लघुकथा - नाज़
लघुकथा - नाज़
मनदीप जब कालिज पढ़ने जाती तो रोज़ आवारा लड़के पीछा करके उसे परेशान करते, पर मनदीप बेपरवाह निकल जाती। एक दिन ये बात उसके भाई-भावज को पता चली। भाई पिता को बोले, “मनदीप का विवाह कर देना चाहिए गाँव में रोज़ इसके चरित्र के चर्चे होते हैं।” पिता बोला, “मुझे अपनी बेटी पर विश्वास है, वो कोई बदनामी वाला काम नहीं करेगी।” मनदीप भाई को बोली, “तू मुझे आज बस चढ़वा आ, मुझे देर हो गई है।” पर भाई बहाना लगा कहीं और निकल गया। देर शाम हो गई पर मनदीप घर नहीं आई। बाप-बेटे की बहुत कहा-सुनी हुई। भाई ने तलाश की लेकिन मनदीप कहीं न मिली। पिता कमरे में बैठा रो रहा था। सारी रात आँखों में बीती। सुबह मनदीप किसी लड़के के साथ घर आ गई। भाई बोला, “पूछो कहाँ इस लड़के के साथ रात भर मुँह कला करके आई है।” मनदीप और वो लड़का हाथ जोड़े पिता के पैरो में गिरे थे। लड़का बोला, “आपकी लड़की का चरित्र बहुत ऊँचा और सच्चा है। मैं आपका देना मैं नहीं दे सकता। कल मेरे भाई दुर्घटना में घायल हो गया था , आपकी बेटी उसे हस्पताल लेकर रात भर वहीं रही। मेरा फोन बंद था। मुझे सुबह पता लगा। मैं आपकी बेटी का कर्जा किस तरह उतार सकता हूँ जिसने मेरे भाई की जान बचाई। आपको अपनी बेटी पर नाज़ होना चाहिए।”