मानो न मानो
मानो न मानो
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मानो या न मानो, मैंने सिरकटा भूत देखा है-
जी हाँ, पहली बार जब भूत जी से मुलाक़ात हुई तब हम छुट्टियों में ससुराल वाले घर गये थे।छत वाले कमरे में दो पलंगों के बीच लैम्प वाली मेज़ थी।रात को जैसे ही आँख खुली मेज़ के पास मेरे सिरहाने लम्बे काले दो पैर दिखाई दिये।मेरी नज़र धीरे-धीरे ऊपर गई तो एक लम्बा-तगड़ा काला फ़ौजी सा ख़ाकी निकर पहने कोई खड़ा था।उसका चेहरा देखने के लिये ऊपर देखने की कोशिश की तो उसका सिर नदारद था।
घुटी-घुटी आवाज़ में मेरी चीख़ निकली तो साथ के पलंग पर सोये पतिदेव जाग गये।उन्हें बताया तो उन्होंने कहा,"कुछ नहीं है ।पानी पी कर सो जाओ।"
दूसरे दिन हमें वापस जाना था।इस बात का ज़िक्र किसी से नहीं किया।
अगली बार जब हम दोबारा छुट्टियों में घर गये तो मेरी ननद ने बिल्कुल वैसे ही आदमी का ज़िक्र किया जो उन्होंने रात को देखा था।अब इस बात में शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि उस रात मेरे सिरहाने सिरकटा भूत ही खड़ा था।
कई सालों के बाद न जाने कैसे मैंने प्लेनचिट से आत्मा बुलाने का सिलसिला शुरू किया।अनुभव बुरे नहीं हुए क्योंकि उनसे मैंने जो भी प्रश्न पूछे वे बाद में सही साबित हुए।उसके बाद तो कुछ ऐसा होने लगा कि मैं जब भी क़लम पकड़ती लिखने के लिये वह अपने आप कुछ सही और कभी कुछ ऊलजलूल लिखने लगती।
एक बार प्लेनचिट बुलाते समय मैंने पूछा,"आप कौन हैं?"उत्तर मिला क़लम की लिखावट से,अंग्रेज़ी में, "मिसेज़ गोम्ज़।"जब मैंने उनको देखना चाहा तो मेरी कलम स्वत: ही कागज़ पर चलने लगी और एक करीब ७०/७५ वर्ष की। बूढ़ी किन्तु शालीन महिला का चेहरे कि आकृति बन गई।वह चेहरा आज भी मुझे याद है।
अब न जाने कहाँ हैं मिसेज़ गोम्स!!!क्योंकि वे ही मेरे सभी प्रश्नों के सही उत्तर देतीं थीं जो भविष्य में सच साबित हुए।यह बात और है कि काफ़ी सालों से मैंने उन्हें बुलाया नहीं, शायद कभी बुलाऊँगी भी नहीं।