मकड़जाल
मकड़जाल


महेश उमा दोनों बहुत ही मेहनती और सरल मितभाषी थे| दोनों पति-पत्नी हर रिश्तेदार और मित्र के दुःख में जरूर मदद करते थे| यही शराफत समय के साथ स्वार्थ और मतलब का जामा लेकर दिखने लगी| सबकी मतलब की दोस्ती थी नहीं तो किनारा कर लो, यही व्यवहार बनता ज़ा रहा था| उमा बहुत बार पति को कहती, “हमारी यहीं आदतें हमारे दोनों बच्चों में भी आ रही हैं, समय के साथ सब स्वहित सोचते है परहित नहीं, हमें बच्चों को समझाना चाहिए|” महेश कहते, “किसी के काम आना भली बात है, दूसरे से आशा नहीं करनी चाहिए|” इस प्रकार जमीदार होने की वज़ह से सारी जमीनी देख–रेख की जिम्मेवारी महेश पर ही आ पडती थी| बड़ा भाई तो रोब ड़ाल भाषण सुनाके एक तरफा हो जाता, आदत के अनुसार महेश सारी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले लेता| उमा अतिथि सेवा में ही फंस जाती| बड़े पूर्वज के ज़मीन के अधूरे काम की जिम्मेवारी का तनाव महेश पर ही रहता| उमा कहती, “ये सही नहीं है, हमारे कितने काम अधूरे पड़े हैं, और उधर पूर्वजों की संपत्ति की देख-रेख, आपकी सेहत इतने काम नहीं सम्भाल सकती| हमे कुछ नहीं चाहिए सेहत की कीमत पर आप बड़े भाई को साफ अहसास करा दो, “अगर भाई जी आप साथ दोगे तो ये मसला हल होगा, नहीं ये बात मेरे बस की नहीं|’ बच्चे भी महेश को कहते, “पापा आप सहज से जो कर सकते हो वहीं करो, सारी उम्र पढ़ा, विवाह और सबके काम आते रहे, कोई याद रखता है क्या| आप इस मकडजाल से निकल खुद के लिये जीने की आदत बनाओ| हमारे और परिवार की खुशी के लिये खुद को बदल लो|” उमा को लगता ये मकड़जाल जो खुद शराफत से जो बुना, उसमे से निकलना मुश्किल है| नारी को जीने के लिए जीवन में बहुत से पापड़ बेलने पड़ते है ,उसका जीवन बहुत आसान नहीं होता जैसा आप सबको दिखता | हर पग पर बड़ी परीक्षा जिंदगी लेती रहती है |