V. Aaradhyaa

Romance

4.2  

V. Aaradhyaa

Romance

मैं तुम्हारी दूसरी पसंद हूँ ना

मैं तुम्हारी दूसरी पसंद हूँ ना

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" मैं यह कैसे भूल जाऊँ कि यह रिश्ता मेरी बहन के लिए आया था !


 अंतरा ने अनंत की आंखों में देखकर कहा तो वहां उसे अपने लिए कुछ और ही भाव नजर आए।


अनंत एकटक अंतरा को देख रहा था। शायद जवाब की प्रतीक्षा में व्यग्र हो रहा था।

आज वह यकीनन अंतरा का जवाब पाने को बहुत उत्सुक था।

तो आपने मेरे प्रपोजल पर दोबारा सोचा कि नहीं?


अनंत को ऐसा बोलते हुए थोड़ा डर भी लग रहा था कि पता नहीं अंतर उसकी बात का क्या मतलब निकाले।


आज अनंत अंतरा से अपने दिल की बात कहना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उसके दिल की बात दिल में ही रह जाए।


वैसे तो अनंत का रिश्ता अंतरा की बड़ी बहन सोनिका के लिए आया था। लेकिन सोनिका को अभी शादी करनी नहीं थी। क्योंकि वह अरुण से प्यार करती थी। इसके अलावा उसे अचानक बाहर जाने का चांस मिला था। और वह रिसर्च के लिए बाहर जाना चाहती थी। कदाचित उसका अभी शादी करने में कोई इंटरेस्ट नहीं था।

...

इधर दुनियादारी को देखते हुए और कुछ अपनी बेटी के मना करने पर थोड़ी शर्मिंदगी की वजह से सोनिका के माता पिता चाहते थे कि सोनिका के लिए आए हुए रिश्ते के लिए अंतरा का रिश्ता हो जाए । इससे लड़के वालों को भी तसल्ली हो जाएगी और सोनिका के लिए खोजा हुआ बसा बसाया घर और इतना अच्छा दूल्हा भी कहीं ओर नहीं जाएगा।

"अनंत ! तु एक काम कर। दो तीन बार अंतरा से मिल। और उसे समझने की कोशिश कर। अच्छी तरह से उसे अपनी आदतों के बारे में बता देना और हमारे परिवार के बारे में भी कुछ अच्छी जानकारी दे देना। क्योंकि अंतरा का परिवार बहुत अच्छा है। और अगर अभी सोनिका शादी नहीं कर सकती और शायद जैसा मुझे लगा कि अनंत और सोनिका दोनों के स्वभाव भी आपस में नहीं मिलते।

सोनिका के पापा कह रहे थे कि वो लोग अंतरा की शादी अनंत से करा देंगे। घर आए इतने अच्छे रिश्ते को छोड़ना सही नहीं होगा। मुझे भी यही सही लग रहा है!"


मां के ऐसा कहने पर अनंत जब अंतरा से मिला तो उसे लगने लगा था कि उसकी और अंतरा की चॉइस बहुत मिलती है। लेकिन अगर वह ऐसा कुछ भी बोलता तो अंतरा को बहुत बुरा लगता। वह एक प्रगतिशील विचारों की लड़की थी। और पहले ही उसने साफ-साफ अनंत से कह दिया था कि

"अगर दीदी के लिए अनंत जी को देखा गया था और दीदी किसी और से प्यार करती है तो इसका मतलब यह नहीं ?


" मैं किसी भी लड़के से शादी कर लूंगी! पहले मैं उस लड़के को जानूंगी, समझूंगी तब सोचूँगी कि इसे अपना जीवनसाथी बनाना है कि नहीं! मेरे लिए किसी भी रिश्ते के लिए सबसे पहले प्यार होना जरूरी है। मैं ऐसे किसी से भी शादी नहीं कर सकती। मेरे मम्मी पापा तो थोड़े पुराने ख्यालात के हैं। उनको लगता है लड़का अच्छा कमाता खाता है परिवार अच्छा है तो लड़की की शादी कर दो। लेकिन मैं यह मानती हूं कि पहले लड़के लड़की की चॉइस मिलनी चाहिए। उनको एक दूसरे के लिए फीलिंग होनी चाहिए। नहीं तो शादी का क्या मतलब है?"


बड़ों की यही बात अनंत को बहुत अच्छी लगी थी। उसके ऑफिस से अंतरा कर ऑफिस ज्यादा दूर नहीं था। बीच में कभी कभी उनकी बात हो जाती थी। कभी अनंत अंतरा के साथ कॉफी पीने भी जाने लगा था। इससे ज्यादा उनकी जान पहचान अभी नहीं हुई थी।


दोनों के घर वालों के सामने सबकुछ एकदम साफ था कि अगर सोनिका की शादी प्रवीण से नहीं हुई तो अंतरा की भी अनंत से नहीं होगी क्योंकि अंतरा अभी अपना अपने करियर में ज्यादा बिजी है।


लेकिन यहां एक गड़बड़ हो गई थी।


अब अनंत के मन में अंतरा को लेकर फीलिंग आ गई थी। वह उसे बहुत पसंद करने लगा था। उसे एक तरह से कहा जाए तो उसे अंतरा के विचारों और उसकी पूरी शख्सियत से प्यार हो गया था लेकिन अंतरा को कहने से डर रहा था।


इधर जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली अंतरा, जिसके नाक पर गुस्सा रहता था। उस नकचढ़ी को भी अनंत बहुत अच्छा लगने लगा था। लेकिन अब आगे बढ़कर वह कैसे कहे ...?


