मां कभी अनपढ़ नही होती
मां कभी अनपढ़ नही होती
आज सुबह से ही सुधा जी थोड़ी उदास सी लग रही थी। वो काम तो कर रही थी पर बेमन से...सब के साथ हो के भी वो अपने आप अकेली महसूस कर रही थी। पर उनके परिवार वालों को इनकी कोई परवाह नहीं...सब अपने आप में व्यस्त है। सुधा जी की शादी बहुत ही कम उम्र हो गई थी। वो दसवीं की भी पढ़ाई भी पुरी नहीं की थी और उनके मां बाप ने उनकी शादी कर दी थी..वो आगे पढ़ाना चाहती थी। पर ससुराल में उनके ससुर जी को ये सब पसंद नहीं था। वही पुरानी रीति रिवाज...पर सासु मां चाहती थी की सुधा जी पढ़ें पर अपने पति के फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं। सुख सुविधाओं की कमी नहीं थी। पर समय के साथ सोच नहीं बदली थी। और उसके बाद सुधा जी अपने इस अधूरे सपने के साथ अपनी गृहस्थी में रम गई। पर आज सुधा जी सुबह से ही बहुत खोई खोई सी लग रही थी। और ये बात उनकी सासु मां से छिपी नहीं थी..वो उनके चेहरे के भाव को देख कर ही समझ गई थी कि कोई तो बात है जो उसे बहुत परेशान कर रही है....
तभी सुधा जी की सासु मां ने सुधा जी को आवाज लगाई "बहु, कहाँ हो...जरा इधर तो आना..."
"जी मां अभी आई" सुधा जी अपने हाथों को साफ करते हुए....
"हां मां बोलीए, क्या हुआ? कुछ चाहिए?? सुधा जी बिना रुके सवालों की बौछार कर दी..."शांत हो जा, इधर आ मुझे कुछ नहीं चाहिए... थोड़ी सांस तो ले ले पहले" सुधा जी को उनकी सासु मां शांत कराते हुए प्यार से अपने पास बैठने को कहती है....सुधा जी आराम से अपनी सासु मां के पास बैठती है तब सासु मां कहती हैं सुधा जी से "क्या बात है, इतनी उदास क्यों हो, सुबह से देख रही हूँ ... मुझे नहीं बताओगी.."तब सुधा जी कहती हैं "मां एक बात है जो मन ही मन बहुत दुःखी कर रही है.... मां आप जानती है ना कि मैं आगे पढ़ना चाहती थी...पर बाबु जी को बहु का पढ़ाना पसंद नहीं था... और जब मैंने इनसे कहीं (अखिलेश जी सुधा जी के पति) तो इन्होंने भी हंस कर कहा पढ़ कर करना क्या है... आगे चल कर चूल्हा चौंका ही करना है... उन्होंने भी मेरी भावनाओं को नहीं समझा.. और मैंने भी इसे अपनी किस्मत मनाकर अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई...ये सोचकर की मेरी भावनाओं को मेरे बच्चे समझेंगे पर मैं गलत साबित हुई....आज जब अपने दोनों बच्चों को (सुधा जी एक बेटी प्रियंका, और एक बेटा आर्यन है) उनके पढ़ाई के लिए कुछ कहती तो कहते आपको क्या कुछ समझ में आने वाला आप तो अनपढ़ हैं.... मां उनकी ये बातें सुनकर मन बहुत दुःखी हो गया है... मानती हूँ मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूँ पर मैं अनपढ़ नहीं हूँ ... मुझे बस मौका नहीं मिला नहीं तो मैं भी पढ़ सकती थी।
"अब मौका है....अब पढ़ लो" सासु मां ने सुधा जी को कहा.…..."पर मां ये भी कोई उम्र है पढ़ने की लोग क्या कहेंगे...सुधा जी अपनी सासु मां से कहीं।
"सुन बेटी सीखने की कोई उम्र नहीं होती बस अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए... सीखने की ललक होनी चाहिए जो तेरे अंदर अभी भी जिंदा है... तुम किसी को साबित करने के लिए मत पढ़ो... खुद की खुशी और अपने के लिए करो... आज के आधुनिक समाज में बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध हो गई है बस उसी का सही उपयोग करो...वो जमाना कुछ और था...ये जमाना कुछ और है। अपने आत्मसम्मान को कभी ठेस पहुंचाने मत दो किसी को भी नहीं... तुम ने इतने दिन अपने परिवार की बिना किसी सर्वार्थ के सेवा की... और बदले में तुझे क्या मिला....सब की आलोचना.. कभी पति से कभी बच्चों से...