Priti Khandelwal

Abstract

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Priti Khandelwal

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कठपुतली

कठपुतली

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ये क्या....??? कहां जा रही हो तुम लोग...घर के इतने काम पड़े हैं और महारानीयों को घूमने की पड़ी है..याद है ना आज इडली सांभर और बड़े बनाने हैं। और वो आज ही बनाने है...कल नहीं...


सुमन जी की तीन बहुएं थी... सुमन जी के पतिमहेश जी बहुत ही सीधे-साधे थे पर सुमन जी बहुत ही कड़क स्वभाव की थी... घर में सारे काम उनके अनुसार ही होते थे और अपनी बहुओंं से कैसे काम कराया जाता है... सुमन जी को बखूबी आता था।

कहती थी।

"रिया आज दोपहर में मंदिर की सफाई करनी है याद है ना?" सुमन जी ने कहां...

"जी मम्मी जी, कर लेंगे शाम को।"

"नहीं! दोपहर में ही करना है।

"वो मम्मी जी..., कल प्रिया के एग्जाम है तो मुझे दोपहर में उसे पढ़ाना था, रात को फिर टाइम नहीं मिलता है।" रिया ने सुमन जी से कहा..."देखो रिया.. शाम को मंदिर की सफाई नहीं होगी, शाम को मुझे सत्संग में जाना है। इसलिए मंदिर की सफाई दोपहर में ही होगी।"सुमन जी ने कहा

इतने में मझली बहू रिम्मी आ गई...बोली "दीदी आप प्रिया को पढ़ा लीजिए, मंदिर की सफाई मैं कर लूंगी।"

तभी छोटी बहू आशा ने कहां," दीदी रात के खाने कि भी चिंता मत करिए मैं और रिम्मी दीदी सब सम्भाल लेंगे...आप प्रिया को आराम से पढ़ा लीजिए।"

कहने को तो तीनों देवरानी जेठानी थी...पर उनमें सगी बहनों से भी बढ़कर प्यार था आपस में। तीनों एक दूसरे का दुःख - सुख समझती थी।

अगले दिन रिम्मी के पति ने रिम्मी को कहां की आज रात हम लोग डिनर बाहर ही लेंगे..तो मम्मी से पूछ लेना।

रिम्मी ने डरते डरते सुमन जी से पूछा.... तो सुमन जी ने तपाक से कहा.... "कोई जरूरत नहीं है, आज तो मलाई कोफ्ता और शाही पनीर घर में ही बनेगा... इसलिए होटल जैसा अच्छा अच्छा खाना घर में ही बनाओ और हमको भी खिलाओ।"रिम्मी मन मसोसकर रह गई ....जानती थी कि बेटे भी मां बाप के सामने कुछ नहीं बोल पाते।

थोड़े ही दिन बाद गांव से सुमन जी की सास भी दिल्ली रहने आ गई। अब तो सुमन जी भी सिर पर पल्ला लिए अपनी सास के आगे पीछे घूमती रहती और एक आवाज में ही उनके सामने हाजिर हो जाती।

यह सब देख कर तीनो बहुओं की हंसी ही छूट जाती, पर सुमन जी देख ना ले......इसलिए मुंह दबाए तीनों हंसती रहती।

"देखो दीदी, अब मिला ना सेर को सवा सेर। अब कैसे मम्मी जी भी हमारी ही जैसे कठपुतली की तरह नाच रही है।" छोटी बहू आशा ने कहा

अब तो सुमन जी भी अपनी सास की अपने पति महेश जी से और अपनी बहुओं से बुराई करती रहती। " .....अरे 1 मिनट भी बैठने नहीं देती है कैसी सास है...?" पहले तो अच्छी ही थी पर न जाने इस बार इनको क्या हो गया है जैसे मदारी जमुरे को नचाता है, वैसे ही अम्मा जी मुझे नचा रही है।"


पांच - सात रोज में ही सुमन जी का अंग अंग काम कर कर के दुखने लगा। महेश जी के सामने अपना दुखड़ा सुनाती तो महेश जी भी अपनी मां के खिलाफ एक शब्द नहीं सुनते.....

