कश्मकश [ भाग 10 ]
कश्मकश [ भाग 10 ]
रोहित को जब होश आया तब उसने अपने आप को कुर्सी से बंधा हुआ पाया। कमरे मे हल्की - सी रोशनी थी। उस धुन्धली - सी रोशनी मे उसने देखा कि कमरे में कई लोग उस पर निगरानी रखे हुए थे।
"हमारे गरीबखाने में आपका स्वागत है, मिस्टर वर्मा।"
- एक स्त्री की आवाज़ उस कमरे मे गूँजी।
वह दूर अँधेरे कोने में खड़ी थी इसलिए रोहित उसका चेहरा नही देख पा रहा था। वह रोशनी की ओर बढ़ी तो रोहित उसे देखकर दंग रह गया,
"रिया...!"
"हाँ, तुमने सोचा होगा कि मैं मर गयी। नहीं...मैं ज़िंदा हूँ। तुम्हे तुम्हारे कर्मो की सज़ा देने के लिए। वो बिजली की तारे देख रहे हो। वो तुम्हे करन्ट के झटके देंगी। ताकि तुम्हे ये अहसास हो कि अनचाहा स्पर्श एक लड़की को कितनी पीड़ा देता है। ठीक उसी तरह जैसे तुमने मुझे दिया था।"
"तुम्हे मुझे जो सज़ा देनी है दे दो पर उससे पहले मेरी एक बात भी सुन लो। मैं मानता हूँ कि मेरा तरीका गलत था पर मेरा ईरादा गलत नही था। मुझे तुमसे प्यार हो गया था...उस दिन से जिस दिन मैने तुम्हे उस सुनसान स्टेशन पर पहली बार देखा था। तुम मेरी कैद से भाग जाना चाहती थी और मै तुम्हे अपने से अलग नही होने देना चाहता था। तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम ने मुझे स्वार्थी बना दिया था। तुम्हे हमेशा के लिए अपने आप से जोड़ लेने की लालसा ने मुझसे वो सब करवाया। मैं आज तक त
ुम्हारी ही तलाश कर रहा था। इसी कारण मैंने आज तक शादी भी नही की।"
"वाह क्या बात है... प्यार !"
रिया के चेहरे पर एक क्रूर हँसी फैल गयी।
"तुम क्या समझते हो ? तुमने कह दिया और मैंने मान लिया। तुम्हे पता भी है तुमने मेरे साथ कितना घिनौना सुलूक किया है ! तुम्हारे अत्याचारो ने मुझे तोड़ कर रख दिया। दिन - रात वो डरावनी यादे मुझे तड़पाती रहती थी। कई महीनो तक मैं हर रात पागलो की तरह रोती बिलखती रहती थी। और फिर एक दिन जब होश आया तो मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ।"
"क्या...!"
रोहित की आँखे चमक उठी,
"वो बच्चा कहाँ है ?"
"नहीं है..."
रिया ने नज़रे चुराते हुए कहा,
"मैंने मार डाला बच्ची को।"
"रिया...!"
रोहित को न जाने क्यों पर उसकी बात पर विश्वास न हुआ।
"तुम ऐसा कैसे कर सकती हो ?"
"अगर तुम कर सकते हो तो मैं भी कर सकती हूँ।"
तभी बाहर से गोलियाँ चलने की आवाज़ आई। रिया के एक सहायक ने कहा,
"मैडम, इसके लोगो ने इस जगह को चारो तरफ से घेर लिया है। वो संख्या में हमसे अधिक हैं। फिलहाल यहाँ से निकलने मे ही भलाई है।"
रिया उन लोगो के साथ पिछले दरवाज़े से निकल गयी।
रोहित उसे रोकना चाहता था पर उसके हाथ बँधे थे।
वह रिया को आँखो से ओझल होते बस देखता ही रह गया।