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Veena rani Sayal

Inspirational

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Veena rani Sayal

Inspirational

कहानी में कहानी

कहानी में कहानी

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जिंदगी सागर का बहता पानी है,कभी रुकने का नाम नहीं लेती,जब तक सांसों का कारवां है चलती रहती है। जिंदगी की राह में कई हमसफर मिले,कुछ दो कदम साथ चले कुछ बीच राह में ही साथ छोड़ चल दिये,उनकी बातें, संग की यादें दिले दिमाग पर आज भी हावी हैं।बहुत प्यारा सा नाम था रुही,उसका सारा जीवन संघर्ष में रहा पर चेहरे पर सदा मुस्कराहट रहती थी,कभी किसी से गिला शिकवा नहीं किया। हर पल दूसरों की मदद को तैयार रहती, न दिन देखती न रात, बस यही कहती कि अपने लिये तो सभी जीते हैं, जीवन वह जो दूसरों के काम आये।नेकी करो और भूल जाओ।उसने बताया था कि कैसे उसने एक अनाथ बच्चेको अपने पास रखा उसकी पढ़ाई का खर्चा उठा कर उसे एक अच्छा इन्सान बनाया।

जिंदगी की गाड़ी अकेले नहीं चलती, आसपास के लोग,रिश्ते नाते,अपने- पराये सब गाड़ी के डिब्बे बनकर साथ चलते हैं। जिंदगी की राह में आये अंधेरे- उजाले इक सबक दे कर आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं।मैं जिसका जिक्र कर रही हूं वह मेरी मित्र के घर काम करती थी, उसका पति उसकी कमाई पर जी रहा था, कोई काम काज नहीं करता था।बच्चों की सारी जिम्मेदारी मां निभा रही थी। बड़ी स्वाभिमानी थी।दोनों बेटियां पढ़ाई करके नौकरी कर रहीं थीं।सबके कहने पर भी उसने अपना काम नहीं छोड़ा कि कल को बेटियां शादी करके अपने घर चली जायेंगी, बेटा अभी छोटा है, मेरी रोजी रोटी तो मेरा काम ही देगा।

जिंदगी तो एक सागर है जिसकी गहराई कोई नहीं जान पाया, दुख- सुख उठती गिरती लहरें हैं जो सागर के अस्तित्व को बनाये रखती हैं। जीवन रुपी नैय्या के इस सफर में हिम्मत, सहनशीलता और धैर्य पतवार का काम करते हैं। एक आदमी तो सबसे अलग थे,दस साल बाद उनसे मुलाकात हुई तो बड़ी हैरानी और खुशी हुई ।

" मेरे दिन की शुरुआत अखबार से होती थी,अखबार लाने वाले का दरवाजे पर इंतजार करना मेरी दिनचर्या हो गई थी। एक दिन वह देर से आया तो मेरे कुछ कहने से पहले ही बोला कि आज उसकी तवीयत ठीक नहीं शायद बुखार है,पर काम तो काम है सो देरी हो गई ।मैंने उसे बुखार की दवा दी और चाय पिलाई। धन्यवाद करके वह चला गया।दो तीन दिन कोई दूसरा लड़का अखबार देने आया तो पता चला कि तवीयत खराब थी सो वह अपने गांव चला गया। मेरा तबादला हो गया तो मैं दूसरे शहर आ गई। नया माहौल,नये लोग,धीरे -धीरे सब अपने से लगे। पता नहीं चला दस साल कैसे गुजर गये।

 एक दिन दफ्तर के काम से हेडक्वार्टर गई, काम समाप्त कर, सरकारी गाडी का इंतजार कर रही थी।मेरे पास आकर एक कार रुकी और

 कार में से एक आदमी उतरा,इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती उसने मेरे पांव छुये,मुझे पहचानते देर नहीं लगी यह वही अखबार वाला लड़का था। जो आज आईएएस करके यहां का

कलेक्टर बन गया"

जिंदगी के सफर को जो दुखों का पहाड़ कहते हैं मेरी नजर में बुजदिल लोग हैं।जिंदगी का सफर तो वो सुहाना सफर है,जिसमें हर एक को अपना बना कर, प्यार बांट कर, गले लगाकर, हंसते -हंसते तय किया जाता है।


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