"माॅ॑ कभी अशुभ नहीं होती"
"माॅ॑ कभी अशुभ नहीं होती"
रमाकांत जी और माला जी ने कुछ दिन पहले ही अपने छोटे बेटे की शादी की। छह-सात दिनों के बाद रोहित और कनिका हनीमून से लौट कर आए। रोहित की नौकरी दूसरे शहर में है तो एक दो दिन रुक कर वे वहां चले गए।
घर में रह गए रमाकांत जी, माला जी, बड़ा बेटा मोहित, बड़ी बहू राधा और उनका चार साल का बेटा आदि। मोहित ने अपनी शादी के दो साल के भीतर ही घर ले लिया था। जिन्दगी फिर से बंधे-बंधाए ढर्रे पर चलने लगी।
माला जी को खूबसूरत रंग जैसे हरा और लाल रंग बहुत अच्छे लगते हैं। उन्हें बार्डर वाली साड़ियां बेहद पसंद हैं। जल्दी से किसी का लाया कपड़ा भाता नहीं है, माला जी को।रमाकांत जी और माला जी साल में करीब पंद्रह दिनों के लिए रोहित के यहां जाते और वहां रहते। रमाकांत जी का मन इतने दिनों में ही भर जाता और वो वापस आ जाते।
माला जी जरूर आकर दिखाती कि कनिका ने उन्हें बायना में क्या क्या दिया जो भी त्योहार उनके सामने पड़े और जो भी पिछले साल भर में निकले उनके भी।कुछ त्योहार जैसे करवाचौथ, होई अष्ठमी, तीज, बड़मावस, बरसाते, सकठ ( संकट चतुर्थी) आदि त्योहारों में सास या जेठानी या ननद या ससुराल पक्ष की बड़ी बूढ़ी औरतों को या फिर बेटा या भतीजे को पूरी-पुए मिठाई एवम् साथ में श्रद्धानुसार कपड़ा, पैसा, जेवर दिया जाता है , उसे बायना कहते हैं। क्रमानुसार लिखा है जैसे किसी की सास न हों तो जेठानी या ननद या उपरोक्त अनुसार ही अधिकतर घरों में बायने का चलन है।
राधा भी अपने हिसाब से सभी त्योहारों के बायने सासु माॅ॑ को शादी के बाद से दिया करती है।
रोहित और कनिका भी एक प्यारे से बेटे के मम्मी पापा बन गए। बाबा दादी ने पोते राहुल के लिए दिल खोलकर फंक्शन किया, आदि के होने में जैसे किया वैसे ही। दो साल बाद राधा और मोहित को भी पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। बाबा दादी ने इस बार भी अपनी पोती रिया के लिए भारी भरकम फंक्शन का आयोजन किया।
सभी कुछ अच्छा जा रहा था कि अचानक से हृदयाघात से रमाकांत जी चल बसे। एक तूफान सा आ गया सबकी जिंदगी में। राधा-मोहित और कनिका-रोहित ने मांजी को सम्भाला।
कुछ दिन रुक कर कनिका और रोहित वापस चलें गए। मांजी लाल हरे रंग पहनने से मना करने लगी।
राधा एक पढ़ी लिखी समझदार महिला है तो उसने प्यार से मांजी को बताया कि मांजी को स्वयं और पापाजी को भी मांजी पर ये रंग बढ़िया लगते थे। मांजी राधा की बात और उसके पीछे छिपी उसकी भावना समझ कर मान गईं और इस तरह मांजी अपने पुराने ढंग से रहने लगीं।
कुछ समय पश्चात आदि का जन्मदिन पड़ा। फैमिली ग्रुप में राधा ने फोटो शेयर किए।
फोटो देख कनिका बोली," दीदी, मांजी को हल्के रंग पहनाया करो। पापाजी के बाद उन्हें ये रंग नहीं पहनने चाहिए।"
सुनकर राधा को उसकी छोटी सोच पर अफसोस हुआ पर राधा ने उसको अपने विचारों से अवगत करा दिया। हां, मांजी को ये बात नहीं पता चलने दी।
थोड़े दिन बाद कनिका की प्रेगनेंसी सुनकर मांजी उसकी देखभाल के लिए वहां गईं। पूरे आठ महीने उसकी देखभाल की। नवें महीने में कनिका की मम्मी भी वहां आ गईं । घर में आई एक और नन्ही परी और उसका नाम रखा गया पलक। नामकरण में मोहित, राधा और बच्चे भी गए। नामकरण धूमधाम से करवा कर दादी की तरफ से भी सब बढ़िया दे दिला कर मांजी मोहित के साथ लौट आईं। कनिका की मम्मी दो महीने अभी कनिका के पास ही रुकने वाली थीं।
इस बार कनिका ने जितने बायने पड़े थे साल भर में, वो राधा को दिए। राधा ने कहा भी कि ये हक तो मांजी का है, तो कनिका से पहले उसकी मम्मी ने कहा कि क्योंकि माला जी अब विधवा हैं , अशुभ हैं, तो उन्हें ये बायना नहीं दिया। कनिका ने भी अपनी मम्मी की हां में हां मिलाते हुए कहा कि राधा भी न दें बायना माला जी को।
