कहानी
कहानी
हवाई जहाज रनवे छोड़कर , बादलों को चीर आसमान की ओर बढ़ने लगा, तब मेरे मन में भी उसी गति से, एक के बाद एक विचार आने लगा। आज भी एक फ्लाइट है और कुछ दिन पहले भी फ्लाइट थी। उस दिन "मन में विचारों का मंथन- क्या हुआ होगा, कहीं यह न हो जाए, सब ठीक हो।
मन में अच्छे बुरे विचारों की खिचड़ी पक रही थी, जल्दी से घर पहुंचना चाहता था। बगल की सीट पर एक बुजुर्ग बैठे थे, उन्हें मेरे चेहरे को देख मेरी परेशानी का आभास हो गया था। मैं खिड़की से, रुइ समान उड़ते बादलों को देखने लगा । मन का पंछी उड़ान भरने लगा , कुछ महीने पहले जब छोटे भाई की शादी पर, विदेश से आया था तो सब कितने प्रसन्न थे, सारा परिवार खुशी से झूम रहा था, फिर वो दिन आया जब सब से गले मिल कर, मैं अपनी बीबी और बच्चों के साथ, सात समुंदर पार आया था। अचानक पिता जी को क्या हो गया कि वो आईसीयू में हैं, शायद दिल का दौरा, या कहीं गहरी चोट लगी होगी, यह विचार मन में आ जा रहे थे, किसी ने कुछ नहीं बताया बस आने को कहा। जो भी पहली फ्लाइट मिली ले ली।
आँखों के सामने बचपन के वो दिन चलचित्र की तरह आने लगे , पिता की उंगली थामे घर के आंगन में चलना। पार्क में लगे झूलों पर झूलना , पिता जी के साथ फुटबाल खेलना, रात को परियों की कहानियां सुनना, पढ़ना- लिखना , क्या नहीं सीखा उनसे।आज मैं जो भी हूं उनकी बदौलत ही हूं।
कैसे , सब परेशान होंगे l अठारह घंटे का सफर तय करके घर न जाकर सीधा अस्पताल गया। मां ने बताया कि पिता जी अखबार पढ़ रहे थे तभी सीने में दर्द हुआ, दिल का दौरा पड़ा था, ईश्वर की कृपा से बचाव हो गया।" कुछ दिन उनके साथ रह कर, मैं आज फ्लाइट लेकर वापिस जा रहा था।
