कोरोना पर विजय
कोरोना पर विजय


डाॅक्टर सुभाष जी ने आशीर्वाद की विशुद्ध भारतीय परम्परा का पालन करते हुए अंकित-अंकिता को ठीक उसी मुद्रा में आशीर्वाद दिया जिस प्रकार जिस किसी को वरदान देते हुए ईश्वर या देवी की मुद्रा होती है । अंकित-अंकिता ने भी तो उसी भारतीय परंपरा के अनुरूप दोनों हाथ जोड़कर सिर नवाते हुए प्रणाम किया था। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण उपजी आज के समय की आवश्यकता के अनुसार सभी ने मास्क लगाकर अपनी-अपनी जेब में सैनिटाइजर भी रखा हुआ था।
"तुम लोगों की फ्लाइट कब की बुक हुई?"-डाॅक्टर साहब ने अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा।
"नहीं, डॉक्टर साहब। हम दोनों दिल्ली में ही रहकर दादाजी और दादीजी की सेवा करते हुए ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से तैयारी करते रहेंगे। घर पर हम लोगों ने फोन पर बात करने के बाद यही अंतिम निर्णय लिया है।यदि हम चले जाते हैं तो हमारे बिना यहां दादाजी-दादीजी को बहुत परेशानी होगी और घर पहुंच कर भी हमारा मन तो इन्हीं के पास लगा रहता। अब तो इन स्थितियों में रहने के लिए सभी को सावधानीपूर्वक अनुकूलित करना पड़ेगा क्योंकि डरने तो काम चलेगा नहीं। साथ ही बेहतर तैयारी यहां रहकर ही हो पाएगी।"-अंकिता ने डॉक्टर साहब को अपनी योजना स्पष्ट करते हुए बताया।
"ये बड़ा अच्छा विचार है। आपके मुंहबोले दादाजी दीनदयाल जी और आपकी दादीजी की देखभाल को ध्यान में रखते हुए। अब वे तुम्हारे मकान मालिक कम दादा- दादी ज्यादा हो गए हैं। अगर तुम चले जाते हो तो उनका ख्याल तुम्हारी तरह शायद ही कोई रख पाएगा।प र तुम्हारे दादाजी भी तो वहां अकेले हैं वहां। उन्हें तो वहां अकेले रहने में बड़ी परेशानी होगी।"- डॉक्टर सुभाष जी ने अंकित- अंकिता के अपने दादाजी की देखभाल को ध्यान में रखते हुए उनसे पूछा क्योंकि उन्हें यह मालूम था कि लॉकडाउन की इस अवधि में उनके पिताजी को हुई स्वास्थ्य समस्या के कारण उनकी माताजी उनके पास चली गईं थीं और उनके दादाजी वहां जाने को ठीक उसी प्रकार तैयार न हुए थे जिस प्रकार दीनदयाल जी और उनकी पत्नी अपने बेटे-बहू के साथ अमेरिका जाने को तैयार न हुए थे।
हमारे आज के इक्कीसवीं सदी के समाज में यह एक भयावह विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गई है कि बच्चे अपने बेहतर करियर के लिए अपने माता पिता को छोड़ दूर-दराज के शहरी क्षेत्रों में अध्ययन और तैयारी के लिए जाते हैं ।जहां उनके ऊपर अभिभावक रूपी छत्रछाया नहीं होती ।कभी-कभी कुछ नवयुवक -नवयुवतियां कच्ची उम्र के इस मोड़ पर भटक भी जाते हैं और अपना भविष्य बेहतर करने की बजाय कभी-कभी वे गलत संगति, असामजिक तत्त्वों के ललचाने वाले जाल में फंसकर नशे, ड्रग्स आदि दुर्व्यसनों की समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं। बहकावे में आकर स्मगलिंग और आतंकवादी गतिविधियों के कुचक्र तक में फंसे जाते हैं। जिसके कारण वे स्वयं के लिए , अपने परिवार, समाज और यहां तक कि देश के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। इसके साथ एक और समस्या उत्पन्न हो रही है कि बेहतर भविष्य के लिए जब कोई अपने पैतृक स्थान से बहुत ज्यादा दूर बस जाता है तो घर पर उनके वृद्ध माता- पिता की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। आज शहरी क्षेत्रों के पेइंग गेस्ट आवास और वृद्ध आश्रमों में जो मात्र कामचलाऊ व्यवस्था है। जहां देश के भावी कर्णधारों की और देश सेवा में अपना जीवन लगा चुके लोगों की देखभाल की उचित व्यवस्था का अभाव है। विकास भी समय की एक परम्- आवश्यकता है । अंकित-अंकिता की तरह यदि सभी नौजवानों को बाहर अभिभावक की छत्रछाया और स्थानीय स्तर पर वृद्ध लोगों की सेवा की व्यवस्था उनके पास में रह रहे लोगों के द्वारा स्थानीय स्तर पर ईमानदारी से हो जाए तो यह एक बहुत ही आदर्श स्थिति होगी।बाहर बच्चों को अभिभावक और बुजुर्ग लोगों को उनके बच्चों के तुल्य सेवाभाव करने वाले बच्चे मिल जाएं तो यह समाज के लिए बहुत ही हर्षदायक और लाभदायक स्थिति होगी। समाज में सामाजिक सौहार्द और प्रेमभाव का सुखद अनुभव यत्र तत्र सर्वत्र दृष्टिगोचर होगा।
