माँ का दुख
माँ का दुख
"सुना, ये तुम्हारा लाडला क्या कह रहा है..एक तो प्रेम विवाह कर रहा है...चलो हम मान गये, पर अब तो हद कर रहा है..कहता है कोर्ट मैरिज करेगा।" क्रोध से फुफकारते हुए रामसरन बीवी से कह रहा था।
"हाँ करूँगा...क्योंकि अगर मैने आपके हिसाब से शादी की तो शराब की नदिया बहा देनी है आपने, और पी कर आप जो तमाशे करते हैं..खास तौर पर माँ के साथ जो ओछा बर्ताव करते हैं..बस नहीं चाहिए वो सब कुछ।" विश्वास ने भरे गले से कहा।
" तो, तेरी माँ ने भड़काया है तुम्हें..इसे तो अभी ठीक।"
"हाथ मत लगाना माँ को, उसने कुछ नहीं कहा। आपने कभी बीवी की तो छोड़ो उसे तो आप पराये घर की मानते हो, अपनी जीवन दायिनी माँ की पीड़ा भी नहीं समझी..पर मुझे मेरी माँ का दुख दिखता है।" कह कर विश्वास तेजी से गेट के बाहर निकल गया, रामसरन को लगा उसकी जबान को लकवा मार गया।