वापसी
वापसी
आज दो साल बाद वो मेरे सामने से गुजरा तो मुझे वो दिन याद आया जब -
" दो दिन से बर्फबारी हो रही थी, जब सूरज देवता दिखाई दिए तो कड़ाके की सर्दी पड़ने लगी। सोचा इस ठंड में अब कोई ग्राहक नहीं आयेगा मैंनेअपनी दुकान का शटर गिराया और घर की ओर चल दिया।सब अपने घरों में कंबलों और रजाइयों में दुबके हुए थे।पहाड़ी इलाके में सांझ के बाद बाजार में इक्का दुक्का लोग ही दिखाई देते हैं। मैं धीरे - धीरे - कदम बढ़ाते हुए पगडंडी पर जा रहा था ।यह मेरे घर को जाने वाला रास्ता ऊबड़ - खुबड़ था,सड़क से जाता तो आधा घंटा ज्यादा लगता था।जैसे ही अगला मोड़ आया तो मैंने अपने आगे - आगे चलने वाला लम्बा साया देखा। पास गया तो देखा वो छः फुट का लंबा आदमी था । घुटनों तक के बूट पहने हुए थे।उसका आधा मुंह टोपी से ढका हुआ था। कोई अजनबी होगा ,गांव का तो नही लगता था ।कुछ दूरी तक हम चुप चाप चलते रहे।
उसने जेब से एक कागज़ का टुकड़ा निकाला और पता पूछने लगा।मैंने उसे बताया कि यह रास्ता उसकी मंजिल को नहीं जाता। जहां उसे जाना था उस गांव का रास्ता पास वाली पहाड़ी के पीछे की ढलान से जाता था, मैं कभी उस गांव की ओर नहीं गया था।उस कड़ाके की सर्द रात में वो कहां रास्ता ढूंढता तो मैंने कहा तुम आज की रात मेरे घर रह कर सुबह चले जाना।रात को हमने खाना खाया और सो गए।सुबह मेरे उठने से पहले ही वो चला गया।कौन था ?कहां से आया था ,क्यों आया था ?न मैंने पूछा न उसने बताया।
कुछ दिन बाद मैं उसके बताए पते पर गया तो देखा वहां कोई नहीं रहता था।घर के बाहर ताला लगा था।अहाते में बड़ी - बड़ी झाड़ियां थीं। कुछ कमरों की दीवारें भी गिरी हुई थीं।कुछ लोग इसे भूतिया घर कहने लगे थे।आस - पास वालों से पूछने पर पता चला कि यहां कोई नहीं रहता बहुत साल पहले इस घर के सदस्य इस घर को छोड़ कर चले गए थे ।सालों से घर बंद पड़ा है अब लोग इसे मनहूस घर भी कहते हैं। मेरे दिल में सवाल उठ रहा था कि वो अजनबी इस घर के बारे में क्यों पूछ रहा था"।
वो मेरे पास आ कर बोला आप वो ही हो जिनके यहां मैं रात को ठहरा था।मुझे उस दिन बहुत जल्दी थी सो मैं आपके उठने से पहले ही चला गया था।मैंने अपने आप से कहा शुक्र है इसे सब याद है, फिर भी कह दिया कोई बात नही होता है। इससे पहले कि मैं कुछ और कहता वो बोला "चलो कहीं बैठ कर बात करते हैं।"
उसने बताया " हमारा परिवार एक सुखी परिवार था,घर में दादा -दादी,, बहन - भाई, माता - पिता, सब मिलजुल कर रहते थे।अच्छा खासा हमारा कपड़े का व्यापार था। मैं यही चार -पांच साल का था मुझे कुछ - कुछ यादें हैं।घर के अहाते में खेल रहा था तो मदारी की डुगडुगी को सुनकर बंदर का नाच देखने के लिए घर से बाहर गया मेरा बड़ा भाई भी मुझे पुकारते हुए पीछे आया, मैं मदारी के पीछे - पीछे चलते हुए दूर निकल गया।फिर बड़ी जोर से जमीन हिलने लगी ओर आस - पास के घर और दुकान मिट्टी में मिल गए।बहुत बड़ा भूकंप आया था ।बहुत से लोग मारे गए,बहुत से बेघर हो गए,एक दूसरे से बिछड़ गए। मैंने एक अनाथालय में रहकर पढ़ाई की और किसी बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने गया तो उस कंपनी के मालिक ने मुझे मेरे नाम से पुकारा और गले लगा लिया।वो मेरा बड़ा भाई था,उसने इसलिए पहचान लिया क्योंकि मैं हूबहू अपने पिता जी की तरह था।मेरा डीएनए टेस्ट हुआ।इस तरह मुझे मेरा बड़ा भाई मिल गया।उसने मुझे बताया कि हमारे दादा अक्सर बताते थे कि उनका उस गांव में घर है पर वो काम में इतने बिजी रहे कि कभी गांव नहीं गए। उस रात मैं अपने पूर्वजनो का घर देखने आया था।"
वो मुझे अपने साथ उस गांव ले गया।घर की जगह एक आलीशान बंगला देख कर मन को खुशी भी हुई और हैरानी भी हुई।उसके बड़े भाई के परिवार से मिला जो छुट्टियां बिताने के लिए आए हुए थे। पूर्वजनो की जमीन पर वापसी देख कर दिल खुश हुआ।