अंकिता डॉक्टर साहब को बताना चाहती थी लेकिन अंकित ने उसे इशारे से चुप करा कर अपने मन के भावों की गठरी खोल दी।
"डॉक्टर साहब वह समस्या हल हो जाने पर ही तो हम यहां रुक पा रहे हैं। हमारे कस्बे के स्कूल में सुबोध अंकल आए हैं और उनके साथ में शांति आंटी यानी सुबोध अंकल की धर्मपत्नी भी हैं। वे दादाजी का पूरा ध्यान रख रहे हैं। अब पापा-मम्मी और हम दोनों भाई -बहन दादाजी की ओर से पूरी तरह निश्चिंत हैं। दादाजी भी अंकल-आंटी के व्यवहार से बहुत ही प्रसन्न हैं। हम लोगों ने पापा-मम्मी और दादाजी -अंकल-आंटी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग पर बात की थी। उनके चेहरे के हाव-भाव और आवाज़ की खनक से ही हम सबने आश्वस्त होने के बाद ही यह निर्णय लिया है। वह कहावत है न ' दर्पण झूठ न बोले'। चेहरे की भाव-भंगिमाएं दिल की वास्तविकता प्रकट कर देती हैं।"-इस बार अंकित ने यह खुशख़बरी प्रसन्नता के भाव प्रकट करते डॉक्टर साहब के साथ साझा की।
"यह तो बड़ी ही सुंदर और अनुकरणीय परम्परा है जिससे समस्या समाधान के साथ 'वसुधैव कुटुंबकम्' की सद्भावना व्यावहारिक रूप ले रही है। भारतीय दर्शन के मूल में'लोक: समस्त: सुखिनो भवन्तु' अर्थात् 'सभी लोकों में समस्त लोग सुखी हों',की सर्वकल्याण की भावना है।जो व्यक्ति जहां है वहां के सभी सभी लोगों के साथ अपने परिजनों जैसा व्यवहार कर सुख और समरसता के अनुभव का आदान-प्रदान करे।हर किसी को स्थानीय स्तर पर सेवा देने और लेने से सामाजिक वातावरण अत्यधिक आत्मीयतापूर्ण बनेगा।यही तो प्राचीन भारतीय आर्य संस्कृति रही है। रामायण में दिए गए वर्णन के अनुसार प्रभु श्री रामचन्द्र जी द्वारा वनवासियों ,रीछ-वानरों को एकजुट करके रावण जैसे महाशक्तिशाली और पराक्रमी को प्रयासरत करने का अति प्रशंसनीय और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया गया। आज भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का 'वोकल फार लोकल' का मंत्र इसी भावना से प्रेरित लग रहा है। जिसमें स्थानीय स्तर पर कुशल काम करने वाले, उत्कृष्ट उत्पादन करने वाले,स्थानीय उपभोक्ता और स्थानीय आपूर्तिकर्ता सुविधाजनक तरीके से समाज और देश के सर्वोत्कृष्ट विकास में अपनी-अपनी अग्रणी और महती भूमिका निभाते हुए योगदान दें। नए-नए अनुसंधानों और नई-नई टेक्नोलोजी पर सतत् ध्यान पूरी ईमानदारी से देना होगा। सभी के मन में ईर्ष्या का कोई स्थान होना ही नहीं चाहिए।हमारा हर साथी, पड़ोसी, परिजन,सम्बंधी समृद्ध और परोपकार की भावना से परिपूर्ण होना चाहिए। तभी तो हम एक-दूसरे के साथ सहायता का आदान-प्रदान कर सकेंगे।जिस प्रकार हर व्यक्ति अपने शरीर के हर अंग-उपांग को एक समान रूप से ह्रष्ट-पुष्ट और सामर्थ्यवान देखना चाहता है ठीक वैसे ही समाज की हर इकाई अर्थात हर व्यक्ति साधन व सद्भावना सम्पन्न होना समाज,देश एवं समस्त भूमंडल के लिए हितकर होगा। तुम लोग भी अपने आसपास के बच्चों की लगातार उनके शिक्षण कार्य में सहयोग-सहायता करते एक बहुत अच्छी अनुकरणीय परंपरा का निर्वहन कर रहे हो।इसके लिए तुम दोनों ही बहुत-बहुत बधाई के पात्र हो।"-डॉक्टर साहब ने उनके स्वभाव की प्रशंसा करते हुए कहा।
