Dr. Hafeez Uddin Kirmani

Drama

4.7  

Dr. Hafeez Uddin Kirmani

Drama

माँ जैसा कोई नहीं

माँ जैसा कोई नहीं

11 mins
222


(एकांकी नाटक)


पात्रः

1-अंबर - उन्नीस वर्ष का युवक।

2-अंबर की माता।

3-अंबर के पिता।

4-अंबर की दादी।

5-बुआ

6-जंगी- अंबर के घर का सहायक।

7-अंबर के मित्र- निधि, रोहण, सक्षम एवं मनोहर।


(रंगमंच पर एक मध्यवर्गी परिवार की महिला के कमरे का दृश्य है। कमरे में दाईं ओर सिंगार मेज़ है जिस पर मेकअप की चीज़ों के साथ साथ मोबाइल फ़ोन भी रखा हुआ है। उसके बग़ल में एक बंद खिड़की है जिस पर नीला पर्दा पड़ा है। सामने की दीवार से लगी हुई एक मसेहरी है जिस पर फूलदार चादर बिछी हुई है। बाईं ओर कमरे का दरवाज़ा है जिससे लगी हुई एक छोटी मेज़ और कुर्सी रखी हुई हैं। मेज़ पर कुछ पुस्तकें और मासिक पत्रिकायें रखी हैं। पर्दा उठने के समय अंबर अपने लम्बे बालों की पौनी-टेल बनाकर उसमें रबरबैंड लगा रहा है और उसकी मम्मी अपने बालों में कंघी कर रही हैं।)


अंबर :

मम्मी मुझे कुछ पैसे दे दीजिये। मैं बाहर जाकर कुछ खाना चाहता हूँ।

माँ :

तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी नहीं लगती हैं। रोज़ रोज़ बाहर का खाना खाते हो एक दिन तबीयत ख़राब हो जायेगी।

अंबर :

मम्मी आपको मेरी कोई बात अच्छी नहीं लगती। आप मेरी हर बात में बुराई ढूंढती हैं। मैं अगर खाना नहीं खाता हूँ तो मुझे खाना खिलाने के पीछे पड़ जाती हैं और अगर अपनी मर्ज़ी का खाना खाना चाहता हूँ खाने नहीं देती हैं।

माँ :

बाहर का उल्टा सीधा खाना खाओगे तो रोकूँगी नहीं? 

अंबर :

लाखों लोग बाहर का खाना खाते हैं। मेरे साथ के लड़के लड़कियाँ भी बाहर खाते हैं। आप क्या चाहती है? सब लोग चटखारे ले ले कर, मज़े मज़े की चीज़ें खाते रहें और मैं खड़ा ललचाता रहूँ?

माँ :

तुम्हारा पेट बहुत जल्दी ख़राब हो जाता है इसलिये फ़ास्ट फ़ूड खाने से मना करती हॅूँ।

अंबर :

नहीं यह बात नहीं है। आपको मेरी हर बात बुरी लगती है। आप मेरी हर बात काटती हैं। अगर जल्दी सो जाओ तो कहती हैं कि इतनी जल्दी न सोया करो, पढ़ाई किया करो और अगर देर तक जगता रहूँ तो कहती हैं कि अब सो जाओ नहीं तो कॉलेज के लिये देर हो जायेगी। 

माँ :

तुम्हारी सारी मुसीबतों की जड़ यही है कि तुम्हें यह पता नहीं होता है कि कब कौन सा काम करना चाहिये और कब कौन सा काम नहीं करना चाहिये। मुझे तुम्हारे लिये जो बात ठीक लगती है वही कहती हूँ।

अंबर :

आप सही ग़लत कुछ नहीं देखती हैं आप डिक्टेटर हैं। आप बस अपनी बात मनवाना जानती हैं। आपको मेरे इमोशन्स की, मेरी फ़़ीलिंगस की कोई चिंता नहीं है। कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि जैसे आप मेरी सगी माँ हैं ही नहीं। आप से अच्छी तो सौतेली मायें होती हैं। 

माँ :

तुमने कितनी सौतेली मायें देखी हैं?

