मेरे पिता मेरा गुरूर
मेरे पिता मेरा गुरूर


दोस्तों हर लड़की के कुछ सपने कुछ अरमान होते हैं। अपने इन्हीं सपनों को आंखो में संजोए वो ससुराल आती हैं। ससुराल अच्छा हो तो जीवन एक तरह से खुशहाल हो जाता है। पर ससुराल अच्छा ना हो तो वहीं जीवन नरक हो जाता है। आज मै जो कहानी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रही हूं। उसकी नायिका दिव्या के अरमान पूरे होते हैं। या उसके सपने ससुराल की दहलीज पर पहुंचने के पहले ही बिखर जाते हैं। आप इसके लिए कहानी पूरी पढ़ीयेगा। और पसंद आए तो अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे। ताकि मेरा उत्साह बना रहे। आपकी प्रतिक्रिया मुझे लेखन के प्रति उत्साह से भर देती हैं ""
अरे कितनी सुंदर लग रही हैं मेरी लाडो"।किसी की नजर ना लगे।।कहते हुए मीना जी ने अपनी आंखो के कौर से काजल लेकर दिव्या के कान के पीछे लगा दिया।।
जैसे कल की सी बात है अपने छोटे छोटे कदमों से दिव्या सारे घर में धूम मचाती रहती थी। एक पल को भी दिव्या जी उसे आंखो से दूर नहीं होने देती थी। आज वही छोटी सी गुड़िया दुल्हन के रुप में शादी के जोड़े में सामने खड़ी हैं।मीना जी के आंखों में आंसू आ गए पर उन आंसुओं को छुपाती हुई वह शादी के कामकाज में जुट गयी।
इतने में ही किसी ने आवाज दी बारात आ गई। और सब बारातियों के स्वागत के लिए तोरण के पास चले गए।
चारों और खुशी का माहौल था और सब खुशी से नाच गा रहे थे पर दूल्हे के मां-बाप अलग ही कोने में मुंह फुलाए खड़े दिखाई दिए। वो ना तो मीना जी और उनके पति से बात कर रहे थे ना ही खुश दिखाई दे रहे थे।
मीना जी यह सब देख कर परेशान हो गई कि यह क्या हुआ। पर लगा कि शायद यह उनका वहम है और फिर से काम में जुट गई।
थोड़ी देर बाद दुल्हन को स्टेज पर बुलाने के लिए कहा गया। इधर दिव्या स्टेज पर पहुंची और उधर बवाल शुरू हो गया।
वहीं हुआ जिसका डर था। रमाकांत जी (दिव्या के पिता) हाथ जोड़कर लड़के के पिता के सामने खड़े थे।और लड़के के पिता एक बेटे के पिता होने का गुरूर दिखा रहे थे।
"मुझे क्या मिल गया इस शादी में। तुमने 20 लाख बोले थे पर 20 लगाए तो नहीं। "इतनी गूदडी नहीं थी तो बोला ही क्यों था। कि हम 20 लाख लगाएंगे"
दिव्या के पापा हाथ जोड़ते हुए बोले।"समधी जी पर हमने तो अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा इंतजाम किया हैं। यकीन माने हमने कोई झूट नहीं बोला। "
"अरे बहुत खूब समझता हूं मैं मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो।और ना ही शराफत का नाटक कर मेरे सामने। मेरे बेटे को फंसा लिया तुम लोगो ने। चाहूं तो अभी बारात वापिस ले जा सकता हूं। "
वर के पिता ने कहा।
इतने में ही ये बाते कानाफूसी होते हुए वर वधू तक पहुंच गई।।मोहित।।जिससे कि दिव्या की शादी हो रही थी यह सब बाते सुनकर बेचैन हो गया। दिव्या भी एक आस लिए उसकी ओर देख रही थी। कि मोहित कुछ कहे। अपने पिता को समझाए।
मोहित उठा और अपने पिता के पासगया। दिव्या को भी लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा।
पर ये क्या।।"पापा,यह शादी करनी है या आप बोलो तो मैं उठ जाऊ।दिव्या तुम्हारे पापा को बोलो अभी माफी मांगे।।
"दिव्या के पैरो तले जमीन खिसक गई मोहित का यह रूप देखकर। जिस इंसान से पिछले तीन महीने से बात कर रही हैं।।मिल रही है ये तो वो हैं ही नहीं।
रमाकांत जी हाथ जोड़े खड़े थे। क्या कमी रह गई कपड़ा,जेवर,पैसा,गाड़ी सब कुछ तो खुदकी हैसियत से बढ़कर किया है।।फिर भी कहा कमी रह गई यही सोच रहे थे।
तभी दिव्या भी वहां आ गई। "क्या हुआ पापा सब ठीक है ना। ??"दिव्या ने पूछा तो रमाकांत जी कहने लगे "सब ठीक है। अरे बेटा तुम यहां क्यों अाई हो।?