डॉक्टर साहब के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर अंकिता बोली-"बांटन वारे को लगै, ज्यों मेंहदी को रंग 'वाली सीख के अनुसार उन्हें शिक्षण में मदद करने में हमारा अपना ही तो ज्ञान बढ़ता है।"
"बिल्कुल सही है।इसी को तो कहते हैं -एक पंथ दो काज।"-अंकित ने अंकिता के वक्तव्य से पूर्ण सहमति जताते हुए कहा।
अंकिता ने अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए डॉक्टर साहब से पूछा-"डॉक्टर अंकल,हम आपकी राय जानना चाहते हैं कि कई लोगों का विचार है कि जब लाॅकडाउन जब हटाना ही था तो फिर इसे लगाकर लोगों को मुसीबत में क्यों डाला गया? या लगाने के बाद जब कभी संक्रमण के नये केस तीव्र गति से अभी तक आ ही रहे हैं तो शिथिलता देने का अर्थ लोगों की जान जोखिम में डालना नहीं हुआ।"
डॉक्टर साहब ने समझाते हुए कहा-"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों काम है कहना। इस दुनिया में दो तरह के लोग अपने वक्तव्य देते हैं पहली श्रेणी में ऐसे लोग होते हैं जिनके कहने लायक कुछ सारगर्भित तथ्य होते हैं। दूसरी श्रेणी उन लोगों की होती है जिन्हें केवल कुछ कहना ही होता है। कभी- कभार उन्हें स्वयं भी नहीं मालूम होता है कि उन्होंने क्या कहा और क्यों कहा?कुछ लोगों को केवल विरोध ही करना होता है इसलिए वे हर क़दम का विरोध करेंगे ही करेंगे,चाहे दूसरा कुछ भी करे। कुछ की समझ की सीमा ही सीमित होती है तो इसके लिए कदाचित उन्हें दोष देना अनुचित होगा। कुछ को दूसरे की प्रशंसा हज़म नहीं होती है तो कुछ तत्कालीन अथवा दूरगामी परिणामों के बारे में चिन्तन किए बिना वक्तव्य देकर जनमानस की हॅऺसी के पात्र बनते हैं। दूसरे भविष्य का पूर्वानुमान अनिश्चित होता है जो हमारे अनुमान पर कितना खरा उतरेगा यह समय आने पर ही पता लगता है। पर आशा ही जीवन है।जन भागीदारी अति महत्त्वपूर्ण है। हमें अपने नियोजित कार्यक्रम की सफलता हेतु अपना शत-प्रतिशत आशावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए निर्देशों का पूरे मनोयोग से पालन का ईमानदारी से प्रयास करते रहना चाहिए। लाॅकडाउन का लाभ यह रहा कि हमें अपनी तैयारी का पर्याप्त समय मिला। हमने 'व्यक्तिगत सुरक्षा किट', मास्क, नई परीक्षणशालाओं का निर्माण-विस्तार,नए कोविड सहायता केंद्र, अस्पताल, क्वैरेण्टाइन केंद्र, दैनिक परीक्षण क्षमता का उत्तरोत्तर विकास किया जिससे कारण आज हम विश्व के अनेक देशों से बेहतर स्थिति में हैं जिसके कारण वैश्विक स्तर पर हमारी रणनीति और कार्ययोजना की प्रशंसा हो रही है।इस अवधि में हमारे देश में ऐसी चीजों का उत्पादन प्रारंभ किया गया जिनके लिए हम दूसरे देशों पर निर्भर थे। आज हम अपनी आवश्यकता को पूरा कर कई चीजों का दूसरे देशों को निर्यात कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश हमारे अपने ही देश के कुछ लोगों को यह प्रशंसा पच नहीं पा रही है और उलूल-जुलूल वक्तव्य भी आ जाते हैं। आज भी कितने लोग सुरक्षा उपायों को दरकिनार करते हुए दिखाई देते हैं ,पर अधिकांश लोगों में जागरूकता आई है वे स्वयं न सिर्फ इन उपायों को अपना रहे हैं बल्कि वे दूसरों को भी जागरूक करने हेतु पूरी दम खम के साथ लगे हुए हैं।जन जागरूकता यदि इस स्तर की न होती तो वर्तमान स्थिति बहुत ज्यादा भयावह होती। कोरोना संक्रमण की दवा या वैक्सीन अनुसंधान का कार्य सारी दुनिया में युद्ध स्तर पर चल रहा है। वर्तमान वर्ष दो हजार बीस के अंत यह शुभ समाचार मिलने की हम सबको आशा करनी चाहिए।"
अंकित ने पूछा-"संक्रमण उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद यह सेकण्ड वेव का क्या सिद्धांत है? कहा जा रहा है कि यह पहली वेव से ऊंची भी हो सकती है और नीची भी, ऐसा क्यों और कैसे?"