अंबर :

सरल की मम्मी सौतेली हैं लेकिन वह सरल को किसी बात के लिये मना नहीं करती हैं। जब जितने पैसे मांगता है बिना कुछ पूछे दे देती हैं। न उसके आने पे टोक है न जाने पर। क्या मस्त आज़ादी की ज़िंदगी जी रहा है वह। 

माँ :

अपने पापा से कहो तुम्हारे लिये भी एक सौतेली माँ ले आयें। 

(मोबाइल की घंटी बजती है। आश्चर्य के साथ मोबाइल का नम्बर देखती हैं। )

माँ :

पापा का फ़ोन इस समय! (घबरा कर) अरे कब गिरीं? ज़्यादा चोट तो नहीं आई ?..... पापा आप परेशान न होइये। मैं टैक्सी करके तुरंत पहुँच रही हूँ। 

(अंबर से) पापा ने बताया है कि मम्मी गिर गईं हैं और उनके पैर में काफ़ी चोट आई है। मैं मम्मी को देखने जा रही हूँ। 

(माँ जल्दी जल्दी तैयार होकर पर्स उठाती हैं बाहर निकलते हुये अंबर को देखती हैं।)

माँ :

बेटा कहीं जाना नहीं। तुम्हारे पापा भी अभी निकल रहे हैं। दादी सतसंग में गई हैं। घर का ध्यान रखना और अपना भी ध्यान रखना। मैं जल्दी ही आ जाऊँगी।

अंबर :

(स्वयं से) मुझे अपना ध्यान रखने की कोई ज़रूरत नहीं बहुत लोग हैं मेरा ध्यान रखने वाले, मेरे इमोश्न्स को समझने वाले- मेरे पापा हैं, मेरी बुआ हैं, मेरे दोस्त हैं, मेरी दादी हैं, मेरी निधि है। 

(इतने में अंबर के पेट में दर्द होने लगता है और वह पेट पकड़ कर कुर्सी पर बैठ जाता है और ज़ोर से डकार लेता है। उसकी डकार सुनकर पापा कमरे में प्रवेश    करते हैं और अंबर के पास आते हैं।) 

पापा :

क्या हुआ अंबर?

अंबर :

मेरे पेट में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है और जी मतला रहा है पापा।

(पापा उसे छूकर देखते हैं।)

पापा :

अरे तुम्हें तो बुख़ार भी है। चलो बिस्तर पर लेट जाओ। 

(पापा सहारा देकर अंबर को लिटाते हैं और जंगी को आवाज़ देते हैं।)

पापा :

जंगी दवा का डिब्बा ले आओ।

(जंगी दवा का डिब्बा लाकर देता है। पापा दवा निकाल कर अंबर को खिलाते हैं और जाने लगते हैं।)

अंबर :

पापा आप थोड़ी देर मेरे पास बैठ जाइये।

पापा :

नहीं मैं बैठ नहीं सकता। मैं तुम्हारी माँ की तरह ख़ाली नहीं रहता हूँ। मेरे पास बहुत से काम हैं। मुझे अभी टूर पर जाना है। परसों तक आऊँगा। अगर तबीयत ठीक न हो तो जंगी को भेज कर डाक्टर अंकल के यहाँ से दवा मंगवा लेना। जंगी तुम्हारा ध्यान रखेगा। 

अंबर :

(पापा चले जाते हैं। जंगी अंबर के पास आता है।) 

जंगी :

भय्या अभी आप दवा खाइन हैं। थोड़ी आराम करि लो। (कान के पास आकर) और भय्या मौका बड़ा अच्छा है। निधि जी को फोन कर के बुलाई लो। अकेले मिलै का इससे अच्छा मौका नाहीं मिलिये। 

अंबर :

मैं ख़ुद ही निधि को बुलाने वाला वाला था। 

(निधि का नम्बर मिलाता है)

निधि मैं घर पर अकेला हूँ क्या तुम आ सकती हो ?...... नहीं कोई नहीं है..... ठीक है जल्दी आ जाओ मैं तुम्हारा इंतिज़ार कर रहा हूँ..... कहीं जाने का प्रोग्राम तो मुश्किल है...... अच्छा पहले तुम आओ तो।

(अंबर फ़ोन एक ओर रख देता है और जंगी से कहता है।)

अंबर :

