लड़की ही क्यों
लड़की ही क्यों


बलि...!
सुनिधि और प्रकाश दोनों अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सोच-विचार में है कि बेटे आयुश या बेटी सुलेखा को मेडिकल कॉलेज में या बेटे को इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन कराएं,क्योंकि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
किसी एक को ही पढ़ा पाएंगे आख़िर में प्रकाश ने फैसला सुनाया आयुश को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन करातें हैं और बेटी को बी.एस. सी करा देंगे। सुनिधि की नज़रें सवालिया प्रकाश की ओर उठी थी क्यों.....?
लड़कियों को ही क्यों बलि का बकरा बनाया जाता है.. हम बेटे को भी तो बी.एस. सी. करातें सकते हैं।
प्रकाश का तर्क था "वो लड़का है"| उसके साथ हमारी अगली पीढ़ी जुड़ी रहेगी ...उनके भविष्य के बारे में सोचना पढ़ेगा।
सुनिधि को अपनी ज़िन्दगी के वो पल याद आ गए आज से 40 साल पहले की स्थिति नज़रों के सामने घूम गई। आज फिर *इतिहास* दोहराया जा रहा है जब भय्या और मेरी प
ढ़ाई का वक़्त था तो पापा के नहीं होने पर चाचा, दादा जी ने यही डिसिजन लिया था कि सुनिधि को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं कराएंगे और भय्या को मेडिकल कॉलेज में पढ़ाएंगे। मुझे ग्रेजुएशन करवा दिया गया|
सुनिधि सोच रही थी आज भी मैं सफ़र ही कर रही हूँ। भय्या की शानो-शोक़त अलग ही है। हमारी "सीमित आय".....!आज भी बेटी से ही उसका अच्छा भविष्य छीन रही है.....सिर्फ ये पराई है| बेटा से हमारी सात पीढ़ी का भविष्य जुड़ा है ये कैसा न्याय है...!
आख़िर में सुनिधि ने निर्णय किया अपनी बेटी सुलेखा को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन कराएंगे प्रकाश देखने लगे कैसे....!
हम दोनों सर्विस में है अपना प्रविडेंट फंड किस दिन काम आएगा और जी. पी.एफ.उस फंड से भी पैसा निकाल सकते हैं सरकारी सर्विस है हमारी दोनों बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाएंगे.....।