मां का स्पर्श
मां का स्पर्श
"बहुत दिनों बाद आज पेट भर खाना और गर्मास में सोने की जगह मिली है तो नींद अच्छी आएगी", सोचते हुए मोहन ने पुराने कम्बल में खुद को दुबका लिया। शादी-ब्याह में जूठे बर्तन धोने का ये नया काम मिलने से अब शायद उसे भूखा नही सोना पड़ेगा।
कड़कती ठंड में पेट भर खाना और गर्म बिस्तर ने जल्द ही उसको सपनों की दुनिया मे पहुंचा दिया था। जब मां जिंदा थी तो कितने प्यार से उसको रोटियां खिलाती और ठंड में माँ का आँचल में कम्बल सी गर्मास मिलती। सुबह बड़े लाड़ से अपने लाल को जगाती और ना उठने पर कहती देख सूरज की लालिमा आंगन में पड़ते ही चिडियों की आवाज़ से सारा आंगन चहक रहा है। पीछे तालाब में खिले फूल भी भवरों के साथ खेल रहे हैं।
लेकिन एक दिन अचानक आई बाढ़ सब कुछ बहा ले गई और मोहन भटकते हुए महानगर चला आया और भूख प्यास से तड़पते मोहन को ये काम मिल गया। अभी वो सपना देख ही रहा था कि अचानक से उसकी पीठ पर जोरों की एक लात पड़ी। सेठ चिल्ला चिल्ला कर उसको काम पर लगने को कह रहा था।
आज भी वही भोर थी लेकिन प्यार से जगाने वाली मां ना थी। सेठ अभी भी चिल्ला रहा था लेकिन मोहन उठते ही मुस्कुराते हुए फुर्ती से काम में लग गया ये सोचते हुए कि आज रात फिर कही भोज में बर्तन धोने के बाद भरपेट खाना और सुखद नींद में फिर से मां के स्पर्श की अनुभूति मिलेगी।