जंगी थोड़ी देर मेरे पास बैठ जाओ। बहुत अकेलापन लग रहा है। निधि के आने के बाद चले जाना।

जंगी :

अरे भय्या कैसी बात करत हैं। हम तोहरी महतारी हैं का? ताहरी डकार से बहुत बदबू आत है। हमें भी जायके है अपनी संतो से मिलै। अगर ऊ रूठ गई तो हमैं    सारा जीवन कुँआरा बिताये के पड़ी। 

(जंगी चला जाता है। निधि अंदर आती है। वह टैंक-टॉप और शार्टस पहने हुये    है। कुर्सी खींच कर अंबर के निकट बैठ जाती है।)

निधि :

तुमने बताया नहीं कि तुम्हारी तबीयत ख़राब है। 

अंबर :

हाँ पेट में बहुत दर्द है और बुख़ार भी है? पूरा बदन दर्द से टूट रहा है। 

निधि :

आई एम सो सैड। अब मेरी आउटिंग का क्या होगा? 

(पर्स से मोबाइल निकालती है और रिकी को नम्बर मिलाती है।)

अंबर :

तुम किसे काल कर रही हो? 

(जवाब नहीं देती है, नम्बर मिलाये जाती है।) 

निधि :

हाय रिकी। क्या कर रहे हो। आर यू फ्ऱी...... ओ नो.......। मेरा आउटिंग का मूड था....... तुम मेरे लिये अतुल की बर्थडे पार्टी छोड़ दोगे! यू आर सो केआरिंग। तुम    मेरा कितना ख़्याल रखते हो।

अंबर :

तुम रिकी के साथ जाओगी। रिकी मेरा कितना अच्छा दोस्त था। तुम्हारे लिये मैंने उससे लड़ाई की। आज मैं ज़रा सा बीमार हूँ तो तुम मेरा साथ छोड़ दोगी? तुमने सुख दुख में साथ देने का वादा किया था। थोड़ी देर के लिये मेरे पास बैठ    जाओ।

निधि :

इतने सैंटी न बनो। मेरा इमोश्नल ब्लैकमेल मत करो। मैं तुम्हारे पास बैठूँगी तो तुम बस निगेटिव बातें करोगे। इसका पिटज़ा ख़राब था उसकी पैटी ख़राब थी इसलिये मेरा पेट ख़राब हो गया। मैं बहुत जॉली मूड में हूँ। मैं अपना मूड ख़राब नहीं करना चाहती।

अंबर :

तुम थोड़ी देर के लिये भी मेरे पास नहीं बैठ सकतीं?

निधि :

थोड़ी थोड़ी देर पर गंदी डकारें ले रहे हो। मैं कोई तुम्हारी मम्मी हूँ जो ऐसे में तुम्हारे पास बैठूँ। तुम्हारे पास से कैसी बदबू आ रही है। किसी से अपने कपड़े बदलवा लेना। मैं चलती हूँ। टेक केयर।

(निधि चली जाती है।)

अंबर :

(अंबर मोबाइल पर रोहण का नम्बर मिलाता है) हाय रोहण। तुम्हें कुकरी में बहुत मज़ा आता है। ज़रा घर चले आओ कुछ पकवाना है।........ ठीक है....... मनोहर और सक्षम को भी ले आना।

(तीनों मित्र आते हैं।)

रोहण :

बताओ, क्या पकाना है। पिट्ज़ा, पुडिंग, केक, पेस्ट्री, चाउमिन या कुछ और।

अंबर :

यार मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं यह सब नहीं खा सकता। 

सक्षम :

देख नहीं रहे हो इसकी शक्ल कैसी चूहे जैसे हो रही है। 

रोहण 

तो क्या खाओगे?

अंबर :

मेरे लिये ख़ूब गली हुई मूँग की दाल पका दो।

मनोहर : 

हायें! क्या इसी लिये बुलाया था।

सक्षम :

यार यहाँ से फूटलो। अभी आटा गुंधवायेगा और रोटी बिलवायेगा। इसने हम लोगों को देहात का रसोइया समझ रखा है।

रोहण :

लगता है हम लोगों को भी मूंग की दाल ही से पेट भरना होगा?

