"मां कहां हो तुम"
"मां कहां हो तुम"
हर रोज हर बात में,
हर काम और जज़्बात में,
जिक्र तुम्हारा है।
कहने को बाँटने को,
बहुत कुछ है मेरे पास
पर याद आ जाता है
अब नहीं हो तुम।।
एक अधूरापन
मन खाली-खाली
काश तुम होतीं।
थोङी सी भी हो परेशानी
तुम आस बँधाती थीं।
मन की कह देते थे।
तुम सहारा बन जाती थीं।।
नहीं अब कोई
जिसे कह सकें
बिन संकोच
गर कहें भी किसी अपने से,
दर्द दिल का तो..
याद करता है वो भी तुम्हें
तुम थी अवलम्ब उनका भी
फिर मिलके याद करते हैं
हम सब साथ-साथ
माँ कहाँ हो तुम!
माँ कहाँ हो तुम।