लत
लत
मीरा और रोहन बचपन से एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे। एक दूसरे की हर छोटी छोटी ख़ुशियों का ख़याल रखते थे। उनके घर वाले भी उनकी दोस्ती, समर्पण से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे। बड़ी मुश्किल से ग्रैजूएशन खतम कर दोनो ने एक साथ नौकरी के लिए अर्ज़ी डाली थी। दोनो के घर वाले इस तरह अकेले घर से बाहर निकल बड़े शहर जाकर नौकरी करने को लेकर चिंतित थे।
लेकिन जैसे भी कर के उन दोनो ने अपने घर वालों को मना लिया था। अपने अपने घर की आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं होने की वजह से मीरा और रोहन ने आगे ना पढ़ नौकरी करने का निर्णय लिया था और बड़ी मुश्किल से उनके माता पिता भी इस बात के लिए तैयार हो गए थे।
काफ़ी दिन इंतज़ार करने के बावजूद भी उन्हें कहीं से नौकरी का बुलावा नहीं आ रहा था। दोनो थोड़े हताश से होने लगे थे। घर के बड़े होने के कारण वो जल्द से जल्द घर वालों की आर्थिक रूप से मदद करना चाहते थे। मगर कही से उन्हें कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।
काफ़ी दिनों के इंतज़ार के बाद भी जब कोई बात नहीं बनी तो रोहन ने थक हार कर, वही कार के गरॉज़ में नौकरी करनी शुरू कर दी। पढ़े लिखे होने के बावजूद अच्छी नौकरी के अभाव में जब रोहन के पिता ने कहा, कि जब तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती क्यों नहीं तुम मेरे साथ मेरे मालिक के गराज में ही कोई नौकरी कर लेते। इसी बहाने घर में थोड़े ज़्यादा पैसे आने लगेंगे। जब शहर में नौकरी लगेगी तब की तब देखी जाएगी। ऐसे तुम हम सब के नज़र के भी पास रहोगे। घर की आर्थिक स्तिथि को ध्यान में रखते हुए, रोहन को मज़बूरी में नौकरी के लिए हाँ कहनी पड़ी।
बेमन से ही सही,मगर उसने नौकरी करनी शुरू कर कर दी। मगर वहीं मीरा अब तक ज़बाब के इंतज़ार में बैठी थी। धीरे धीरे उसके भी सब्र का बांध टूट रहा था। उसके घर की भी हालत कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी।
पिता अधिकतर बीमार ही रहते थे। माँ पास के ब्यूटी पार्लर में साफ़ सफ़ाई का काम करती थी। माँ के सुझाव पर मीरा भी ब्यूटी पार्लर में नौकरी करने के लिय राज़ी हो गए। मीरा को पढ़ी लिखी देख उसे वह रिसेप्शनिस्ट की नौकरी लग गए।
रोज़ काम ख़त्म कर मीरा और रोहन यही बात करते, की हमने क्या क्या सपने देखे थे अपने भविष्य के, और क्या करना पड़ रहा।
मेरा तो बिलकुल ही मन नहीं लगता इस काम में,रोहन ने मायूसी से कहा। इतने मेहनत से पढ़ने और अच्छे नम्बर से पास करने का क्या फ़ायदा हुआ। मैं तो जैसे भी कर या से निकलना चाहता हूँ।
तभी मीरा ने कहा,हाँ तुम ठीक कह रहे, मगर अब किया भी क्या जा सकता है। जो मिला है उसी में ख़ुश तो रहना ही होगा।
यह सुन, रोहन थोड़ा नाराज़ सा होता हुआ बोला,हाँ तुम ए॰सी॰ कमरे में बैठती हो तो तुम तो ख़ुश हो सकती हो मगर मुझे कड़ी धूप में पसीने में काम करना पड़ता है ना, तो मै तो ख़ुश नहीं हो सकता। इतना कह वह, वहाँ से तुरंत उठकर चला गया।
मीरा को भी बाद में लगा, की शायद रोहन ठीक ही कह रहा।
फिर जब वह दूसरे दिन, रोहन से मिली तो उसे समझाते हुए कहा,इतने हताश क्यों होते हो,अभी हमारा समय ठीक नहीं चल रहा। लेकिन हमेशा हम ऐसे ही थोड़े ना रहने वाले है। कुछ ना कुछ उपाय ज़रूर निकलेगा। बस तुम थोड़ा धीरज रख़ो। फिर रोहन ने भी हामी भरी।
इस तरह दोनो को काम करते करते एक महीना हो गए थे। मीरा ने तो फिर भी हालत से समझौता कर लिया था। मगर रोहन के सब्र का बांध टूटता जा रहा था।