वो भी उन बच्चों से जिन्हें दुनियादारी की सीख.. जिंदगी की सीख तूने सिखाई है.. बेटी मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम आज के जमाने के तौर तरीकों में डाल जाओगी... तुम अपनी दसवीं की परीक्षा भी अच्छे नंबर से पास करोगी....अब अपने लिए कुछ करने की बारी है.. मैंने कभी तुम्हें बहु नहीं हमेशा बेटी के रूप देखी हूँ ...बस ये मां चाहती है कि उसकी बेटी पढ़ें और उसे कोई अनपढ़ ना कहे...."अपनी सासु मां की बात सुनकर सुधा जी के अंदर भी हौसला बढ़ा और उन्होंने तय किया कि वो अपनी दसवीं की परीक्षा दे कर रहेगी... सुधा जी ने ये बात ना अपने पति और ना अपने बच्चों किसी से भी नहीं.. सिर्फ उनकी सासु मां को पता था....।
सुधा जी को प्रौढ़ शिक्षा संस्था के बारे में पता चला और फिर क्या उन्होंने अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने में लग गई... जिसके कारण वो अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी। उनके इस बदले व्यवहार से उनके पति और बच्चे भी हैरान थे...पर सासु मां बहुत खुश थी.... समय के साथ सुधा जी ने भी बहुत कुछ नया सीख ली थी। वो अब कुछ भी काम के लिए ना अपने बच्चों पर ना अपने पति पर निर्भर थी... एक दिन उनकी बेटी प्रियंका ने सुधा जी कहा "क्या बात मां आज कल बहुत ही अलग लग रही है...अब हमें पढ़ाई के लिए कुछ नहीं कहती...???" नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं है.. तुम लोग अब बड़े हो गए हो... मुझे आज के जमाने की समझ कहा....मैं तो अनपढ़ हूँ ..??? सुधा जी अपनी बेटी को कही..... उनकी ये बातें सुनकर प्रियंका को अपनी कही बातों का बहुत बुरा लगा...पर बहुत देर हो गई थी.....
आखिर वो दिन आ ही गया जब सुधा जी ने अपनी दसवीं की परीक्षा पास कर ली... सिर्फ पास ही नहीं की थी बल्कि उस समय की सबसे अधिक नंबर लाने वाली प्रतिभागी बनी...... उन्हें उनकी संस्था की ओर से सम्मानित भी किया गया... सुधा जी की सफलता को देखते सासु मां की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते हैं....।।
रात को खाने की टेबल नये नये पकवानों से भरी थी... जिसे देखकर अखिलेश, प्रियंका आर्यन बहुत चौंकते हुए सुधा जी पुछते है.... तब सासु मां कहती हैं...आज बहुत खुशी का दिन है... इसलिए सुधा ने ये सब बनाया है....पर आज तो ना किसी का जन्मदिन है, ना शादी की सालगिरह और नहीं किसी को कोई पुरस्कार मिला है.. अखिलेश ने अपनी मां से कहीं.... तभी सासु मां कहती हैं...."आज मेरी बेटी ने दसवीं की परीक्षा सिर्फ पास ही नहीं की बल्कि अव्वल भी है और उसे सम्मानित भी किया गया है।" उनकी बात सुनकर सब अचंभित हो जाते हैं ..... तभी सुधा अपने नंबर और सम्मानित किए गए तस्वीर दिखाती है.....उस पल सुधा जी के पति और बच्चों को कुछ समझ में ही नहीं आता है की वो क्या बोले... तभी प्रियंका और आर्यन अपनी मां से माफी मांगते हैं तब सुधा जी कहती हैं "उस दिन अगर तुम दोनों ने वो बात नहीं कहीं होती तो मैं शायद कभी अपना ये अधूरा सपना पूरा नहीं कर पाती.. थैंक्यू बेटा... और दोनों को गले लगा लेती है... अखिलेश जी समझ ही नहीं पाते वो अपनी पत्नी से क्या कहें "सुधा मुझे माफ़ कर दो... मैंने कभी भी तुम्हारी भावनाओं की कद्र नहीं...पर आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं सुधा का पति हूँ "।
अपने परिवार को खुश देख उनकी आंखों में अपने लिए सम्मान को देखकर सुधा जी भावुक हो जाती है... और सासु मां को धन्यवाद देती है और कहती हैं अपने मेरे सपनों को पंख दे दी... तभी सासु मां कहती हैं..."मां कभी अनपढ़ नहीं होती" और एक दूसरे को गले लगा लेती है..।।
सीखने की कोई उम्र नहीं होती....मां कम पढ़ी-लिखी हो या ना पढ़ी हो पर वो कभी अनपढ़ नहीं होती.... क्यों की जिंदगी जीने का सबक मां ही सिखाती है....।