सपनों का महल
सपनों का महल
मैं और मेरा दोस्त पहाड़ी के ऊपर बने महल को देखने गए।चढ़ाई सीधी थी,चढ़ते - चढ़ते सांस फूलने लगा,और कितनी दूर है भाई। थक गया हूं।दोस्त बोला बस थोड़ा और दूर। हम एक बड़े पत्थर की आड़ में दम लेने के लिए बैठ गए।आखिर मुझे महल का दरवाजा दिखाई दिया। महल के अंदर बड़ा सा अहाता था।कुछ दीवारें तो खंडहर में बदल गई थीं।एक और बड़ा सा कमरा था। उसके छः दरवाजे थे कुछ खिड़कियां , जहां से पूरा गांव दिखाई देता था। दरवाजे अहाते की ओर थे। बीचों बीच कुछ पिलर अभी भी सलामत था। कभी यहां दरबार लगता होगा।कितनी चहल - पहल होगी। मैं अपने ही खयालों में खो गया सोचने लगा।वहां ऊंचे स्थान पर राजा बैठता होगा। एक पिलर के पास गया तो देख कर हैरानी हुई।उस पर जो कुछ देखा तो मैं हैरान हो गया।एक नर्तकी की भाव भंगिमा की खुदाई थी।
पैरों की पायल ,हाथों की चूड़ियां,गले का हार,चेहरा सब मेरे बनाए चित्र से मिलता था।
मैं अपनी ही दुनिया में खो गया।मुझे याद आया कि इस हालनुमा कमरे में,कभी मनोरंजन के लिए,महफिलें लगती थीं। खूब वाह - वाही होती थी।अहाते के सामने से कुछ सीढ़ियां ऊपर को जाती थीं। ऊपर बाईं ओर एक तरफ मंदिर था जहां राधा कृष्ण की बड़ी मूर्ति थी रोज सुबह शाम आरती होती थी मुझे खुद नहीं पता कि मैं यह सब कैसे जानता हूं। मंदिर के सामने खुला मैदान था।पहाड़ की दूसरी ओर बड़ा मनोरम दृश्य था। दूर - दूर तक फैले खेत और खलियान। बर्फीली पहाड़ियां।आज तालाब में बहुत कम पानी है। तालाब के चारों ओर चीड़ और देवदार के पेड़ हैं।दूर - दूर कुछ घर हैं। बहुत साल पहले आए भूकंप से महल का अधिकतर हिस्सा गिर चुका था।
महल के एक कोने में एक छोटा सा कमरा था जहां पुराने ज़माने के हथियार और बर्तन रखे हुए थे। कुछ मूर्तियां थीं,जिनके पीछे मूर्तिकार का नाम लिखा हुआ था।नाम कुछ जाना पहचाना लगा। पर मुझे क्या मैं तो चित्रकार हूं। चलो उठो ,आज पहाड़ी पर जो महल है देखने चलते हैं।मेरा दोस्त मुझे आवाज देकर उठा रहा था। मैं अपने सपने को साकार करने चल दिया। क्या सच में महल मेरे सपने जैसा होगा।