अंबर :

तुम लोगों के लिये फ्रि़ज में बहुत कुछ है जो जी चाहे पकाओ जो जी चाहे खाओ।

सक्षम :

चलो मूँग की दाल पका देते हैं। कहीं मर गया तो श्मशान घाट ले जाने का एक काम और बढ़ जायेगा।

रोहण :

तुम में से कोई मूँग की दाल पहचानता है?

मनोहर 

हाँ हाँ मैं जानता हूँ पीले रंग की होती है।

सक्षम :

इतनी बड़ी नालेज रख कर यहाँ क्या कर रहे हो? जाओ टी.वी. पर खाना पकाने का प्रोग्राम दो।

मनोहर 

चलो किचन से सारी दालें लाकर गैस करते हैं। 

सक्षम :

कहीं से शेरलाक होम्स आ जाता तो हमारा काम बहुत आसान हो जाता।

(यह लोग बारी बारी से दाल के डिब्बे सामने रखते हैं और हर दाल को छू छू कर देखते हैं। मनोहर चने की दाल को मलता है और कहता है।)

मनोहर 

देखो यह दाल कितनी मोटी और खुरदुरी है। हेल्थ देने वाली दाल को भी हेल्दी होना चाहिये। यही मूँग की दाल होगी।

सक्षम :

हाँ। लाजिक के हिसाब से तो इसे ही मूंग की दाल होना चाहिये।

रोहण :

मैं दाल चढ़ाने जा रहा हूँ। तुम लोग इतनी देर में फ्रि़ज पर हाथ साफ़ करो।

अंबर :

तुम लोग थोड़ी देर मेरे पास बैठ नहीं सकते?

मनोहर 

छुट्टे साँड की तरह गंदी गंदी डकारें ले रहे हो कौन बैठेगा तुम्हारे पास? 

सक्षम   ः

 यार यह हम लोगों को अपनी मॉम समझ रहा है। (सब हंसते हैं)

(रोहण मेज़ पर गर्म दाल रखता है।) 

रोहण :

थोड़ी देर में खाना, अभी बहुत गर्म है।

मनोहर : 

चलो चलते हैं अतुल की बर्थ डे पार्टी में जाना है, देर हो जायेगी। 

सक्षम :

बाई। यार पार्टी में तुम्हारी कमी बहुत खलेगी। गेट वेल सून।

(बुआ का नम्बर मिलाते हुए अपने आप से बात करता है।)

अंबर :

बुआ को बुलाता हूँ। वह मुझे बहुत चाहती हैं। वह मेरी अकेलेपन की फ़ीलिंग को समझेंगी। वह मुझे एक मिनट के लिये भी अकेला नहीं छोड़ेंगी। 

(नम्बर मिल जाता है) बुआ प्लीज़ आ जाइये आप से बातें करने का जी चाह रहा है...... थैंकयु बुआ।

(बुआ आती हैं)

बुआ :

तुम ठीक तो हो अंबर। कितने कमज़ोर हो रहे हो। 

अंबर :

बुआ मुझे बुख़ार है। पेट में दर्द है और सर दर्द से फटा जा रहा है।

बुआ :

तुमने सुबह से कुछ खाया है?

अंबर :   

मेरे दोस्त आये थे मूँग की दाल पका कर गये हैं। वही थोड़ी सी खाई है। दाल खाने के बाद दर्द और भी बढ़ गया है।

(बुआ दाल देखती हैं।)

बुआ :

तुम्हारे दोस्त बडे़ स्मार्ट बनते हैं। क्या उनको यह भी नहीं पता कि पेट की बीमारी में मूँग की दाल दी जाती है चने की नहीं। तुम्हारी शर्ट बदल देती हूँ बड़ी बदबू आ रही है। (शर्ट बदलते हुये) ऐसे में भाभी को यहाँ होना चाहिये था।

अंबर :

मम्मी नहीं हैं तो क्या हुआ आप तो हैं ना? आप भी तो मम्मी की तरह ही हैं।

बुआ :

हाँ। माँ की तरह न होती तो अपनी बीमार अंशी को छोड़ कर कैसे आती। लो दवा खा लो तुम्हें कितनी गंदी डकार आ रही है। ऐसे में कौन तुम्हारे पास बैठ सकता है। मैं जा रही हूँ। अंशी मेरे बिना बेचैन हो रही होगी। ज़रा देर उसके पास न बैठूँ तो परेशान हो जाती है। कोई ज़रूरत हो तो मेसेज कर देना। अभी मैं पतली खिचड़ी भिजवा रही हूँ।