.... और तीनो बहुएं उनको तो अपनी सासू मां को खुद की जैसी बहू बनी देख बहुत खुशी होती थी। और सुमन जी वह अपना सारा गुस्सा रिया, रिम्मी और आशा पर निकालती थी

इधर अम्मा जी तीनों बहुओं को तो बहुत लाड प्यार करती उनको घूमने फिरने के लिए बोलती और उनकी तारीफ भी करती यहां तक कि तीनो को एक काम न करने देती।....... और सुमन जी को जब देखो झिड़कती रहती..... और घर का सारा काम भी सुमन जी से ही करवाती कि बहुओं का उनको पसंद नहीं..... यह सब देख कर सुमन जी तो एकदम जल भुन जाती थी

एक दिन अम्मा जी ने सुमन जी को मक्के की रोटी, सरसों की सब्जी, कैर सांगरी की सब्जी और बाजरे की राबड़ी बनाने के लिए कहा और हिदायत दी कि "यह सारा काम तुम्हें ही करना है इन लोगों के हाथ का मुझे पसंद नहीं आता।"

15 दिनों की झल्लाहट यह सुनते ही फूट पडी ...सुमन जी चिल्ला उठी "......अरे थक गई हूं मैं..... चाकरी करते करते..... कठपुतली ही बना कर रख दिया है ..भई इंसान हूं मैं भी।"

इतने में ही अम्मा जी गरजी... " क्या बोला तूने....?

........

कठपुतली नहीं है... तू इंसान है।.....पर एक बात बता क्या एक तू ही इंसान है...?"

"......तू किस तरह हिटलर की जैसे रौब जमा कर रखती है वो सब पता है मुझे......., कैसे तूने सालों से तीनों बहुओं को एक टांग पर नचाया है..... सब जानती हूं मैं"

"..... क्या तू भूल गई जब तू शादी होकर आई थी... तब मैंने तुझे बहू नहीं बेटी की तरह प्यार किया, तेरी हर इच्छा का सम्मान किया ।"

"अरे तुझे तो खाना बनाना भी नहीं आता था पर मैंने इस बात को कभी तूल नहीं दिया तुझे बड़े ही प्यार के साथ सब कुछ सिखाया.... तुझे कोई काम नहीं करने दिया।..... पर आज तू इस तरह से अपनी बहुओं पर रौब जमाती है ...उन्हें मर्जी से थोड़ा भी जीने नहीं देती है।.... तू तो जैसे भाग्य विधाता ही बन गई है इनकी।"


सुमन जी सर झुकाए अपनी सास को बाते सुन रही थी।सच ही तो कह रही है अम्माजी...जब वो खुद बहू बनकर आई थी तो अम्माजी ने एक सास बनकर नहीं एक मां बनकर उनको गले लगाया...और एक वो हैं जो अपनी बहुओं को सिर्फ काम करने की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं समझती है... बस रौब जमाती रहती है...।

सुमन जी के आंखो मे पश्चाताप के आंसू आ गए...उन्होंने कहां,..." सास बनने के गुमान में मैं भूल गई थी कि मैं भी एक औरत हूं.......,मैं भी कभी बहू थी..."

"अम्माजी ने उस जमाने में जब मुझे इतना प्यार और सम्मान दिया... और मैं...? मैं पढ़ी - लिखी,.... आज के जमाने की होने के बावजूद तुम तीनो को छोटी छोटी खुशियों के लिए तरसाती रही...अपनी सास को एक मौका और देदो तुम लोग.."

"आज के बाद से तुम्हारे ससुराल और पीहर का फर्क मैं खत्म करती हूं... आज से तुम तीनो मेरी बहुएं नहीं बेटियां हो..." और तीनों बहुओं को गले लगाकर माफी मांगी...और बस उसी पलसे वहां कठपुतलियों की जगह प्यारी प्यारी बेटियां बसने लगी!



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