तभी मीरा के ब्यूटी पार्लर में एक नौकरी के बारे में पता चला। दिल्ली जाकर नौकरी करने का मौक़ा था। उसके लिए ग्रैजूएट होना ज़रूरी था। यह नौकरी किसी बड़े फ़िट्नेस सेंटर में रिसेप्शनिस्ट का था।
मीरा ने तुरंत ही नौकरी के लिए अर्ज़ी डाल दी। काम से फ़ुरसत पाकर शाम को वह जब रोहन से मिली तो उसने रोहन को इसके बारे में बताया। रोहन को कही ना कही दुःख हुआ था ये सुनकर मगर फिर भी मीरा के सामने ख़ुश होने का नाटक करता रहा। मीरा रोहन के बदलते मिज़ाज को भाँप गई थी। मगर उसने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। कुछ दिनों तक तो रोहन, मीरा से मिलने तक नहीं आया। मीरा के पास भी समय ना होने की वजह से वह भी उसकी खोज ख़बर लेने नहीं जा सकी।
१० दिनो बाद जब मीरा को दिल्ली वाले नौकरी पक्की होने की सूचना मिली तो वह ख़ुशी से झूम उठी और तुरंत ही रोहन के घर चली गई, अपनी ख़ुशी बाटने। वहाँ जाकर पता चला कि रोहन कई दिनों से काम पर नहीं जा रहा और पूरे समय गुम सूम सा घर पर पड़ा रहता है। ये देख मीरा को बहुत दुःख हुआ।
उसने रोहन से कहा,ये क्या हाल बना लिया है। आख़िर क्यों कर रहे हो तुम ऐसा।
उसपर रोहन ने चिल्लाते हुए कहा,इसी जीवन की कल्पना नहीं की थी मैंने। मुझे बहुत कुछ करना था। बहुत पैसे कमाने थे। मगर सब ख़त्म हो गया।
अभी तो हमारे सफ़र की शुरुआत हुई है। अभी से हार मान लोगे तो कैसे चलेगा। मगर रोहण कुछ सुनने के लिय तैयार ही नहीं था।
बात बदलते हुए रोहन ने मीरा के आने का कारण पूछा। मीरा रोहन की ये हालत देख बताना नहीं चाह रही थी,मगर उसने फिर नौकरी वाली बात रोहन को बता दी।
रोहन ने बहुत सामान्य तरीक़े से मीरा को बधाई दी। मीरा ने रोहन को भी साथ चलने के लिय कहा। मीरा ने कहा, मेरी तो नौकरी पक्की है ही,तो रहने खाने की कोई दिक़्क़त होगी नहीं,और तुम भी अपने लिय कुछ ढूँढ लेना।
और जो नहीं मिली तो क्या मुँह दिखाऊँगा लोगों को,रोहन के कहा।
तुम इतने अच्छे विध्यर्थी रहे हो,तुम्हें ज़रूर मिलेगी नौकरी,मीरा ने विश्वास दिलाते हुए कहा। बड़े दिनों बाद रोहन के चेहरे पर ख़ुशी आई थी।
फिर क्या, दोनो ने जाने की तैयारी शुरू कर दी। तय समय पर दोनो ने अपने घर से विदा ली। रोहनऔर मीरा ख़ुशी ख़ुशी अपने सफ़र पर निकल गए।
दिल्ली पहुँच मीरा ने नौकरी की शुरुआत की और अपने दफ़्तर के पास ही छोटा सा घर ले लिया। फिर रोज़,मीरा नौकरी पर निकलती, उसके थोड़ी देर बाद रोहन भी नौकरी की तलाश में निकल जाता। देखते देखते महीनो निकल गए। मगर रोहन को उसके मन लायक़ नौकरी नहीं लगी। मीरा के बार बार कहने पर भी, वह कोई छोटी मोटी नौकरी नहीं करना चाह रहा था। रोहन हमेशा मीरा को उसे यहा साथ लाने के लिए कोसता रहता था।
अब तो रोहन नौकरी की तलाश में भी नहीं जाता था। पूरे दिन घर में रहने की वजह से वह ग़लत संगति में फँस गया। वो उन लोगों पर मीरा से ज़्यादा बिश्वाश करने लगा। धीरे धीरे उसे ड्रग्स की भी लत लग गई। मीरा इन बात से अनजान अब तक रोहन के लिए परेशान रहती।
मगर बात इस कदर बिगड़ गयी की रोहन को अपनी लत के लिय चोरी तक करनी पड़ती थी। ड्रग्स और क़र्ज़ में डूबे रोहन को उसके दोस्तों ने फिर वो करने पर मजबूर कर लिया जो उसके और मीरा को एक अनजान राहों पर खड़ा करदेने वाला था। अच्छे नौकरी और पैसे के लालच में उसने मीरा को भी इसमें शामिल कर लिया। रोहन के लत से अनजान मीरा भी उसकी बातों में आ गयी।
और जब तक बात समझ आती काफ़ी देर हो चुकी थी। रोहन अपने लत की वजह से मीरा को वेस्यावृति में धकेल चुका था।
ये एक ऐसे सफ़र की शुरुआत थी जिसकी कोई मंज़िल नहीं थी।