क्यूं टूटते रिश्ते
क्यूं टूटते रिश्ते
कौन दोषी यहां कौन निर्दोष है, मोह में कुछ उलझते
समझ न आता जब किसी को, फिर वक्त के आगे झुकते।।
हर बात में लाते मान-सम्मान को, परिवार में जबकि रहते
भूलना पड़ता कुछ बातों को, तभी परिवार को जोड़े रखते।।
बड़े ही सहते अक्सर बंधु, छोटे कभी न झुकते
जिसको होती परिवार की चिंता, वो बड़े भी छोटे बनते।।
देना-लेना भी करना पड़ता, रिश्ते तभी संभलते
लेते रहते से बिगड़ते रिश्ते, न देने से ज्यादा संभलते।।
भाव में बहकर जो निर्णय लेते, उन्हे, प्रैक्टिकल गलत समझते
भाव को उनके समझ न पता, उनके साथ हसी टठोले करते।।
भाव में होता ईश्वर का वास है, जो ह्रदय में दया-करुणा रखते
क्षमा के होते प्रतिमूर्ति, जो कल्याण मार्ग पर चलते।।
संतुलन बनाकर चलते है जो, वही सही जीवन जी सकते
धैर्य संयम रखते जीवन, तर्को से भी बचते।।
सीमित रिश्ते सीमित खर्चे, कर्जा लेने से बचते
तामझाम की ज्यादा न सोचते, संतोष मन रखते।
भाव-बुद्धि ज्यादा रिश्ते बिगाड़े, ये सोच, सीमित दूरी-रिश्ते बनाकर चलते
मीठी रखते अपनी वाणी, न बात ऊंची आवाज में करते।।