लाल बत्ती
लाल बत्ती
क्यों री! तू हर रोज़ मेरे एरिया में क्यों भीख मांगती है ? तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है और अगर न है तो मुझे बता, कर दूंगी उसे ठिकाने।" शंतो ने एक नौ साल की लड़की दिव्या से कहा।
दिव्या ने अपना कटोरा उठाकर और अपने नन्हें हाथों से आँसुओं की बूँदों को पोछते हुए कहा - अम्मा मैं यहाँ भीख मांगने नहीं आती, मैं तो....
'क्या! क्या ? मैं तो, फिर... यहाँ तू रोज़ नाचने आती है। तेरे कटोरे में जो रेजकारी पैसे भरे होते हैं वो अपने आप आ जाते हैं क्या ? तुझे तो अगर दो साल पहले ही देखते मैं यहाँ से भगा देती तो आज मुझे ऐसा दिन नहीं देखना पड़ता, और जब देखो गंगा-यमुना बहाने लगती है। मनहूस कहीं की.. मेरे धंधे पर जब देखो मंडराती रहती है। ' शंतो ने उसके बालों को अपनी उंगलियों से खींचते हुए बोली और उसे ज़मीन पर गिराकर चली गई।
दिव्या रोती रही, क्योंकि इसी लाल बत्ती पर ही... दो साल पहले उसे उसके घरवाले उसे बेहोशी की हालत में छोड़ गए थे। न जाने क्यों ? क्योंकि माँ तो उसे बहुत प्यार करती थी और घर के सभी परिवार वाले भी,
पर... फिर भी उसके साथ ऐसा क्यों किया ? क्या कमी थी ? माँ तो कहती मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, मुझे तो छोटा भाई भी बहुत प्यार करता था। पर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ? क्यों ?
हर रोज़ यहीं सवाल और न जाने कब इन सवालों के उत्तर मिलेंगे। यही सोच-सोच कर वो उस लाल बत्ती के पास भीख मांगने चली जाती थी।
