कश्मकश [ भाग - 5 ]
कश्मकश [ भाग - 5 ]
रिया के कपड़े बारिश में पूरी तरह भीग चुके थे। बँगले में एक नौकरानी काम किया करती थी। उसने रिया को अपनी एक साड़ी दे दी। रिया को अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी। एक तो वो दिल की मरीज़ थी उपर से रिया के ग़म में दवाईयाँ भी नही ले रही होगी। रो रो कर बुरा हाल कर लिया होगा। सोच कर रिया की आँखें भर आयी। और बाबा.... न वे अपने आप को संभाल पा रहें होंगे न माँ को। काश यह सहगल नाम का ग्रहण उनके हँसते खेलते परिवार पर न पड़ता। रिया ने लम्बी साँस ली और ठान लिया कि बस बहुत हो गया। आज रात उसे यहाँ से निकलना ही है। वो यहाँ से भागकर टापू पर आए उन लोगो के पास जाएगी। वे उसे अवश्य शहर तक पँहुचा देंगे। रोज़ रात को रोहित दस बजे उसे इन्जेक्शन देने आता था। वह कमरे की बत्तियाँ बुझा कर हाथ में डण्डा लिए दरवाज़े के पीछे छुप गई। जैसे ही रोहित कमरे में दाखिल हुआ रिया ने उसके सिर पर वार किया। पर सिर की जगह डण्डा उसे कन्धे पर लगा और वो गिर पड़ा। मौका देख कर रिया भाग पड़ी। पर रोहित ने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ लिया और झटके से उसकी साड़ी खींच कर उतार ली। लज्जा के मारे रिया घुटनों पर बैठ गई और अपने आप को अपनी बाँहों में समेट लिया। रोहित घायल शेर की तरह उठ खड़ा हुआ और रिया की ओर बढ़ा।
"मुझे जाने दो....मेरी माँ बहुत बीमार है।"
- रिया हाथ जोड़ कर रोहित से विनती करने लगी।
"तू है तो उस सहगल की ही बेटी न...उसकी तरह धोखेबाज़ ही निकली।"
"मैं नही जानती इन दो परिवारों में क्या बैर है। मैंने तो सिर्फ अपनी माँ का प्यार देखा है। मेरे बिना मेरी माँ का बुरा हाल हो रहा होगा।"
"कभी सोचा है तेरे बाप की धोखाधड़ी ने मेरे परिवार का क्या हाल किया है। मेरे बाबा तिल - तिल कर के मर गए। उनके जाने के बाद लोगो ने माँ को बाज़ार में खड़ा कर बोलियाँ लगाना शुरू कर दिया। इस अपमान के दुख में माँ ने आत्महत्या कर ली। अब इन सबका बदला मैं तुझसे लूगाँ।"
यह क
ह कर वह खूँखार दरिन्दे की तरह रिया पर टूट पड़ा।
"मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। मुझे छोड़ दो।"
अपनी नग्नता को छुपाने का विफल प्रयास करती हुई रिया रोहित से गिड़गिड़ाई। पर रोहित पर तो जैसे नफ़रत का भूत सवार हो गया। उसे न रिया का दर्द नज़र आता था न ही उसका करुण विलाप उसके कानों में पड़ता था।
रोहित उसके शरीर को जितनी चोट पँहुचा रहा था उससे कहीं अधिक पीड़ा उसकी आत्मा को दे रहा था। रिया सिवाय रोने और चिल्लाने के कुछ नहीं कर पा रही थी और रोहित अपने बल और पौरूष के अंहकार मे रिया के जीवन, भविष्य और सपनों को बड़ी निर्दयता से रौंद रहा था। रोहित की प्रतिशोध की ज्वाला में रिया का सबकुछ जल कर स्वाहा हो रहा था। महज़ अठारह वर्ष की अल्पायु का उसका शरीर रोहित के अत्याचारों को अब और ज़्यादा सहन करने की अवस्था में नहीं था। धीरे - धीरे बेहोश होते हुए रिया यही सोच रही थी कि पुरूष अपने प्रतिकार का युद्ध लड़ने के लिए रणभूमि स्त्री के शरीर को ही क्यूँ बनाता है ?
बाहर निरन्तर हो रही बरसात पूरे जँगल को भीगो रही था और रोहित रिया को अपनी वासना की वृष्टि में। कभी बीच - बीच में बाहर बारिश रुक भी जाती और इधर रिया को होश आ जाता।
दीवार पर टँगी घड़ी उसे अवगत कराती कि वो पिछले 48 घण्टों से निरन्तर रोहित का शिकार बनी हुई है। अब वो अपनी माँ के पास जाने का विचार भी छोड़ चुकी थी। क्या मुँह लेकर जाती उनके पास। उस पर दाग जो लग चुका था।
अब उसकी एक ही इच्छा थी कि रोहित की कामाग्नि शान्त होने के साथ ही उसकी जीवनज्योति भी बुझ जाए। अब उसे कभी होश न आए। परन्तु वह आँखें बंद करती तो उसे रोहित की हैवानियत सपनों में दिखाई देती और जब उसे होश आता तो वह उसे यथार्थ में वैसी ही यातनाऐं दे रहा होता।
टूटी हुई माला - सा बिखरा हुआ उसका सम्मान और कुचले हुए फूल जैसा उसका नग्न शरीर रोहित को अपनी ओर बढ़ते देख काँप उठते।