Priyanka Gupta

Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational

लड़की ही ग़लत क्यों ? (day-12 Katikel)

लड़की ही ग़लत क्यों ? (day-12 Katikel)

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मेरी सासू माँ सेवानिवृत शिक्षिका हैं, शादी से पहले मुझे उनके बारे में इतना ही पता था। मैंने सोचा था कि पढ़ी -लिखी हैं ;नौकरी भी करती थी तो लड़कियों की पीड़ा को समझने वाली संवेदनशील महिला होंगी।लेकिन शादी के बाद हुई एक घटना से,मैं समझ गयी कि पढ़ाई लिखाई आपको केवल तार्किक रूप से सोचना सीखा सकती है,लेकिन वैसे सोचना है या नहीं,यह आपका चुनाव है। वह भी उसी वर्ग के व्यक्तियों में शामिल थी,जो हमेशा लड़कियोंं को ही दोषी मानते हैं,चाहे गलती लड़का करे या लड़की। उनके अनुसार भी लड़कों को सब कुछ करने की आज़ादी है,मर्यादा का तो सारा बोझ लड़कियों के माथे पर ही लादना है।

मैं खुद भी कामकाजी हूँ। अतः मैंने घर पर मेरे कामों में मदद करने के लिए एक घेरलू सहायिका को रखा हुआ था। १४ साल की लड़की,लेकिन उसका दिमाग अभी भी बच्चों का सा ही था। वह कभी कभी तो मेरी मम्मी को मेरी शिकायत करती थी कि," आंटी देखो आपकी बेटी एक लड़के के साथ,उसका मतलब मेरे पति से था ;एक ही कमरे में सोती है। " मेरी मम्मी उसकी बात हंसकर ताल देती थी। कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि वह एक दम निर्मल और अपरिपक़्व थी।

उसे बातें करने का बड़ा शौक था। मैं और उच्च पद प्राप्ति के लिए एक्साम्स की तैयारी में लगी रहती थी। घर,ऑफिस और पढ़ाई सबके बीच में ;उसकी बातें सुनने के लिए मेरे पास वक़्त नहीं होता था। वह थी चैटर बॉक्स ;तो घर पर कोई भी मेहमान आये वह उनसे जब तक बातें करती रहती थी,जब तक कि सामने वाला ही उसे न बोल दे कि,"चुप हो जा मेरी माँ,बस कर। "

मेरी सासु माँ भी जब कभी आती तो,वह उनसेभी भी ऐसे ही बात करती थी। तो सासु मां भी उसकी बातें करने की आदत को जानती थी।

ऐसे में एक बार हमारे घर पर मेरे पति का चचेरा भाई मनीष आया। जो हमारे शहर के ही किसी engg. college से engineering कर रहा था और हॉस्टल में रहता था। कभी कभी आ जाता था। मेरी घेरलू सहायिका ज्योति को अपनी बातें सुनाने के लिए कोई मिल गया। वह बहुत खुश हो गयी। पूरे दिन मनीष भैया,मनीष भैया कहते कहते उससे बातें करती रही। मेरे पास वैसे भी समय का अभाव ही रहता है और तब तो मेरे exams भी चल रहे थे। तो मैं मनीष से उतनी बात नहीं कर रही थी। ज्योति और मनीष एक दूसरे से बातें कर रहे थे।

रात हुई,मनीष कहाँ सोयेगा ? इस पर बात चल रही थी। तब ही ज्योति बोली कि मनीष भैया मेरे वाले कमरे में बेड पर सो जाएंगे और मैं नीचे बिस्तर बिछाकर सो जाऊंगी क्यूंकि दूसरा कूलर तो उसी रूम में लगा हुआ है। मुझे थोड़ा सा अजीब लगा,लेकिन मनीष के सामने मैं कुछ बोल नहीं पायी। मेरे पति ने भी कुछ नहीं बोला।

हम सब सोने चले गए। अगली सुबह मैं उठी तो मुझे मनीष कहीं नज़र नहीं आया। ज्योति किचन में चाय बनाते हुए दिखी। मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चली गयी। जैसे ही मैं बाहर आयी,मेरे पति ऋषभ ने मुझे आवाज़ लगाई,"अरे सुनो,ये ज्योति कुछ बोल रही है। इसकी बात सुन लो। "ऐसा कहकर ऋषभ वहां से चले गए।

उनकी और ज्योति की बातों के कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े थे,"ये मनीष भैया बिलकुल भी अच्छे नहीं है। " ऋषभ शायद उसकी आगे की बात सुनने में खुद को असहज महसूस कर रहे थे; इसलिए उन्होंने मुझे बुला लिया था।

ज्योति ने जो बताया उसे सुनकर मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गयी। मनीष ने ज्योति को पोर्न फिल्म दिखाने की कोशिश की। ज्योति के शब्दों में कहूँ तो,"बड़ी अजीब सी,नंगी लड़कियों वाली मूवी थी। मैंने तो भैया से कहा कि आप कैसी कैसी फिल्में देखते हो ?मुझे नहीं देखनी यह मूवी। "

उसके बाद ज्योति फर्श पर अपने बिस्तर बिछाकर सो गयी। रात में उसे ऐसे महसूस हुआ कि कोई उसके स्तनों को और जाँघों छू रहा है। आँख खोलकर देखा तो वह मनीष था। उसने मनीष को धक्का दिया और कहा कि सुबह दीदी यानी मुझे सब कुछ बता देगी। उसके बाद वह बालकनी में जाकर बैठ गयी। इतना डर गयी थी कि हमारे कमरे में आकर उसे मुझे जगाने की भी हिम्मत नहीं थी। वहां बैठे बैठे ही सुबह होने का इंतज़ार किया।

मनीष का इस तरह से सुबह बिना कुछ बोले निकल जाना,साबित कर रहा था कि उसने कैसे एक नाबालिग लड़की को मोलेस्ट करने की कोशिश की थी। मैंने ऋषभ को बोल दिया कि आज के बाद मनीष मुझे इस घर में नहीं दिखना चाहिए। ऋषभ तो खुद भी उसकी इस हरकत पर उससे खासा नाराज़ थे।

मेरी सास जब हमारे घर आयी तो मैंने उन्हें मनीष की हरकत में बताया। उनकी बात सुनकर मैं सन्न रह गयी। उन्होंने कहा," यह ज्योति बात बहुत करती है। लड़कों से इतनी बात करने की ज़रुरत ही क्या है ?इसका चाल चलन सही नहीं है। "

मेरी सास ने फिर लड़के की गलती के लिए एक लड़की को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। मैंने उन्हें सिर्फ इतना कहा,"मम्मी,बात करने का मतलब यह नहीं है कि लड़की ने अपना शरीर भी आपको सौंप दिया। बात करना लड़कों को आमंत्रण देना नहीं है। यह बात आपको अपने खानदान लड़कों को समझानी चाहिए थी। "ऐसा कहकर मैं वहां से निकल गयी; क्यूंकि मैं जानती थी कि उन्हें यह बात समझ नहीं आएगी।


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