Rekha Mohan

Children Stories

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Rekha Mohan

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लघुकथा -चिंकू की झांक

लघुकथा -चिंकू की झांक

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दो गौरैया चिंकू मिंकू मज़े से हमारे घर में रहती थी। कई सालों से सबके आकर्षण का केंद्रबिंदु थी। सफेद मिंकू खूब शरारती थी ,हरी चिंकू बहुत शांत और खामोश रहती थी। सफेद मिंकू हरी चिंकू को बहुत खाने में तंग करती और उस पर अपनी मनमानी करती थी। वो हमेशा मिंकू से डरकर रहती और उसके पीछे ही बैठी रहती। एक बार एक नौकरानी ने सफाई करते पिंजरा खुला छोड़ दिया ,शरारती सफेद मिंकू भाग बाहर आ पंखे पर बैठ गई। नौकरानी ने पंखा तो घबराहट में उड़ाने को चलाया , मिंकू घबराहट में दुनिया ही छोड़ गई। बाद में नौकरानी रोती ,”मुझे माफ करदो ,मैने तो नीचे उतारने को चलाया था। ये मेरी गलती थी। ” अब शरीफ चिंकू उदास रहने लगी। हर समय सोई या बाहर भागने की तलाश में रहती। उससे अकेलापन बर्दाश्त न होता। घर में सभी काम में गये होते। कभी कोई बुलाता तो देख अपने में मस्त हो जाती और कोने में बैठ भागने के तरीके ढूढती रहती। एक साल यूँ ही गुजर गया, उसकी कोशिश नाकामयाब रही। आज ६/१२/२०१७ को जब कोई घर न था मौका देख आज़ाद फिजाओ में चलती बनी। परिवार कहे ,वो उड़ना भूल गई ,कही खो न जाये सही सलामत रहे। ”सच में पाँच साल का साथ पल में हुई फरार| अब तो बस लुभावनी सी धोखे की झांक|कब कौन समझाये “जाने वाले वापस लौट आते नही हैं। ”कुछ पक्तियाँ“आ, लौट गौरैया आ!चीं चीं फुदक चली आ!!चुपके गा जा ! तू दाना खा!!चोंच में दाना लेती जा!हंसी-हंसी कुछ कहती जा!!’’


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