"इतने में मोहित ने कहा।" कुछ ठीक नहीं है।दिव्या तुम्हारे पापा ने बारात की आवभगत ठीक से नहीं की।इनसे कहो कि माफी मांगे। "
दिव्या स्तब्ध थी ये सब सुनकर। जो पापा उसका गुरूर हैं।बचपन से जिन्होंने नाजो से पाला उसे।पिता कम और दोस्त ज्यादा बने उसके। आज उनके लिए अपने भावी पति से ये शब्द दिव्या को सहन नहीं हुए।
पापा। "आप इन ओछे लोगो की बाते क्यूं सुन रहे है। ?आप ही तो हमेशा कहते थे गलत करने वाले से ज्यादा दोषी गलत सहने वाला होता है।फिर आज क्यों चुप है।जो लोग इस तरह शादी के बीच में लेन देन को लेकर तमाशा कर सकते हैं।वो शादी के बाद तो जाने क्या करेंगे। "
लड़की तू बीच में मत बोल। ""एक तो पहले ही तेरे बाप ने हमारी आंखो में काजल लगा दिया। "मोहित के पिता बोले।
"तभी तो आपकी आंखे इतनी सुन्दर हो गई पापाजी। सॉरी।ना होने वाले पापाजी"।। दिव्या चीख कर बोली।
"ये क्या बोल रही हो तुम" मोहित ने टोका।
"जी बिल्कुल सही बोल रही हूं। कब से देख रही हूं मम्मी पापा आप लोग की मनुहार में एक टांग पर खड़े हैं। फिर भी आपकी फरमाइशें ही पूरी नहीं होती। "
" कैसे भी बेटी की शादी शांति से हो जाए। वो खुशी खुशी अपने ससुराल जाए वाहा उसे प्यार और सम्मान मिले इसके लिए ना जाने कितने माता - पिता अपने स्वाभिमान और सम्मान को तार - तार होने देते हैं। और आप जैसे लड़के वाले इसे अपना गुरूर समझते है। कब से मेरे पापा बिना किसी गलती के हाथ जोड़े आपसे माफ़ी मांगे जा रहे हैं। क्यों। ?"
"कहां ऑफिस में सब मेरे पापा के आगे पीछे सर सर कहकर घूमते हैं। अपने आत्मसम्मान के लिए जिन्होंने मुझे लड़ना सिखाया। आज वही खुदका अपमान करवा रहे हैं। मैं पूछती हूं क्यों।
क्यूंकि वे एक बेटी के बाप हैं। ""इस समाज की सोच कब बदलेगी। बेटी के मा बाप होने का मतलब ये है कि उन्हें अपमान का घूंट पीने होगा। अगर हां। तो मुझे ये मंज़ूर नहीं। मेरे पापा मेरा गुरूर है। और उनका अपमान मैं कभी बर्दाश्त नहीं सकती। मैं यह शादी नहीं कर सकती। "
"अरे ये लड़की तो इतनी तेज़ हैं।देखो कैसे केंची की जैसे जबान चलती हैं इसकी। कोई लिहाज शर्म सिखाई नहीं इसको।अच्छा हुआ जो हम बच गए।वरना तो ना जाने ये क्या करती। "मोहित की मां ने कहा।
"जी बचे तो हम हैं। वरना आप जैसे लालचियों के यहां ही बहुएं रसोई में जलकर मरती हैं। "
"।।और बाकी आजकल तेज़ बनना पड़ता है वरना आप जैसे निर्लज्ज दहेज लोभियों के यहां आग की वेदी पर तपना पड़ता है।।।मै भाग्यशाली हूं कि मेरे पिता ने मुझे रोटी बनना ही नहीं कामना भी सिखाया है। संस्कार के साथ स्वाभिमान की भी शिक्षा दी हैं। जो लोग मेरे पित्त का सम्मान नहीं के सकते उस घर में ब्याहने से अच्छा है मैं आजीवन कुंवारी रह जाऊं। और हां एक बात और आपके इस अपमान पर मानहानि का दावा भी किया जाएगा। अब आप तशरीफ़ ले जा सकते हैं।"
अपनी बेटी की बाते सुनकर रमाकांत जी की आंखो में अब आंसुओं को जगह गर्व झलक रहा था।
दोस्तों कब तक हमारे समाज में ये चलता रहेगा। ?क्या लड़की के मां बाप और लड़के के मां बाप में कोई अंतर होता है???क्या दोनों समान सम्मान के अधिकारी नहीं होते।? तो क्यों हमारा ये समाज लड़की वालों को ही हमेशा झुकाना चाहता है।