Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Tragedy

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Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Tragedy

लाल कलाम (लघुकथा)

लाल कलाम (लघुकथा)

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अपनी युवावस्था के ही एक पड़ाव पर वह स्वयं को कभी प्रौढ़ सा महसूस करती थी, तो कभी वृद्ध। बाल्यावस्था और किशोरावस्था में युवावस्था माफ़िक़ अनुभव उसे उसके पिछले जीवन के अहम पल याद दिला ही देते थे। उसने 'लाल' भी देखे थे और 'लाल रंग' के हाल भी और लाल रंग में बेहाल भी।। 'लाल' पर बातचीत, वाद-विवाद और हादसे भी सुने और देखे थे।

"आजा मेरे लाल!"

"तू ही तो है मेरा लाल!"

"अरे लाली, अभी से क़हर ढा रही है साली!"

"लल्ली बढ़िया डाँस करती है आइटम सॉंग पर!"

"लाल सूट में तो ज़ुल्म करती है छमिया!"

"लाल ही खिलता है शुरू से ही हमारी लाडली पर, है न!"

"ये जो लाल जोड़ा है न, बस यही लड़कियों के जी का जंजाल है!"

ऐसे तमाम कलाम आज फ़िर उसके दिमाग़ में कौंध रहे थे एक एलबम में तस्वीरें देखते समय! लाल रंग और लाल जोड़ों से उसे डर लगता था। लालों से भी! परिवारजन उसके इस भय पर कभी हँसते, कभी डाँटते-समझाते और कभी उसके कुछ बोल पड़ने से पहले उसका मुँह येन-केन-प्रकारेण बंद कर देते या करवा देते थे। लेकिन घर व बाहर के लालों के बीच कभी खुलकर, तो अक्सर तालों में उसकी ज़िन्दगी चलती रही!  

उसने अपनी पुरानी डायरी के एक ख़ास पन्ने को पढ़ना शुरू किया।

"कभी ये लाल, तो कभी वो लाल। बेटों के चेहरों पर थोड़े न लिखा होता है कि दरअसल वह कैसा है लाल! बेटियों का क्या! ज़िंदा है तो लाल रंग से दो-चार हो। जवानी में मरे, तो अर्थी पर भी लाल जोड़ा! ज़िंदा ही मरती-मरती जिये, तो लालों से दो-चार हो! ऊपर से घर-परिवार, रिश्तेदारों और परिचितों के तीखे बोल! भाग्यवती हो या सती हो या रति हो... हर रूप में उसे लाल रंग से अब तो नफ़रत हो गई है मुझे।"

बस यूँ ही डायरी के पन्नों से ही तो बातें कर लिया करती थी वह कॉलेज के उन दिनों में।  

"कुछ नहीं बदला। हर पड़ाव पर वही सब चलता रहा ... लड़की, युवती, औरत, पत्नी, बहू, माँ होने का स्वाभाविक और बलात अहसास, बस!" आज उसने डायरी के उस पन्ने पर ये पंक्तियाँ जोड़ते हुए आगे लिखा, "ख़ूब पाल चुकी अपने लाल.. अब विधवा जीवन में हाल-बेहाल... मेरे लाल विदेश में ... लालों की चाल विदेशी! मेरी उम्र का आज शुरू पैंसठवाँ साल!" 

उसने डायरी बंद की और फ़िर सेंटर टेबल पर रखे अपने जन्मदिन का स्वयं का बनाया केक काटने लगी। केक सफ़ेद रंग का था.. सिर्फ़ सफ़ेद! उसके सफ़ेद बालों के छल्लों की तरह केक की ऊपरी सतह! फ़िर उसका अपना ही ख़ून विदेश से फ़ोन पर बोला, "हैप्पी बर्थ-डे मम्मा!" फ़िर... फ़िर तनिक औपचारिक गुफ़्तगू , बस!


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