मां का मेहनताना

मां का मेहनताना

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मां, आप सोने से पहले रात को पापा से दस रुपये क्यों लेती हो बताओ ना? और आपके उस सन्दूक में ऐसा क्या है जिसे आप हमेशा ताला लगा जर रखती हो और हमें हाथ भी नही लगाने देती हो?, राजू और गुड़िया ने पूछा।

"सारे दिन के काम का मेहनताना लेती हूं" मां ने हंस कर जवाब दिया। 

"क्या होगा मां इनसे, इतने से पैसों से तो आप कुछ भी नही कर पाओगे।" राजू ने कहा।

"मुझे तो सब कुछ तेरे पापा ला कर दे देते है जो चाहिए होता है, पर कभी जरूरत पड़ेगी तो ये मेरे जमाये हुए दस रूपये भी किसी ना किसी काम आ ही जायेंगे।" मां बोलते हुए रसोई के काम मे लग गई। 

राजू और गुड़िया यही सोचते कि इतने से पैसों से मां क्या खरीदेगी। ऐसे ही समय बीतता गया पर मां की दस रुपये लेने की आदत जस की तस बनी रही। गुड़िया पढ़ लिख कर ससुराल चली गई और राजू भी पढ़ाई पूरी कर अपने पापा के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा।

मेहनत दुगनी हुई तो व्यवसाय भी दुगना हुआ। मां अब पापा के साथ साथ राजू से भी रोज दस रूपये लेती और अपने उस सन्दूक में रख देती। राजू अब भी मां की इस सनक पर हंसता जरूर था लेकिन पहले की तरह कुछ पूछता नही था। 

ऐसे ही समय कट रहा था कि अचानक बाजार में मंदी आने से व्यवसाय में मुनाफा कम हो गया फिर भी राजू और उसके पापा ने संभाले रखा किसी तरह। राजू की भी शादी हुई और परिवार बढ़ने लगा लेकिन काम था कि दिन पर दिन कम होता जा रहा था, उधर पापा भी सेहत की वजह से अब पहले की तरह समय नही दे पाते थे। 

राजू एक दिन घर पर परेशान बैठा अपने पापा से बात कर रहा था कि जब तक बाजार ठीक नही होता अगर अलग से एक और छोटा सा काम धंधा शरू किया जाए ताकि घर का खर्चा निकल जाए।

पापा ने कहा सुझाव तो अच्छा है लेकिन व्यवसाय में घाटे के चलते जमा पूंजी भी लगभग खत्म के बराबर है ऐसे में हम नया कुछ करने के लिये पूंजी कहा से लाएंगे। 

राजू की मां अपने कमरे में बैठी गीता पाठ करते करते सब बातें सुन रही थी। रात को खाना खाने के बाद उन्होंने राजू को कमरे में बुलाया और अपने सन्दूक की चाबी देते हुए बोली, "जा सन्दूक खोल कर उसमें रखे सारे दस के नोट निकल ला।" 

राजू ने सन्दूक में से सारे नोट निकाल मां की तरफ बड़ा दिए। मां ने उसे इशारे से सारे नोटों को गिनने के लिए बोला। राजू ने जब गिनना शुरू किया तो उसकी आंखें फ़टी की फ़टी रह गई। उस सन्दूक में कुल मिलाकर दस लाख से ऊपर नगदी निकली।

"मां आपने इतने सालों में सन्दूक को किसी के हाथ नही लगाने दिया तो अचानक आज ये सब क्यों मा", राजू अभी भी आश्चर्य से अपनी मां को देख रहा था। 

"राजू इन पैसों से अपना नया काम शुरू कर। मेरा मेहनताना तो मेरे परिवार के लिए ही है।" मां ने जवाब दिया। 

राजू चुपचाप बैठा सोचने लगा कि मां की इस सनक ने आज पूरे परिवार को बचा लिया। 


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