लम्हें जिंदगी के
लम्हें जिंदगी के
दर्पण कुर्सी के ऊपर बैठा हुआ था उसके पैर पलंग पर थे ,बाहर खिड़की में से पानी की कुछ बूँदें अंदर गिर रहीं थीं -बाहर बहुत मूसलाधार बारिश हो रही थी पर उससे कहीं ज्यादा तूफ़ान दर्पण के सीने में उठा हुआ था ,उसकी आँखों से भी बारिश हो रही थी ।
दर्पण अचानक ही अपने अतीत में चला गया था जहाँ उसे महीने में एक या दो बार सतगुरु के भजन घर या कार्यालय में होते दिख रहे थे क्या समां-क्या भक्ति भाव -बेसुध होकर नाचती संगत,फिर अचानक दर्पण अपनी टाटा सफारी गाडी में पत्नी के साथ जयपुर से तूफानी बारिश में पंजाब गुरु स्थान की तरफ बढ़ता हुआ दिखा ।
कभी बच्चों के साथ उदयपुर -कभी डलहौजी ना जाने कुछ ही पलों में दर्पण कहाँ से कहाँ पहुँच गया ,कभी चेहरे पर मुस्कान तो कभी उन यादों के खुशनुमा आंसू।
दर्पण जिंदगी के उन लम्हों में पहुँच गया था जो बेहद ख़ुशी भरे थे ।और अचानक समय ने ऐसी करवट ली की घर -व्यापार-शोहरत -रुतबा -प्रसिद्धि -नेकनामी सब नेस्तनाबूद हो गए ।
दर्पण आज समय के उस दौर से गुजर रहा है जहाँ उसे खुद को ये नहीं पता की वो कल सुबह का सूर्योदय देखेगा या नहीं ।लोगों की जिंदगी में उतार चढ़ाव आते हैं -नफा नुक्सान होता है -रिश्ते बनते बिगड़ते हैं पर जो कुछ दर्पण के साथ घटित हुआ या हो रहा है वो सबसे अलग है -वो जिन्दा है बहुत बड़ी बात है -कौनसी अदृश्य शक्ति ने उसको सम्हाल रखा है ...?
बचपन से 48 वर्षों तक मृत आत्माओं से साक्षात्कार -सीधी बातचीत -एक बार नहीं दो बार नहीं उसके बाल्यावस्था में यौन शोषण का प्रयास अपनों द्वारा ही -अकेलेपन का दंश -शुरू से ही गलत लोगों का मिलना -राष्ट्रीय स्तर के राजनैतिक दलों एवं सामजसेवी संस्थाओं का पदाधिकारी होना - जल्दी विवाह -घर परिवार में राजनीती -पत्नी का बच्चों सहित घर छोड़ देना -घरवालों का अहंकार -व्यापार में एक के बाद एक नए -बड़े और सुनियोजित धोखे -एक ही शहर में 11 मकानों का बिक जाना -उसके ऊपर एक के बाद एक तांत्रिक प्रयोग -हमले ,नौकरी व व्यापार में सफलता के शिखर को छूना और धड़ाम से जमीन पर आ जाना -धरम और श्रद्धा में इतना बड़ा धोखा खा जाना की आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे की क्या इस कलयुग में भी कोई ऐसा शिष्य हो सकता है क्या -बिटीया की बेहतरीन शादी पर यहाँ भी धोखा -एक ऐसे राज का पर्दाफाश जो आपको रोने पर -सोचने पर मजबूर कर देगा -हर दुःख तकलीफ से भारी -अपनों से ही आंतरिक लड़ाई -और आज अर्श से फर्श पर ,सिर पर कर्जों का पहाड़ -49 वर्ष की उम्र में बुजुर्ग माँ बाप पत्नी बच्चों को छोड़कर एक अनजान राज्य -एक अनजान शहर की राह -अज्ञात वनवास ,समय की मार के कारण बेगुनाह गुनहगार बन जाना ।
जो दर्पण अपना जीवन अपने जनों के परिवार के लिए नहीं बल्कि सात सौ -सात हजार -सात लाख -सात करोड़ लोगों के लिए सर्वस्व करना चाहता है ,जिसने अपने आपको अपने सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज ध्यानपुर को समर्पित कर रखा है आज वो मसाज पार्लर या औरतों की मसाज या उनको शारीरिक संतुष्ट करने वाले लोगों तक जाने की सोच रहा है पैसों के लिए -अपनी किडनी बेचने की सोच रहा है पैसों के लिए जिससे की वो अपने कर्जों से मुक्त होकर -सतगुरु का आश्रम मंदिर बनाना चाह रहा है -छोटी बिटिया का विवाह करना चाह रहा है और अपने परिवार की जायज अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करते हुए उनको सुखद सुरक्षित भविष्य देते हुए सतगुरु के मार्ग पर जीवन अर्पण करना चाह रहा है ,देखते हैं सतगुरु उस पर क्या रहमत करते हैं ,क्या दर्पण इस दलदल में जाने से बच पायेगा ?
अचानक किसी गाडी के स्टार्ट होने की आवाज़ आई। दर्पण की आँखें खुलीं तो देखा घडी में सुबह के 4 बज रहे हैं ,पूरी रात उन खुशनुमा यादों और दर्द के साये में दर्पण ने कुर्सी पर ही निकाल दी ,ईश्वर से यही प्रार्थना है की वो दर्पण को उसके मकसद में कामयाब करें ,रहम नजर करें।