करवाचौथ
करवाचौथ
वेसे तो राजीव की आसामयिक मृत्यु के कारण ,उसका मन हर करवाचौथ पर बड़ा उदास हो जाता था।पर अपनी नई बहू को अपने घर के रीति रिवाज सिखाने के चलते ।आज वो भी बड़े मनोयोग से पूजा की तैयारी में लगी थी।पूजा का प्रसाद आदि अपनी बहू से बनवाते बनवाते कब सुबह से शाम हो गई, उसे पता ही नही चला।मॉर्डन जमाने की बहू ने जब उससे कहा कि अब तो भूख के मारे उसकी जान निकली जा रही है।तब उसे भी ध्यान आया कि अन्न का दाना तो आज उसके पेट मे भी नही गया था।जैसे ही मोहल्ले में चाँद दिखने की बात सुनी, उसने बेटे को बहु के साथ पूजा करने छत पर भेज दिया।और खुद थकान मिटाने की नीयत से हाल में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
वहां उसकी नजर दीवार पर लगी राजीव की तसवीर पर गई।उसे याद आया ,ये हमेशा कहते थे "मुझे नही देखना ऐसा चाँद जिस पर जमाने की नजर है।मेरा असली चाँद तो तुम ही हो,जिसने अपने स्नेह व समर्पण से ,मेरा जीवन रोशन कर दिया है।"
मन मे उठी इन सुनहरी यादों से तभी उसके के नेत्रों से अश्रुधारा फूट पड़ी ।और उसे एसा लगा मानो आसुओं ने आज ,उसके होंठो तक पहुँचकर अनायास ही उसका भी उपवास खुलवा दिया।
