लाल से हरी बत्ती

लाल से हरी बत्ती

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आठवीं क्लास में आया तो बड़ी जिद्द कर के पापा से साइकिल खरीदवाया। पापा शुरू में कुछ दिन तक ध्यान देते रहे कि मैं सायकिल चलाते वक्त सड़क के नियमों का पालन करता हूँ या नहीं। उनकी परीक्षा में जब मैं खड़ा उतरा तो फिर अकेले सायकिल से हर जगह जाने लगा। मम्मा को भी बड़ा आराम हो गया, अब बाजार का हर छोटा -मोटा काम मुझे थमा देती। नया में तो मैं सायकिल चलाने का बहाना ढूंढता और हर पल मम्मा से जाकर पूछता आज क्या लाना है। यदि मम्मा मना कर देती तो मैं उदास हो जाता। पर धीरे-धीरे ये नशा उतर गया अब तो जब मम्मा दो दिन बाद भी कुछ लाने कहती तो झट मुँह से निकलता रोज दिन कुछ लाने को कहती हो।

कुछ दिनों के बाद तो स्कूल और ट्यूशन जाना भी भारी लगने लगा क्योंकि रास्ते में आता था लाल बत्ती। उफ्फ.. इस लाल बत्ती को देखते मैं  चिढ़ जाता था। चिढूं भी क्यों न हर चौक पे मुझे देखते ही ये बत्ती लाल हो जाती। मुझे तो लगता था ये मुझे चिढ़ाती है।  

  मुझे अच्छी तरह से याद जब पहली बार लाल बत्ती ने मुझे फंसाया था। उस दिन 16 नवम्बर था। स्कूल में स्कूल स्पोर्ट्स डे था और मैं स्लो सायकिल रेस में भाग लेने तेजी से सायकल चलाता हुआ जा रहा था क्योंकि देर हो रही थी। चौराहे पर अच्छी खासी हरी बत्ती जल रही थी। जैसे ही मैं पहुँचा बत्ती लाल हो गई। तेजी में था मैं आगे बढ़ गया। मेरा आगे बढ़ना और पुलिस का डंडा मेरे सायकिल के आगे पड़ना। मुझे इस लाल बत्ती और पुलिस की फुर्ती दोनों पर गुस्सा आ रहा था। फ़ाईन किया और पापा को फोन भी कर दिया। मुझे फिर गुस्सा आया कि जब फाइन कर ही दिए तो पापा को फोन करने की क्या आवश्यकता थी। कहने लगे तुम अभी नाबालिग हो इस लिए तुम्हारे पापा को खबर करना उचित है।

शाम में घर पर कोर्टमार्शल हो गया। चार दिन के लिए सायकिल जब्त कर लिया गया। अब पैदल जाता तो लगता कि हर वक्त वह लाल बत्ती मुझे मुँह चिढ़ा रहा है। मैं उसे देखना ही छोड़ दिया। शाम में स्कूल से लौट रहा था, बैग कंधे पर था। गुस्सा के मारे उस लाल बत्ती को नहीं देखने के फैसले पर अमल रह आगे बढ़ रहा था। लपक कर पुलिस वाले ने हाथ खींचा और कहा - 'मरने का इरादा है क्या? लाल बत्ती नहीं दिखाई देती। किस स्कूल में पढ़ते हो जो इतना भी ज्ञान नही।

 अब बताइए मेरी गलती थी कि मैं लाल बत्ती देखे बिना आगे बढ़ गया। चोट मुझे लगती इसमें स्कूल का क्या दोष जो उसे बीच में ले आए। खैर उस दिन तो मैं घर आ गया कोई शिकायत घर नहीं पहुँची। पर हर दिन घर से निकलते वक्त इस लाल बत्ती की नसीहत किसी न किसी से अवश्य मिल जाती।       इस लाल बत्ती की नसीहत से मैं इतना परेशान हो गया कि सोचा कुछ ऐसा काम करूँ कि इस लाल बत्ती की छुट्टी कर दूँ। जानकारी हासिल करते-करते पता चला कि यहाँ भी अलजेब्रा का नियम लागू होता है। माइनस को काटने के लिए प्लस लाना होगा। अतः इस लाल बत्ती से बचने के लिए बड़ी बत्ती का इंतजाम करना होगा। पापा ने कहा ऑफिसर बनो इससे बचो। मेरे पढ़ाई का तरीका बदल गया। अब हर पल U P S C की परीक्षा कैसे उत्तीर्ण करूँ यही सोचता रहता। 

  मेरी सोच ने मेहनत को बल दिया और वह सुनहरा अवसर आया जब UPSC की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। सभी ने पूछा आईएएस बनोगे या आई पी एस। मैं हुमर कर बोला आई पी एस बनना है और बन भी गया। मेरे आई पी एस बनने पर कोई कुछ भी बोले मुझे तो पता था कि मैं आई पी एस कैसे बना - सिर्फ लाल बत्ती ने मुझे यहाँ तक पहुँचा दिया। अब मैं जब भी चौराहे से गुजरता जी में आता गाड़ी से उतर कर लाल बत्ती को सलाम करूँ। सबके सामने तो ऐसा नहीं करता पर मन ही मन उसे सलाम कर धन्यवाद जरूर देता।  

उफ्फ क्या कहूँ, एच्नछे दिन फुर्र से उड़ जाते हैं।  जल्द ही वो दिन आ गया जब यह लाल बत्ती मुझे देख मुस्कुराने लगी। मैं रिटायर हो घर जा रहा था अपनी निजी कार से और लाल बत्ती मुझे देख मन्द मन्द मुस्का कर लाल हो गई।

मन ने मुस्काया और कहा एक परीक्षा अभी भी दे सकते हो। अब नेता बन जाओ। यदि मंत्री बन गए तो जो आज तक जो नहीं हुआ वो अब होगा। लाल बत्ती तुम्हारे लिए झट हरी हो जाएगी। विचार मन में आते ही मैं पॉलिटिक्स के गलियारे में चक्कर लगाने लगा।


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