Kumar Vikrant

Inspirational

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लकड़ी की स्वर्ण मूर्ति- बाहुबली

लकड़ी की स्वर्ण मूर्ति- बाहुबली

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जब वीर माहेन्द्र बाहुबली ने अपनी माँ को भल्लाल देव की कैद से छुड़ाने के लिए माहिष्मती के राजमहल में पैर रखा तो वहाँ उत्सव जैसा माहौल था। नगाड़ा वादन हो रहा था, नृत्कियाँ नृत्य कर रही थी, पुरोहित मंत्रोच्चारण कर रहे थे। अवसर था भल्लाल देव की विशाल स्वर्ण मूर्ति को स्थापित करने का। सैकड़ो श्रमिक रस्सो से खींच कर मूर्ति को उसके मंच पर खड़ा करने का प्रयास कर रहे थे।

देवसेना ने जब मुँह पर वस्त्र लपेटे युवक को राजमहल में आते देखा तो उसका मन विचलित हो उठा। जैसे ही उस युवक ने वस्त्र अपने मुंह से हटाया तो वसंतसेना अपने स्वर्गवासी पति अमरेंद्र बाहुबली की प्रतिमूर्ति देखकर आश्चर्चचकित हो उठी, उसका मन आनंदित हो उठा, उसका पुत्र माहेन्द्र बाहुबली आया है अब विनाश होगा पापी भल्लाल देव का और उसके साम्राज्य का।

तभी जोरदार कोलाहल मच गया, श्रमिक जमीन पर गिरने लगे, भल्लालदेव की स्वर्णमूर्ति नीचे गिरने लगी। मूर्ति के मंच के पास खड़े श्रमिक मृत्यु के भय से रोने लगे। बिज्जलदेव इस दृश्य को देखकर हँस पड़ा, आखिर एक मूर्ति की स्थापना के लिए नरबलि की व्यवस्था स्वयं मूर्ति ही कर रही थी।

इस दृश्य को देखकर माहेन्द्र बाहुबली क्रोधित हो उठा परन्तु श्रमिकों की दशा पर उसका हृदय विचलित हो उठा और उसने भाग कर मूर्ति से बंधे रस्से को थाम लिया और अकेले अपने दम पर विशालकाय मूर्ति को गिरने से रोक लिया, मूर्ति बहुत हल्की थी उसने मुस्कराते हुए उन शिल्पकारों की तरफ देखा जिन्होंने उसके कथनानुसार ठोस सोने की मूर्ति बनाने के स्थान पर लकड़ी की मूर्ति बनाकर उसपर स्वर्ण की एक मोटी परत चढ़ा दी थी और सोना माहिष्मती की विपन्न प्रजा के हित कार्यो के लिए प्रयोग कर लिया था।

श्रमिकों ने माहेन्द्र बाहुबली में अपने पूर्व हृदयसम्राट अमरेंद्र बाहुबली को देखा और बाहुबली के नाम का उच्चारण करने लगे। चारो और बाहुबली के नाम का गुंजन हो रहा था, भल्लालदेव और बिज्जलदेव के सिंहासन दरक रहे थे।


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