Nandita Srivastava

Tragedy

5.0  

Nandita Srivastava

Tragedy

माँ उठ ना

माँ उठ ना

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यह कहनी कहूँ या घटना कहूँ समझ में नही आता।

यह उस घर की कहानी हैं जहाँ माँ, माँ नहीं थी एक बोझ थी।

उस घटना को देखकर तो नहीं कहेगें सुनकर हमारा मन नफरत से भर जाता उन परिवार वालों के लिये मन करता है। कुछ कर डालूँ।

यह कैसा समाज है जहाँ पर माँ बाप की जगह नहीं है। बिना मेरूदंड के समाज के लिजलिजे अहसास सें हमें घिन आती है। यह घटना को सुनकर हमारी मुठिाँ तन गयी थी पर हमने आप को बहुत ही अधिक निसहाय पा रहे थे।

यह घटना उस घर की है जहाँ पर दो भाई थे। एक मंद विवेक और एक ठीकठाक। माँ ने मेहनत मजदूरी कर के बेटों को पाला। बचपन में ही पिता शिव के पास चले गये थे। माँ ने बड़े ही अरमानों से बेटो को पाला। बहू भी ले आयी बड़े अरमानों से।

बड़ा बेटा नौकरी करता था। बहू आयी तो उसको लगने लगा कि यह दोनों यानि हमारे यहाँ से जाये पर निकाले कैसे। माँ धीरे धीरे बीमार रहने लगी। तरह तरह से सताती इन लोगों को।

खाना ना देना। वह माँ एक कौर चावल के लिये तरसती रहती। छोटा वाला बेटा गिड़गिड़ाता रहता। भाभी, माँ को तो एक कोर चावल दे दों पर कोई असर नहीं।

एक दिन की घटना थी। माँ भूख से बिलबिला रहीं थी। छोटे बेटे ने थोडा चावल चुरा कर माँ को खिलाना चाहा। भाभी ने पकड़ कर दोनों को पीटते हुये घर से बाहर निकल दिया।बड़े बेटे ने भी अपनी बीवी का ही साथ दिया। छोटा बेटा गिड़गिड़ाता रह पर उन लोगो पर कोई असर ना हुआ। शिव ने छोटे बेटे को विवेक तो नहीं दिया था पर गले में सुर दिया था। वह गाता बहुत बढ़िया था। माँ को बैठाकर, गा गा कर लोगो से पैसे बटोर कर लाया तब तक माँ शिव के पास जा चुकी थी।

वाह रे समाज। कैसा है तू, माँ का अपमान तू चुप। बस आप लोगों से यही कहेगें की माँ बाप को उनकी सही जगह दो।


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