माँ और ममता

माँ और ममता

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"कहाँ थी आप शगुन जी, वो सरला जी कह रही थी कि आज आपकी तबीयत भी ठीक नहीं थी।" शगुन को बाहर से आते देख के वृद्धाश्रम के मैनेजर ने पूछा। 

"मैं ठीक हूँ बेटा वो तो आज खाना नहीं खाया था, इसलिए जरा कमजोरी लग रही थी, और वो मैं कथा सुनने चली गई थी।" शगुन ने थकी सी आवाज में कहा। 

"क्या आपने खाना नहीं खाया ? क्यों नहीं खाया ? और कथा उसके लिये तो बड़े कमरे में टी वी है ना तो फिर ?" 

" आज अहोई अष्टमी है ना..... अपने विशु के लिए व्रत रखा था..... तीन घर छोड़ कर गोयल निवास है ना वहाँ कथा थी बस वही सुनने चली गईं थी।" शगुन ने मैनेजर की बात पूरी होने से पहले ही कहना शुरू कर दिया। 

"अब कथा सुन ली है घंटेभर बाद तारे निकल आयेंगे...... फिर खाना खा लूंगी तो थकावट भी ठीक हो जायेगी।" कह कर शगुन कमरे की ओर जाने लगी। 

मैनेजर सोच रहा था शगुन के बेटे विश्वास के बारे में जो साधन सम्पन्न होते हुए भी माँ को बोझ समझ वृद्धाश्रम छोड़ गया और दूसरी तरफ ये माँ जिसके पास कुछ नहीं सिवाय बोझिल साँसों के..... ओर उन्हें भी वो बेटे के मंगल के लिए लुटाने को आतुर। उसके हाथ शगुन के आदर में जुड़ गयेऔर स्वतः ही मुंह से निकल गया "तू धन्य है माँ...... धन्य है तेरी ममता।


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