(बुआ चली जाती हैं। अंबर सोचता है।)

अंबर :

सात बज रहा है। सतसंग ख़त्म हो गया होगा। दादी आ रही होंगी। वह मुझे लिपटा लेंगी। उनसे लिपट के मैं सो जाऊँगा।

(दादी आती हैं। अंबर को छूती हैं।)

दादी :

हाय घोर कलयुग आ गया है। बच्चा बुख़ार में झुलस रहा है, दर्द से तड़प रहा है और बहू गईं हैं मायके। इस कलयुग ने माँ से उसकी ममता भी छीन ली है। 

अंबर :

दादी थोड़ी देर मेरे पास बैठ जाइये और मेरा सर दबा दीजिये । 

दादी :

मेरे हाथों में इतना दम कहाँ कि तुम्हारा सर दबाऊँ। मैं बूढ़ी हो गईं हूँ। मुझे दस तरह की दवायें खाना पड़ती हैं। जिसको इस समय तुम्हारे पास बैठना चाहिये था वह तो अपने मायके में बैठी हुई हैं। उन्हीं को बुला कर बैठाओ। 

(दादी पर्स से दवा निकाल कर खाती हैं और अंबर के बग़ल में लेट जाती हैं। अंबर दादी से लिपटने की कोशिश करता है। इतने में उसे डकार आ जाती है। )

दादी :

मेरी तबियत पहले से ही ख़राब है, तुम्हारी डकार से मैं और भी बीमार पड़ जाऊँगी। मैंने अभी जो दवाई खाई है उससे नींद बहुत आती है। मुझे सोने दो। मुंह दूसरी ओर कर के लेटो।

(दादी सो जाती हैं। अंबर उठ कर टहलने लगता है और अपने आप से कहता है।)

अंबर :

माँ आप मुझे बहुत याद आ रही हैं। मैं बिल्कुल अकेला हूँ। मुझे आप की ख़ुशबू चाहिये, मुझे आपकी गोद चाहिये। मेरे मन की बात आप तक ज़रूर पहुँच रही होगी। माँ आप मुझे माफ़ कर दीजिये और प्लीज़ आ जाइये। आप के अलावा मेरा कोई नहीं है प्लीज़ आ जाइये।

(माँ आती हैं। अंबर माँ से लिपट जाता है। माँ उसे प्यार करती हैं।)

माँ :

तुमने मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया? बताया क्यों नहीं कि तुम्हारी तबीयत ख़राब है? 

अंबर :

मम्मी आप जब जा रही थीं तब मैंने खाने पीने को लेकर आप से बद्तमीज़ी से बात की थी। मैंने सोचा कि पेट दर्द की बात सुनकर आप फिर से नाराज़ हो   जायेंगी और फिर से डाटेंगी इस लिये मैंने आपको काल नहीं किया।

माँ :

क्या कभी कोई माँ अपने बीमार बच्चे से नाराज़ हो सकती है। मुझे जैसे ही तुम्हारे पापा से पता चला कि तुम बीमार हो, मैं फ़ौरन निकल पड़ी। तुम्हारा बदन जल रहा है, मुझे छोड़ो मैं ठंडे पानी की पट्टी लेकर आती हूँ।

अंबर :

नहीं आप कहीं न जाइये। आप मेरे पास बैठी रहिये मेरा बुख़ार अपने आप उतर जायेगा। आज मुझे पता चल गया कि प्यार प्यार में भी अंतर होता है। सब के प्यार शर्तों से सीमित होते हैं। किसी का प्यार मुँह की बदबू से सीमित हो जाता है और किसी का प्यार कपड़ों की गंदगी से। सिर्फ़ माँ का प्यार शर्तों से परे है।

अंबर :

आप मुझसे वादा कीजिये कि आप मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगी। 

माँ :

तुम भी वादा करो कि तुम कभी बीमार नहीं पड़ोगे। (दोनों और ज़्यादा लिपट जाते हैं और हंसने लगते हैं।)



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