इसलिए उसने भी अपने मन की बात को मन में रहने दिया था। और इस दोस्ती को दोस्ती तक ही सीमित रखने की कोशिश कर रही थी। लेकिन जब अनंत उसके सामने होता तो ना जाने क्यों इन दिनों उसके अंदर एक फीलिंग आ जाती थी। और वह अनंत की आंखों में डायरेक्ट नहीं देख पाती थी। बल्कि उसकी नजरें शरमाकर अपने आप झुक जाती थी।


अनंत भी अब यह समझने लगा था कि अंतरा उसे पसंद करने लगी है।


लेकिन पहल कौन करे ...?सही मायने में कहा जाए तो अनंत के मन में यही बात आती थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?


इस नकचढ़ी लड़की का भरोसा नहीं। कहीं पलट के ना कह दिया तो...


और अगर जो एक बार इसने ना कह दिया तो फिर से हां कहना बहुत मुश्किल होगा।

उस दिन अंतरा के ऑफिस में फंक्शन था। और उसे निकलते हुए देर हो गई थी आज उसने शॉर्ट ड्रेस भी पहना हुआ था। और उसे याद नहीं रहा था कि आज ऑटो रिक्शा वगैरह की हड़ताल है। सुबह तो वह अपनी एक सहेली के साथ आ गई थी। अब जाते हुए उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। क्योंकि उसकी सहेली मिली का बच्चा बीमार था इसलिए वह जल्दी चली गई थी। अब अंतरा सोच ही रही थी कि घर कैसे जाए कि उसे अचानक अनंत का ख्याल आया। उसने अनंत को फोन किया।


तो अनंत तुरंत आकर और फिर भी उसे आकर अंतरा को उसके घर तक छोड़ने चल दिया।


रास्ते में दोनों रोज बातें भी करते जा रहे थे। उस रात के रोमानी समय में अंतरा बेहद खूबसूरत लग रही थी। आज उसने बहुत ही प्यारी ड्रेस पहन रखी थी। आज अनंत को खुद को काबू में रखना मुश्किल हो रहा था तो उसने उसके मुंह से निकला।


"तुम आज बहुत खूबसूरत लग रही हो! क्या मेरी जीवनसंगिनी बनोगी?"


अंतरा भी आज बड़े अच्छे मूड में थी उसके प्रमोशंस के चांसेस बहुत है इसलिए उसके मन ही मन में आज बहुत सारी उम्मीदें भी और भविष्य के सुनहरे सपने।


उसने अनंत की बात पर कह ही दिया ,


"अरे रहने दो। तुम क्या ही कहोगे? तुममें तो हिम्मत ही नहीं है। चार महीने से हम दोनों मिल रहे हैं, बात कर रहे हैं। लेकिन तुम्हारे आज तक तो हिम्मत पड़ी नहीं। अब हिम्मत कहां से आयेगी!"


अंतरा के इतना कहते ही अनंत ने कहा,


"तुम्हारे डर से नहीं कह पा रहा था। पता नहीं ...कबसे मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार आ गया है। सच कहो ना... क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"


"अरे ...ना ’आई लव यू ’ ना कोई डेटिंग , और सीधे शादी करोगी ...बहुत ही अनरोमांटिक हो तुम!"

उसके बाद तो अंतरा ने बिना कुछ कहे ही लगता है सब कुछ कह दिया था।


आगे अनंत को ज्यादा तैयारी नहीं करनी थी । क्योंकि घरवाले तो तैयार थे ही। दोनों के परिवार में भी सब बहुत खुश थे। आखिर सब जो चाहते थे फाइनली वही तो हो रहा था। लेकिन इसमें अंतरा और अनंत की रजामंदी भी शामिल थी ।और दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए प्यार भी था।


शादी की पहली रात सबसे पहली बार जो अनंत ने अंतरा से कहा कि,


" तुम्हें एक बात बताऊंगा तो तुम विश्वास नहीं करोगी। तुमसे प्यार तो मुझे पहली नजर में ही हो गया था। लेकिन मैं तुम्हारे अंदर उस प्यार के पनपने का इंतजार कर रहा था!"


"अच्छा...! अगर मुझे तुमसे प्यार नहीं होता फिर सारी उम्र बस किसी से शादी नहीं करते ? ब्रह्मचारी बनकर रहते!"


"कैसे नहीं होता। हमें तो एक होना ही था!"


 " तुम मेरे मन की बात कैसे समझ गए?"


 मैं तो तुम्हारी दूसरी पसंद हूँ ना...? पहली पसंद तो मेरी बहन थी!"

अंतरा ने भावुक होकर पूछा तो....


अनंत ने कहा..."पसंद पहली या दूसरी नहीं होती है। पसंद पसंद होती है!"


कहकर अनंत ने अंतरा का हाथ पकड़ लिया।


उस चांदनी रात में अंतरा भी उसके साथ बैठी हुई कभी चांद को निहारती तो कभी अनंत को निहारती और शर्म से पलकें झुका लेती। पहली बार अनंत अंतरा को इस रूप में देख रहा था।


विवाह मंडप पर उसने कईयों से सुना था कि,

" दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी है !"


आज चांद की रोशनी जब उनके चेहरे पर पड़ रही थी तो अनंत बड़े ही प्यार से अंतरा को निहार रहा था। और अंतरा की पलकें शर्म से झुकी जा रहीं थीं।


सही कहा है किसी ने कि...


जब दो दिलों में एक दूसरे के लिए प्रेमसिक्त भावनाएं आती हैं तो उन्हें एक होते हुए देर नहीं लगती

जैसे काव्या और अनंत भी देर सवेर आखिर एक दूसरे के प्यार को समझ पाए और आज विवाह बंधन में बंधकर एक पावन परिणय के साथ नवजीवन की शुरुआत कर रहे थे।



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