मासूमियत
मासूमियत
बार-बार ज़िक्र होता हैं, हर बार फ़िक्र होती हैं, मासूमियत जहाँ दुविधाओं में होती हैं, वहां सरकार सुस्त नज़र आती हैं। फिर एक मासूमियत की घटना सामने आयीं। फिर से शर्मसार कर देने वाली घटना हैं। इतनी क्रूरता दरिंदगी दरिंदों में कहा से उत्पन्न होती है। मासूमियत जहाँ अब घर से बाहर निकलने पर सौ बार सोचती हैं।
दरिंदों की दरिंदगी जहां दिन पर दिन, हर दिन, हर शहर, हर गाँव बस्तियों में हो रही हैं। जहां मासूमियत पर अत्यधिक अत्याचार किया जा रहा हैं। फिर भी सरकारें सुस्त दुरुस्त पड़ी हैं।
मासूमियत पर अत्याचार अत्यधिक हो रहा हैं।
आज फिर से एक प्रश्न खड़ा कर रहा हूँ।।
आखिर कोई व्यक्ति इतना क्रूर कैसे हो सकता हैं?
फिर एक दस साल की बच्ची के साथ दरिंदगी हुई उस पर देश भर में गुस्से का माहौल हैं, आखिर कोई व्यक्ति इतना क्रूर कैसे हो सकता हैं? इस घटना पर इंसानियत तो शर्मसार हैं ही, हैवानियत भी शर्मसार हैं, वह दरिंदगी की पराकाष्ठा हैं!
और कब तक ऐसा होता रहेगा? उन लोगों को कब अक्ल आएगी?एक मासूम ने क्या बिगाड़ा था किसी का?
देश मे जिस रफ़्तार से मासूमों पर अत्याचार की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं, उससे कानून व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था दोनों पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया हैं।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो सभ्य समाज का पतन निश्चित हैं, सभ्य समाज को एक नए कानून की ज़रूरत हैं, ताकि ऐसे मामलों को फ़ास्ट ट्रेक करके कोर्ट में जल्दी से जल्दी निपटाया जा सकें और दोषियों को सख्त से सख़्त सज़ा दी जा सकें।
कोई भी कुकृत्य करने से पहले सौ बार सोचें ऐसा एक कानून बनाना होगा।
एक छोटी मासूम बच्ची जिसके साथ दुष्प्रहार हुआ कुछ दरिंदों की हरकत अब फ़िर हुई क्यूँ न जाने?
और कब तक दरिंदे आज़ाद घूमते रहेंगे क्यूँ नहीं बनाती सरकार कानून ऐसा जिस पर कानून से सबको भय लगे?
ऐसा कानून नया बनाओ जिससे दरिंदे दुष्प्रहार करने से पहले कांप उठे बीच सड़क पर जनता के सामने ऐसे दरिंदों को बीचों बीच सड़क फाँसी देने का कानून बनायें।
