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Saroj Prajapati

Romance

4  

Saroj Prajapati

Romance

लिखे जो खत तुझे

लिखे जो खत तुझे

4 mins
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रचना किचन में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। तभी

ऑफिस से लौटे समीर और बेटी दिशा की आवाज उसके कानों में पड़ी। " कैसे हो बेटा! और मम्मी कहां है!"सुनकर रचना के तन बदन में आग लग गई!मन ही मन गुस्से से बुदबुदाई 'जहन्नुम में!'

पूछ तो ऐसे रहे हैं जैसे मम्मी की कितनी फिक्र है । अब देखो कैसे आवाज लगाएंगे!रचना मेरी चाय ! खाना!और फिर लग जाएंगे अपने लैपटॉप या फोन में। बस ऑफिस, लैपटॉप और फोन । यहीं इनकी दुनिया रह गई है!

मुझे तो बस यह चूल्हा झोंकने के लिए लेकर आए थे। सोचते सोचते रचना की आंखों में आंसू आ गए।क्या यह वही समीर है। जो उसके बिना एक पल भी नहीं रह पाता था!

सोचते हुए रचना ने कब चाय बना ली, उसे पता भी नहीं चला और वह चाय का कप लेकर समीर के पास भी पहुंच गई ।

"अरे चाय नीचे रखो! कब तक लिए खड़ी रहोगी!"

आवाज सुन उसकी तंद्रा टूटी। उसने चाय नीचे रख दी।

"अपनी चाय नहीं लेकर आई।" रचना कुछ नहीं बोली और चुपचाप किचन में वापस चली गई।

समीर ने दिशा की ओर देखा मानो पूछ रहा हो ' कुछ हुआ था क्या आज!' दिशा उनकी आंखों की भाषा समझ गई और उसने अपने कंधे पता नहीं की मुद्रा में उचका दिए।

खाना खाते हुए भी रचना चुप रही । समीर ने भी उसे छेड़ना सही ना समझा। खाना खाकर वह स्टडी रूम में चला गया।

रचना किचन समेटने लगी। उसने समीर का लंच बॉक्स का कवर हटाया और जैसे ही डिब्बे अलग कि।ए उनके बीच से उसे एक खत झांकता नजर आया। उसमें से वही परफ्यूम की सोंधी सी महक आ रही थी जैसे समीर शुरू में जब उसे खत लिखता था, तो आती थी।

उसने उत्सुकता से खत खोला और पढने लगी_

खत को प्यार से पढ़ना, अक्षरों को मेरे दिल के जज्बात समझना

यह कागज का टुकड़ा नहीं, मेरे प्यार का एहसास है ये,

माना अभी थोड़ा व्यस्त हूं, नहीं दे पाता समय तुम्हें

तुम्हारी नाराजगी भी जायज है, हां तुम्हारे गुस्से पर भी आता है प्यार मुझे

प्यार हमेशा शब्दों में नहीं बयां होता ,कभी पढ़ा करो इसे हमारी आंखों में

मैं बस तुम्हारा हूं और तुम मेरी हो प्रिय!

अब अपनी कलम को देता हूं मैं विराम प्रिय।

खत को पढ़ते ही रचना का सारा गुस्सा समीर के लिए प्यार में बदल गया और याद आया उसे अपना वह समय, जब वह दोनों अपने प्यार को इस तरह ही खतों में लिखकर जाहिर किया करते थे।

आज भी याद है उसे ,उन दोनों का रिश्ता बड़ों ने बैठकर तय किया था। हां देखा जरूर था एक दूसरे को लेकिन बातचीत ना के बराबर ही हुई थी। आज की तरह माहौल नहीं था उस समय।

शादी के बीच का 3 महीने का सफर 1 साल के बराबर लग रहा था दोनों को।

लेकिन यह 3 महीने का समय इन खूबसूरत खतों के जरिए सुहाना व दिलकश सफर बन गया था। इसमें साथ दिया रचना की प्यारी सी सखी पूजा ने। जो समीर के ऑफिस में ही काम करती थी।

रचना का ससुराल एक संयुक्त परिवार था। चाहकर भी पति पत्नी एक दूसरे को समय नहीं दे पाते, ना खुलकर बातें कर पाते। तब भी तो यह खत ही तो उन दोनों के दिलों की बातोंव जज्बातों को एक दूसरे तक पहुंचाने का माध्यम बने थे।

रचना ऐसे ही टिफिन के बीच समीर को खत रखकर देती और उसके जवाब का इंतजार करती। शाम को जैसे ही

समीर वापस आता,वह उसका टिफिन लेने के लिए खुद आगे बढ़ती। कितनी बार उसकी जेठानी देवरानी हंसती भी "अरे रचना यह टिफिन में ऐसा क्या खास लेकर आता है तेरे लिए, जो तू ऐसे झपटती है इस लेने को!"

अब वह उन्हें क्या कहती । बस मुस्कुरा भर देती ।उसकी वही खोई मुस्कान आज इस खत ने उसे वापस लौटा दी थी। प्यार की फुलवारी फिर से खिला दी थी। रचना का दिल प्यार के मीठे एहसास से फिर से भर उठारचना मुस्कुराते हुए अपने कमरे में आई और फिर वही अपने साजन की प्रिया बन, लिखने लगी, उनके नाम एक प्यार भरा खत।

आज फिर से वही खतों का सुहाना सफर शुरू। हां इन्हीं खतों से तो उनका इश्क जवां हुआ था और शादी के बाद और परिपक्व। इन्हीं सुखद एहसासों में डूबी, वो फीके पड़ चुके अपने प्यार के रंगों में, इन खतों के जरिए दिल की कलम से, प्यार की स्याही में डूबों नए रंग भरने बैठ गई।



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