लघु कहानी
लघु कहानी
आज शनिवार था.सुबह की चाय की प्याली लेकर मैं खिड़की के पास बैठ गई,क्या देखतीं हूं कि
पीपल के पेड़ के नीचे दीया जला कर, नतमस्तक होकर वह चारों ओर चक्र लगा कर जा रही थी, बहुत खूबसूरत थी ।लम्बा कद,छरहरे बदन ,गोरे रंग ,लम्बी चोटी वाली,कौन होगी पहले तो इसे नही देखा,शायद बगल वाले घर में मेहमान आये होंगे।
मैं पीपल के पेड़ को देखते हुये ,उस समय में चली गई जब मैं शादी करके इस घर में आई थी।समय की चाल के साथ यह पेड़ भी बड़ा होता गया। कई
बसंत आये और चले गये, यादें वहीं की वहीं हैं
एक समय था जब यहां कितनी चहल पहल होती थी,बच्चों का लुका -छिपी का खेल,झूलों पर झूलती अल्हड़ युवतियों की हंसी,पास के चबूतरे पर सजतीं बुजुर्गों की महफिलें,पक्षियों का कलरव ।आज यहां बस हर शनिवार को इक्का दुक्का लोग आ कर तेल का दीया जला देते हैं।
किसी के पास इतना समय नहीं कि गुजरे वक्त को दोहरा दे।मोबाइल में खेल खेलकर बचपन बीत रहा।सब घर की चारदीवारी में जीवन जी रहे। कौन आ -जा रहा,किसी को खबर नहीं ।कुछ दिन पहले सुना था कि यहां कई मंजिला इमारत बनने वाली है,इस पेड़ को काटना पड़ेगा।
ख्यालों में खोये पता नहीं चला कि कब प्याली खाली हो गई। भूत की यादों को वर्तमान की चादर में समेट कर पीपल को निहारने लगी।ऐसा लगा कि पीपल का पेड़ भी मेरी तरह बीते पल में खो गया हो।