुनः सुनाई दिया था। फिर शांति छा गई थी। 

मुझे इस तरह की बातों की पूर्व कल्पना नहीं हुई थी। मुझे संशय होने लगा था, असाधारण बनने की चाह में मैं सबकी हँसी का पात्र तो नहीं बनने जा रही हूँ। ये तो मेरे थोड़े से परिचित/रिश्तेदार लोग हैं। ये सब ऐसी बातें कह रहे हैं तो जिन लाखों करोड़ों में, मैं खुद से शादी करके चर्चित हो रहीं हूँ, वे ना जाने मेरे बारे में कैसी कैसी हँसी की और गंदी गंदी बातें कर रहे होंगे। मैं जानती थी जितने मुँह उतने प्रकार की बातें होतीं हैं और जिसे गंदा बताते हैं वही, गंदी बातें और गंदा काम अधिकतर लोग करते हैं। 

मेरा विवाह गुटखा कंपनी प्रायोजित कर रही थी। कुछ देर बाद उसके लोग आए थे। उनके कहने पर मुझे पुरुष की तरह सूट बूट में तैयार होना पड़ा था। इसके बाद उनके साथ आए फोटोग्राफर ने मेरी तस्वीर उतारी थी। 

रात्रि जब वरमाला का कार्यक्रम होना था तब आदमकद साइज में मेरी दूल्हे वाली तस्वीर, मेरे बैठने पर सिंहासन में मेरे बगल में रख दी गई थी। वरमाला के समय मैंने इस तस्वीर पर वरमाला डाली थी। तत्पश्चात दूल्हे की ओर से मुझे पहनाई जाने वाली वरमाला, मैंने तस्वीर से स्पर्श कराने के बाद, खुद अपने गले में डाल ली थी। 

यह सब देख कर अतिथि दीर्घा में बैठे लोग ठहाके लगाते हुए, लोटपोट हो रहे थे। इससे मैं पुराने समय की किसी दुल्हन की तरह, लाज से आँखे झुकाए हुए स्टेज में गड़ी जा रही थी। 

फिर आया था भाँवर (सात फेरे लेने) का समय, प्रायोजक कंपनी ने अब एक छोटी ट्रॉली में मेरी दूल्हे की वेश वाली तस्वीर रख दी थी। पंडित जी ने मंत्रोच्चार करते हुए अग्नि वेदी की परिक्रमा के लिए, मेरा गठबंधन उस तस्वीर के साथ किया था वेदी की छह परिक्रमा में मुझे उस ट्रॉली को अपने आगे पुश करते हुए चलना पड़ रहा था। सातवीं परिक्रमा में पंडित जी ने मुझे आगे रहने के लिए कहा था तब मुझे तस्वीर रखी इस ट्रॉली को अपने पीछे खींचना पड़ा था। 

मेरे ‘खुद से विवाह’ की इन रस्मों के साक्षी होने से अतिथियों और रिश्तेदारों का, किसी कॉमेडी शो देखने जैसा मनोरंजन हो रहा था। इन हँसी ठहाकों से बचाव करने के लिए, मेरे स्वयं से विवाह होने के कारण, मेरा साथ देने वाला दूसरा (मेरा पति) कोई नहीं था। मैं अकेली, स्वयं को लाचार अनुभव कर रही थी। साथ ही मेरे मम्मी, पापा एवं भाई शर्म से गड़े जा रहे थे। 

अंत में सात वचनों की आवश्यकता नहीं कहते हुए पंडित जी ने, “मुझे खुद से खुद को निभाने की शपथ दिलवाई थी।" 

ऐसे मेरी खुद से शादी संपन्न हुई थी। 

दक्षिणा लेकर विदा होते हुए पंडित जी ने भी मुझे अपने हास-परिहास में लपेट लिया था। उन्होंने मुझसे हँसते हुए कहा था - प्रिया बहन, खुद से शादी करने पर आप बहुत नाम और प्रसिद्धि पा रही हो। इस विवाह कराए जाने का श्रेय, चैनल पर आप मुझे भी दे देना। ताकि मुझे भी थोड़ी चर्चा मिल जाए। मेरा नाम गणेश पंडित है। 

पंडित जी यह कह कर, अपनी हँसी छुपाते हुए चले गए थे। 

मुझे विदा होकर कहीं नहीं जाना था। फिर भी सबके ठिठोली वाले व्यवहार से मैं ऐसी आहत हुई थी कि मेरी आँखों में, उस प्रकार आँसू आ गए थे जैसे बाबुल से विदा लेते हुए नववधू हुई बेटी के रोने के कारण आ जाते हैं।   

पंडित जी की दिलाई शपथ का गूढ़ अर्थ, मुझे बाद में पता पड़ना था कि “खुद से निभा पाना कितना कठिन काम होता है।" 


(क्रमशः) 


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