जिसपर राधा ने दो टूक जवाब देकर माॅ॑-बेटी का मुंह बंद कर दिया कि," माॅ॑ कभी अशुभ नहीं हो सकती बच्चों के लिए। मैं शुरू से मांजी को देती आई हूॅ॑ और हमेशा उनको ही दूंगी।"
कनिका और उसकी मम्मी ने फिर भी राधा से ये कहा,"देख लो कहीं कुछ ग़लत न हो जाए। एक विधवा को बायना दे रही हो तुम।"
राधा ने अब सोच लिया कि इनको समझाना व्यर्थ है, बस इतना कहा,"आप चिंता न करें।"
घर आने के बाद राधा ने गौर किया कि मांजी हल्के रंग की साड़ी ही रोज़ाना पहन रही हैं।
राधा ने हरे रंग की साड़ी निकाल कहा," मांजी, ये पहनिए ये बहुत अच्छी लगती है आप पर। "
मांजी ने साड़ी वापस करते हुए कहा," नहीं, अब मैं ऐसे ही रंग पहनती हूॅ॑। यह रंग मुझ पर अब भले नहीं लगते हैं।"
"पर मांजी आपको तो ये रंग पसंद हैं।" राधा हैरानी से बोली
"कनिका ने भी कहा है और उसकी मम्मी ने भी समझाया कि अब मैं ऐसे रंग न पहना करूं।" मांजी ने बताया
"क्या?" राधा को अब कुछ समझ में आने लगा।
"ये देखो, पलक के नामकरण में समधन जी ने कितनी सही रंग की साड़ी दी है। तुम भी ऐसे ही दो-एक साड़ी ले आना। ऐसे ही रंग पहनूंगी मैं अब।"
मांजी ने साड़ी राधा की ओर बढ़ाते हुए कहाराधा ने देखा कि एक बहुत ही अजीब सी साड़ी जिसका रंग कुछ नीला-बैंगनी और मटमैले भूरे रंगों का मिला-जुला है, न कोई डिज़ाइन न कुछ बस खड़ी तिरछी कहीं कहीं पर लाइनें बनी हैं।
मोहित भी ऑफिस से आकर सास-बहू की बातें सुन रहा था। वो बोला,"मम्मी, ये भी कोई साड़ी है । पोता लग रही है, कामवाली भी लेने से मना कर देगी।"
राधा ने वो साड़ी हटाई और हरी साड़ी पकड़ाते हुए कहा," हमारी मांजी वैसे ही रंग पहनेंगी जैसे उनको हमेशा से पसंद हैं। कोई उनको आर्डर या जबरदस्ती नहीं कर सकता कि उनको कैसे रंग पहनने चाहिए। हमें अपनी मांजी पुरानी वाली ही चाहिए।"
"पर राधा समाज क्या कहेगा?" मांजी बोली
"समाज जबरन निर्धारित नहीं कर सकता , मम्मी। आपके बेटे-बहू आपके साथ हैं। आप जैसे पहले साड़ी पहनती थी वैसे ही पहनोगी" मोहित बोला
"हम भी आपके साथ हैं, दादी।" छोटी सी रिया आदि के साथ सुर में सुर मिलाते हुए बोली।
माला जी की ऑ॑खों में आंसू आ गए। उन्होंने अपने परिवार को बाहों में भर लिया।
कुछ दिनो बाद तीज का त्योहार आया। राधा ने माला जी को पूजा के बाद बायना दिया।
माला जी चौंककर पीछे हटते हुए बोली," राधा, बायना आदि को दो, मुझे नहीं।"
राधा ने हक से बायना उनके हाथ पर रखकर पैर छुए और कहा,"मांजी, माॅ॑ बच्चों के लिए हमेशा शुभ होती है। आप आशीर्वाद दीजिए कि मैं हमेशा आपको बायना देती रहूं।"
मांजी ने राधा को ढेरों आशीर्वाद देते हुए कहा , "कनिका ने बायना देना छोड़ दिया पापा के जाने के बाद से।"
राधा बोली," मांजी मुझे मालूम है पर मैं दकियानूसी बातों को नहीं मानती हूॅ॑।"
मांजी को अपनी बहू राधा की सोच पर नाज़ हो आया। बोली,"मैंने जरूर पिछले जन्म में मोती दान किए होंगे जो मुझे तुम जैसी बहू मिली।"
इस बार सास-बहू के बीच में मोहित और बच्चे नहीं आए । वो लोग दूर से ही देख रहे थे और मोहित को राधा जैसी जीवनसंगिनी पर गर्व और प्यार दोनों ही आ गया।
दोस्तों, क्यों समाज किसी औरत के पति की मृत्यु के बाद उसके जीवन को बेरंग करने पर लग जाता है? कोई माॅ॑ विधवा होने पर अपने बच्चों के लिए अशुभ कैसे हो सकती है? ये दो सवाल इस कहानी को जामा पहनाते वक्त मेरे दिमाग में थे। और मैं इन बातों को सिरे से नकारती हूॅ॑। पहले ही किसी अपने के खोने से दुखी इंसान के जीवन से रंग भी छीन कर उसकी जिंदगी को बदरंग कर दो, कहां की इंसानियत है ये? यह सब लोगों की छोटी सोच को दर्शाता है।
साथ ही मेरा ये मानना है कि माॅ॑ कभी अशुभ या अपशगुनी नहीं हो सकती है। वो सिर्फ और सिर्फ बच्चों का भला चाहती है और उनसे प्यार करती है। माॅ॑ का सम्मान करें। और ऐसी परिस्थितियों में उनके सहारा बनें नाकि उनको किनारा कर दें।
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