बालपन दुश्मनी में दोस्ती
बालपन दुश्मनी में दोस्ती
स्कूल में अनन्या और प्रतीक एक ही क्लास में पढ़ते थे। अनन्या हमेशा क्लास में प्रथम आती और प्रतीक दूसरे स्थान पर। दोनों एक दुसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में रहते। अनन्या स्कूल में खूब मस्ती करती रहती पर घर जाकर खूब मन लगा कर पढ़ती थी। प्रतीक दोस्तों को बोलता, “इसको जीवन में एक दिन बड़ा आदमी बन कर दिखायूँगा” अगले रोज़ अनन्या ने उसका हाथ पकड़ा और खींच कर उसे कैंटीन की तरफ ले गई। उससे पुछा कि क्यों ऐसा बुरा व्यवहार कर रहा है। क्यों बात नहीं करता, क्यों मुझसे कटाकटा सा रहता है। इन सवालों के बदले में मिले जवाब ने तो उसे जैसे तोड़ कर ही रख दिया। प्रतीक ने कहा, “स्कूल में सभी विद्यार्थी तुम्हारा मज़ाक उड़ाते हैं। पढ़ते रहने के कारण तुझे चश्मिश और बहनजी कह कर बुलाते हैं। ऐसे में अगर तुझसे बात की तो स्कूल में मुझे कोई घास नहीं डालेगा।”
अनन्या ने उसी वक़्त फैसला कर लिया कि अब चाहे जो भी हो मैं भी इस लड़के से कभी बात नहीं करूंगी। मन में मेहनत और होड़ अपनी चरमसीमा पर थी। फिर कुछ सालों के बाद दिल्ली के एक अस्पताल में डाक्टर अनन्या ड्यूटी पर थी। जहाँ उसने अपनी स्कूल की सहपाठी सीमा को देखा। सीमा अपने पति इंजीनियर प्रतीक, जो करोना से पीड़ित था, के लिए बहुत चिंताग्रस्त थी। बैड और आक्सीजन न मिलने से तडपते देख सीमा और भी परेशान थी। अनन्या के पति भी उसी हस्पताल में बड़े सर्जन थे। अनन्या ने सीमा और प्रतीक के बारे में अपने पति से बात की। अनन्या के पति ने सीमा को भरोसा दिलाया, “तुम घर जाओ। तुम्हारे पति को सही सलामत घर तक पहुँचाना हमारी जिम्मेवारी है।” अनन्या और उसके पति ने प्रतीक का पूरी तरह से ईलाज किया और देखभाल भी की। कुछ दिन बाद जब प्रतीक ठीक हो हस्पताल से छुट्टी मिलने पर घर वापिस जा रहा था। प्रतीक ने अनन्या से अतीत बातों पर क्षमा मांगते अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाया और मधुरता बिखर गई।