मैं फेल नहीं करूंगा

मैं फेल नहीं करूंगा

4 mins
490


जी हाँ ! आजकल शिक्षा के पवित्र व्यवसाय में ऐसे महानुभव भी आ चुके हैं जिन्हें शिक्षा का सही मतलब भी नहीं पता है और वो आजकल की पीढ़ी को पढ़ाना चाहते हैं ! मिसाल के तौर पर हमारे एक शिक्षक हुआ करते थे जिनको अंग्रेजी बोलने का शौक़ था परन्तु उनके और अंग्रेजी की बीच में वही रिश्ता था जो कि कांग्रेस और भाजपा के बीच है ! ख़ैर ! एक दिन वो हमारा "क्लास-टेस्ट" ले रहे थे और उन्हें ये कहना था कि अगर कोई नक़ल करता मिला तो मैं उसे ज़मीन पर बैठा दूँगा ! परन्तु जो उनके मगज़ में अंग्रेजी बोलने का फितूर था उसने उनसे जो कथन कहलवाया वो माथा-पीट कथन था, तो उन्होंने जो कथन कहा था वो इस तरह से था, "इफ समवन विल बी फाउंड टू बी चीटिंग आई विल सिट ऑन थे फ्लोर।"

जिसका हिंदी में रूपांतरण है,"अगर कोई नक़ल करता मिल गया तो मैं ज़मीन पर बैठ जाऊँगा !" तो मेरा अर्थ यही है कि इस तरह के शिक्षक अगर बच्चों को पढ़ाएंगे तो बच्चे यही कहेंगे कि फलां टीचर या शिक्षक बर्बाद पढ़ता है और भारत में परंपरा है कि यहाँ अगर इलज़ाम पर लगता है तो पूरी बिरादरी को उसका खामियाज़ा भरना पड़ता है !ख़ैर ! भावुक न बनते हुए मैं आपसे अपनी वो कथा बाँटना चाहता हूँ जिसकी वजह से मैंने इस कथानक का ये नाम रखा है ! तो जैसे मैंने आपको बताया कि मैं किसी संस्थान में शिक्षक था और शिक्षक होने के नाते मैंने बच्चों की परीक्षा ली ! परीक्षा के नतीज़े आये तो कुछ बच्चे उस परीक्षा में अनुत्तीर्ण भी हुए ! उन्हीं अनुत्तीर्ण बच्चों में ही एक बच्चा हमारे संस्थान के ट्रस्टी का बच्चा भी था !

मैंने ईमानदारी से कर्त्तव्य निभाते हुए उसे जितने अंक देने थे वो दिए और उसे अनुत्तीर्ण घोषित किया, वो बच्चा अपनी कॉपी देखने आया और अनवांछित कुतर्क करने लगा तो मैंने भी कह दिया,"बेटा ! हर सवाल का हल क्रमवार तरीके से यहाँ इन पन्नों में दे रखा है तो आप यहाँ आए और इन उत्तरों से अपने उत्तर का मिलान करके अपने आपको निश्चिन्त कर लीजिये !" बच्चा भी बड़ा घाघ था, उसने उत्तर-मिलान का फ़र्ज़ निभाया और मुँह बिचकाकर अपनी उत्तर-पुस्तिका पटककर कहा,"मास्सा 'ब ! उत्तीर्ण तो मैं होकर ही रहूंगा !"

उसकी ये हुंकार मुझे किसी चोट खाये योद्धा से कम नहीं लगी जिसके जिस्म पर लगी चोट उसके शरीर पे नहीं अपितु उसके अहम् को चोटिल करती है। ख़ैर ! बात आयी-गयी हो गयी और अगली परीक्षा हुईं जिसमें भी वो बच्चा अनुत्तीर्ण रहा ! अगले दिन हम सभी शिक्षकों को एक निर्देश-पत्र प्राप्त हुआ जिसमें लिखा हुआ था कि क्यूंकि शिक्षक लोग हमारे ग्राहकों को कठिन परीक्षा-पत्र देकर परेशान कर रहे हैं तो इसलिए हमारे ग्राहक बहुत ज़्यादा तादाद में अनुत्तीर्ण हो रहे हैं ! तो "कस्टमर-सटिस्फैक्शन" को सर्वोपरि रखते हुए अनुत्तीर्ण ग्राहकों के लिए एक "दया-परीक्षा" का आयोजन किया जाए ! ख़ैर ! किसी नौकरी-पेशा व्यक्ति के लिए नौकरी की महत्ता वही है जो किसी राजनेता के लिए कुर्सी और कवियों के लिए सजी हुई महफ़िल की होती है !

संस्थान-प्रबंधन की बात मानते हुए हमनें ये जतन भी किये कि इनके ग्राहक "सैटिस्फाई" हो जाएँ ! इस बार भी परीक्षा करवायीं गयीं और वो बच्चा फिर से "फेल" हो गया परीक्षा के नतीज़ों के अगले ही दिन फिर से सभी को एक निर्देश-पत्र प्राप्त हुआ जिसमें ये साफ़ किया गया कि ग्राहक अब भी नाराज़ हैं और उन्हें ख़ुश करने के लिए जो उत्तीर्ण होने के न्यूनतम अंक हैं उन्हें और घटाया जाए ! ख़ैर ! जैसे ही न्यूनतम अंकों को घटाया गया तो वो बच्चा अब "उत्तीर्ण" होने वालों की "केटेगरी" में आ गया। जब मैंने अपनी अगली परीक्षा ली तो आदतानुसार वो बच्चा फिर से अनुत्तीर्ण घोषित हुआ और अगले ही दिन हमारे हाथ में नया आदेश-पत्र आया कि जो भी शिक्षक अब बच्चों को अनुत्तीर्ण करेगा तो प्रति बच्चा उसके वेतन से ५००/- काटे जाएंगे ! तो मरता क्या न करता, मैंने अपनी कमाई को यथावत रखने के लिए क़सम खा ली कि अब मैं किसी को फेल नहीं करूंगा ! जब लक्ष्मी सरस्वती के ऊपर चढ़कर बैठ जाती है तो सेवा व्यापार बन जाती है और विद्यार्थी ग्राहक में तब्दील हो जाते हैं ! तब संस्थान जिनका एक मुश्त मक़सद विद्या-दान का होना चाहिए वो विद्या की खरीद-फ़रोख़्त चालू कर देते हैं और सोचिये ऐसे ग्राहक जब समाज में उच्च-पदस्थ होंगे तो ये भी सेवा नहीं करेंगे अपितु कुर्सी का व्यापार करेंगे ! इसलिए अंततः यही कहना चाहूंगा विद्या यत्न से मिलती है धन से सिर्फ विलासिता मिलती है !


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy