मैं नदी हूं

मैं नदी हूं

3 mins
169


मैं नदी हूं। वैसे तो आप लोग मुझे कई नाम से जानते हो पर मैं आज अपने अलग अलग नामों की व्याख्या करने नहीं बल्कि मैं आज अपने मन की बात कहने आई हूं।

मेरा जब पहाड़ों की गोद से जन्म हुआ तब मैं इतराती बलखाती अपना जीवन शुरू करने को तैयार थी। धीरे धीरे मैं बड़ी हुई, मेरा नाम भी रखा गया और मेरे उद्गम स्थल के हिसाब से मुझे पूजा भी जाने लगा।

पता है जब ऋषि मुनि स्नान करते वक़्त मेरा जल अंजुली में भरकर सूरज को अर्पण करते थे तब मुझे अपना जीवन सार्थक लगने लगता था। सूरज को नमन कर वो जल जब मुझमें वापस मिलता था तब लगता था कि मैं और भी ज्यादा पवित्र हो गई। कितने सुहाने दिन थे वो।

फिर एक दिन किसी ने मुझ में दीप और फूल भी प्रवाहित लिए। खुद में फैलती उन फूलों की खुशबू और उन दीपों की टिमटिमाती रौशनी और मुझ में पड़ा उनका अक्स सब मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं शब्दों में अपनी खुशी और अपने इतराने का वर्णन नहीं कर सकती। पर जब वो दीप थोड़ी देर में बुझ गए और फूल मुरझा गए तो वो खुशी भी खो गई। रोज़ रोज़ ऐसे बुझे दीपों और मुरझाए फूलों के बोझ तले मेरी खुशी भी दबती चली गई।

और फिर एक दिन किसी ने मुझ में बहुत सारा कूड़ा डाल दिया - जला जला, काला काला सा। ध्यान से देखा तो शायद किसी के घर की पूजा का सामान था, बचा खुचा, जला कर नष्ट हुआ। अब मैं शायद नदी कम कूड़ा घर का रूप ज्यादा लेने लगी थी। उन लोगों की बातें सुनी तो समझ आया कि वो सोच रहे थे कि ये कूड़ा मुझ में डालने से उनकी पूजा सफल होगी और शगुन होगा। लेकिन उन्होंने जो मेरे अस्तित्व को नष्ट करने की कोशिश की उसका पाप किसके सिर चढ़ा ये उन लोगों को समझ नहीं आया शायद या कहूं कि उन सबका ज्ञान बड़ा सीमित था और अपना ही फायदा देखने वाला था।

धीर धीरे लोग बड़े ज्ञानी होने लगे, बड़ी मोटी पुस्तकें भी पढ़ने लगे लेकिन मेरी हालत बद से बदतर होती गई। किसी का ज्ञान मेरे काम नहीं आया। अब तो कई जगह मुझे ऐसा लगता ही नहीं कि मैं एक नदी हूं, मुझे तो अपना आप नाले सा प्रतीत होता है। 

मजे की बात तो ये है कि मुझे मारने वाला भी कोई खुश नहीं है। वो भी साफ पानी को लेकर त्राहि त्राहि कर रहा है। लेकिन इतनी हाय तौबा मचाने के बाद भी वही आदमी मेरी हालात में कोई सुधार नहीं लाना चाहता। बस बातें और योजनाएं।

अब तो मुझे लगता ही नहीं मैं फिर कभी दोबारा वैसी दिखूंगी जैसे मैं जन्मी थी। वो दिन तो मेरी यादों में ही रह गए। बस अब लम्हा लम्हा सूखने लगी हूं और एक दिन मुक्ति भी पा लूंगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy