क्या आप मुझे जानते हैं??
क्या आप मुझे जानते हैं??
याददाश्त तो सही है....दिमाग पर बहुत जोर दिया, फिर ये सवाल क्यों भई....
ओह, ऐसे तो तब होता है, जब कोई अपरिचित सा लगने वाला हाथ अभिवादन के तौर पर हमारे सामने जुड़ जाए, और आप असमंजस की स्थिति में सामने वाले से ये पूछ बैठें की....क्या आप मुझे जानते हैं, , ,
वैसे सच कहें, ऐसा हमारे साथ बहुत बार होता है, , हमे किसी की शक्ल जल्दी याद नहीं होती, ,
ना जी ना, इसमे उनका नहीं बल्कि हमारा दोष होता है, क्योंकि कुछ भुलक्कड प्राणियों में हमारी भी गिनती आती है.....
अभी कल ही जनाब कह रहे थे कि तुम्हारा यहि हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब तुम हमें भूल जाओगी...
हे शिव....ये क्या कह दिया आपने, ,
उनकी बात सुनकर तो हम भई दंग रह गए...
अब उन्हें कैसे बताते कि उनसे मिलने के बाद तो हम ने खुद को जाना है कि हम क्या हैं?? कौन हैं??
फिर भला उन्हें कैसे भूल सकते हैं..
कोई हमें जाने इसके पहले हम खुद को जान लें तो क्या बात हो....
कहीं पढ़ा था....मैं हालत से निर्मित नहीं, मेरा निर्माण मेरे फैसले से हुआ है...
खुद को जानना और फिर अपनी खूबियों और कमियों पर काम करना ज्यादा जरूरी है...
किसी से सुना था, , अपने बारे में ना किसी पीर से पूछो ना किसी फकीर से पूछो, बस आंखें बंद करके अपने जमीर से पूछो,
किन्तु इस भागदौड़ की जिंदगी में अपने ज़मीर से बात करने का वक्त ही नहीं.. क्योंकि हमें दूसरों की फोटोज़ भी तो देखनी है.. इन्स्टा, फ़ेसबुक में.. हर बहस में अपनी राय भी देनी है क्योंकि हमारे कुछ न करने से कोई आफत आ जायेगी, दुनिया रुक जायेगी...
हम में से कुछ लोग तो सोशल मीडिया में इतने उलझे हुए कि…अब क्या कहें..
जब से हम चलना शुरू करते हैं तबसे पढ़ना भी शुरू करते हैं, और बस पढ़ते ही रहते हैं, कुछ बड़े होते हैं तो संस्कार के चलते मंदिर भी जाते हैं...
पर हम अपने मन मन्दिर में कितना जाते हैं और कितनी देर खुद से बातें करते हैं..
इसलिए हमें तो रोजाना अपने आप में IMPROVE करना चाहिए..
खुद को जानिये, सँवारिये, सम्भालिये, और अपनी एक अलग पहचान बनाइये...