मास्क
मास्क
कोरोना के दौर में मैं जल्दी जल्दी चलकर घर की ओर बढ़ रहा था कि देखा कि एक ओर बहुत भीड़ लगी हुई है। मैं उस स्थान पे गया और ये कहा,"भाई! हटो मैं एक डॉक्टर हूँ।" जबकि वास्तव में मैं एक विद्या-वाचस्पति यानि कि पी. एच. डी. वाला डॉक्टर था, मगर मानवीय उत्सुकता और भीड़ हटाने के लिए मैंने इसका इस्तेमाल किया। ख़ैर जैसे ही भीड़ हटी तो मैंने सामने देखा कि एक कचरा पात्र था और जब उस कचरा पात्र के मैं और निकट गया तो देखा एक नवजात शिशु का शव पड़ा है। "भाई! कौन इसे यहाँ छोड़ गया, किसी ने देखा उस व्यक्ति को?" लगभग चीखते हुए मैंने पूछा तो एक बेचैन शांति स्थापित हो गयी थी। मैं हतोत्साहित होकर मुड़ ही रहा था कि उस शांति को चीरती एक आवाज़ आयी,"मैंने देखा था उसे साहब।" एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति ये कह रहा था। मैं त्वरित गति से उसके पास पहुँचा और उससे पूछा,"बताओ बाबा कैसा दिखता था वो ताकि पुलिस को हम उसका हुलिया बता सकें।" "मगर साहब उसने तो मास्क पहन रखा था।" जैसे ही उसने ये कहा मैंने अपना खरीदा हुआ सामान उठाया और घर आ गया। अगले दिन अख़बार में पढ़ा क़रीबन ४ ऐसे शिशु-शव बरामद हुए हैं और ये पता नहीं चल सका कि कौन इन्हें फेंक कर गया है। मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था कि मास्क आजकल बीमारी के साथ-साथ बुरी नीयत और अपराधी, को बचाने के काम आ रहा है।