लिविंग टुगेदर
लिविंग टुगेदर
कॉलेज के रूमानी दिनों में उसे 'वह' भा गया था।कभी कैंटीन,तो कभी कॉलेज के social gathering में वह टकराने लगे और फिर कुछ दिनों से मिलना जुलना बढ़ गया था।उन सुनहरे दिनों के बाद वे दोनों अपनी अपनी दुनिया में मशगुल हो गए।कोई नौकरी तो कोई प्रतियोगी परिक्षा की तैयारी में।लेकिन दिन ब दिन उनका प्यार बढ़ता ही गया।बड़े शहर के होने से दोनो के घर का माहौल भी थोड़ा liberal था।फिर क्या था दोनों अपनी अपनी रजामंदी से Living Together में रहने लगे।दोनों घर में किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई।उसकी माँ ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने फ़ौरन माँ को 'पुराने ज़माने' की कह कर चुप करा दिया।
एक अच्छा सा अपार्टमेंट किराये पर लेकर अपनी Living Together की उस नयी नयी दुनिया में वे मगन हो गए।सब कुछ अच्छा था।ना कोई शिकवा और ना ही कोई शिकायत।और तो और कोई बंधन या किसी कंट्रोल की कोई गुंजाइश भी।हर कोई आजाद था बिना किसी जवाबदेही के।
थोड़े सालों के बाद उसे कुछ अधूरेपन का अहसास होने लगा।उसने 'अपने बच्चों' के बारे में बात करने की कोशिश करनी चाही।वह बड़े ही सर्द लहजे में कहने लगा,"हमारी इस बारे में already बात हो चुकी है। NO CHILDREN की शर्त मानकर ही हमने Living Together में रहना स्टार्ट किया था।फिर ये अचानक तुम्हे क्या हुआ है?मुझे नहीं लगता था कि तुम जैसी पढ़ी लिखी लड़कियाँ भी उन पुराने जमाने की औरतों की तरह ही सोचने लगोगी।"
उस ने कुछ कहने की कोशिश पर वह फिर कहने लगा,"तुम्हें अगर यह मंजूर नहीं है तो तुम वापस जा सकती हो।तुम पुरी तरह से आजाद हो।" और जोर से दरवाजा बंद कर वह चला गया।
कल तक जो रिश्ता Living 'together' था आज ना तो वह living जैसा था और ना ही वहाँ कोई भी together था।सब कुछ जैसे बिखर सा गया था।कमरें में चारों ओर उसकी निगाहें फिरने लगी।लेकिन जहाँ उस की नजरें जाती वहाँ की हर चीज उसे बेजान लग रही थी, बिलकुल उस बेजान रिश्तें की तरह...