लाल
लाल
दस साल की गुड्डी को कभी यह समझ नहीं आता था की माँ उसके लिए लाल रंग का कपड़ा क्यों नहीं खरीदती । कई बार उसकी जिद्द होती थी माँ सब रंग ले देती थी पर लाल रंग नहीं लेती। वार त्यौहार आते, सबके लिए कपड़े बनते पर गुड्डी के लिए कभी भी लाल रंग का सूट नहीं बना। उसे याद ही नहीं कि जब से उसने होश सँभाला है कभी लाल रंग का कपड़ा पहना हो। हमेशा अंदर से उसके इच्छा यह थी कि कोई उसे लाल रंग का एक सूट दे। फिर मन को समझा लेती थी कोई बात नहीं जब शादी होगी तब तो घर के लोग लेकर ही देंगे ना ।
अभी 18 साल की हुई थी कि पता लगा कि उसे ससुराल जाना है। उसे समझ नहीं आया कि कौन से ससुराल जाना है ।उसकी तो शादी भी नहीं हुई ।पर घर आए दो पुरुषों के लिए यह कह कर मिलवाया गया कि यह तुम्हारे पिता ससुर है और यह तुम्हारे देवर है । अब तो वह इतनी बड़ी हो गई थी कि उसे ससुर और देवर का मतलब पता था ।लेकिन शादी के लिए तो दूल्हा होता है । लेकिन उसका ना होना उसको समझ नहीं आया और फिर पता लगा कि वह बाल विधवा है ।बहुत रोई ,बहुत चिल्लाई पर किसी ने उसकी ना सुनी। उसे सफेद जोड़े में ससुराल भेज दिया । उसके अंदर का लाल जोड़ा उसके अंदर ही जलकर राख हो गया । जब अपने माता-पिता ने नहीं सोचा तो दूसरों से क्या आशा रखती और भाग्य की विडंबना समझकर गुड्डी चुपचाप ससुराल चली गई। जहाँ उसने अपना जीवन ससुराल की सेवा को अपना भाग्य समझ स्वीकार कर लिया ।
देवर की उम्र में गुड्डी से बड़ा था और उसी की शादी है, इसलिए ससुराल वाले उसे अब लेने आ गए थे। घर में खूब रौनक थी लेकिन किसी को यह ध्यान न था कि इतनी छोटी गुड्डी के भी कुछ अरमान होंगे जो केवल एक बाल विवाह के अंदर दबकर रह गए थे । खैर अब गुड्डी ने अपने आप को समझा लिया था। देवर की शादी बहुत धूमधाम से हुई लेकिन फिर भी उसके लिए लाल जोड़ा नहीं आया । पर देवरानी के रुप में एक छोटी बहन उसे मिल गई थी ।अब वह पहले से ज्यादा खुश रहती थी । सास बीमार रहती थी सो बड़ी बहु का फर्ज निभाते हुए पूरा घर सँभाल लिया था ।
शादी के 2 साल बाद देवर के यहाँ लड़का पैदा हुआ ।लेकिन भाग्य की विडम्बना कहिए या परिवार का दुर्भाग्य , छोटी बहू की डिलीवरी के समय मृत्यु हो गई। बच्चा घर आ गया दादी, बीमार रहती थी और बच्चे की सारी जिम्मेदारी गुड्डी के ऊपर आ गई । देवर तो एक दम गुमसुम कि नन्ही जान का क्या होगा । गुड्डी को तो एक जीता जागता खिलौना मिल गया था ।सास-ससुर,देवर सब दुखी । गुड्डी को भी प्रभु से यही शिकायत रहती कि उसे खुशियाँ नसीब नहीं होती।अब जब देवरानी के रुप में बहन मिली तो प्रभु ने उसे भी छीन लिया ।घर में पोता आया तो देवरानी को खो दिया ।
अब तो गुड्डी ने बिन माँ के बच्चे को माँ बन पालने का निश्चय कर लिया । जब देखो पूरा समय अपने बच्चे की तरह प्यार करती। उसकी ममता का उफान इतना था कि सब लोग हैरान रह गए जब एक दिन उन्होंने देखा गुड्डी बच्चे को अपना दूध पिला रही है। कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं कर पाया लेकिन कुदरत का करिश्मा कहिए कि मासूम बच्चे को एक माँ का दूध नसीब हो गया ।किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था । पर शायद माँ ममता देख भगवान ने गुड्डी की ममता को देखते हुए उसे संपूर्ण माँ का दर्जा दिलवा दिया। सास ससुर के खुशी के आँसूँ रोके न रूकते थे। उन्हें तो विश्वास नहीं होता था कि यह करिश्मा कैसे हो गया । फिर एक दिन सास गुड्डी के पास आई और उसके हाथ में लाल जोड़ा था । जोड़ा लेकर उन्होंने गुड्डी के पैरों में रखते हुए कहा बेटा हमसे भूल हो गई । हम अपना एक बेटा तो वैसे ही खो चुके थे और दूसरे के साथ भाग्य ने अन्याय कर दिया। तू इसकी सचमुच की माँ बन जा। गुड्डी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या कह रही हैं और क्यों कह रही है। तब तक ससुर भी वहीं आ गए और उन्होंने सिर पर हाथ रख कर कहा कि बेटा लोग चाहे कुछ भी कहे अगर बिन ब्याही तुम हमारे पोते को दूध दे सकती हो ,फिर हम तुम्हारी दूसरी शादी क्यों नहीं कर सकते । गुड्डी कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या कहे। वह कुछ कहती उससे पहले ससुर जी ने देवर से उसकी शादी करने का निर्णय सुना दिया। हमेशा से लाल रंग को तरसने वाली गुड्डी अचानक अपने लिए लाल जोड़ा देखकर हैरान और मन के कोने में खुश भी हुई कि चलो घर में खुशियाँ लौट आई और उसने अपनी गर्दन झुका दी।