डॉऺक्टर साहब ने समझाते हुए बताया-"लोगों में जन जागरूकता और संक्रमण के बढ़ते लोगों के शरीर में पैदा होने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण एक उच्चतम स्तर पर संक्रमितों की संख्या पहुंचने के बाद इसमें गिरावट आएगी। गिरावट आने पर लोगों के मन में सावधानियां को बरतने में शिथिलता आ सकती है। यह शिथिलता कितनी मात्रा में होगी उस पर ही अगली वेव का स्तर होगा। यदि लोग पूरी तरीके से जागरूक रहें और निर्देशों का भली-भांति अनुपालन करें तो अगली वेव न के बराबर या बहुत नीची रहेगी किंतु अगर यदि लोगों ने सावधानियां दरकिनार करके अधिक लापरवाही की तो दूसरी वेव पहली वेब से काफी ऊंची भी हो सकती है तो यह जनता के व्यवहार और समझदारी पर भी निर्भर करेगा। संक्रमण काफी तेजी से बढ़ने और संक्रमितों की संख्या बहुत ज्यादा होने पर अधिकांश लोगों शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इतनी अधिक हो जाएगी उन पर वायरस का असर या तो नहीं होगा या फिर न के बराबर होगा। वैक्सीन में भी तो संबंधित बीमारी के बहुत ही कमजोर या मृत रोगाणु होते हैं जब यह शरीर के अंदर प्रविष्ट होते हैं तो इनके खिलाफ मानव शरीर उसे लड़ने के लिए एण्टीबॉडीज बनाता है । इस कारण वैक्सीनेशन के बाद वह बीमारी या तो होती ही नहीं है या होती भी है उसके संक्रमण की गंभीरता काफी कम होती है। ज्यादातर लोगों के संक्रमित होने के बाद सबकी शरीर इसकी संक्रमण से बचाव के लिए आवश्यक एंटीबॉडी से लैस होंगे। संसार के वातावरण में अनेक बीमारियों के रोगाणु हैं जो केवल उन पर ही आक्रमण करते हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।जिनकी रोग रोधक क्षमता अच्छी है उन पर संक्रमण का असर या तो होता ही नहीं है या होता है तो न के बराबर होता है वे संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो जाते हैं। सामान्य रूप से संक्रमण होने या वैक्सीन देने के लगभग एक सप्ताह में एण्टीबाडीज बनने शुरू हो जाते हैं"
हाथों की सफाई के लिए साबुन और सैनिटाइजर के प्रयोग के बारे में अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अंकिता ने पूछा-"डॉऺक्टर साहब, हाथों की सफाई के लिए साबुन का प्रयोग ,बीस सेकंड या फिर सैनिटाइजर के प्रयोग के पीछे क्या सिद्धांत है?"
डॉक्टर सुभाष बोले-"अंकिता बेटे, इस वायरस का जेनेटिक मैटेरियल वसा यानी चर्बी की एक परत से घिरा होता है साबुन से हाथ धोने पर बीस सेकंड में यह पर्त गल जाती है और जेनेटिक मैटेरियल एक साथ न रहकर मुक्त हो जाता है फिर यह जेनेटिक मैटेरियल कुछ नहीं कर सकता इसलिए साबुन से हाथ कम से कम बीस सेकंड धुले जाने चाहिए ताकि यह पर्त नष्ट हो जाए। साबुन इसका बेहतर विकल्प है। सैनिटाइजर का प्रयोग साबुन और पानी की उपलब्धता न होने पर ही किया जाना चाहिए । सैनिटाइजर के अधिक प्रयोग से त्वचा में सूखापन हो सकता है या कुछ लोगों की त्वचा को अल्कोहल से एलर्जी होने पर त्वचा की समस्या होने का भी खतरा है। सैनिटाइजर का प्रयोग सिर्फ उसी स्थिति में किया जाना चाहिए जहां साबुन और पानी से हाथ धोना संभव न हो।"
अंकित ने संक्रमण के खतरे के बारे में जानने के लिए डॉक्टर साहब से पूछा-"क्या संक्रमण का खतरा स्त्री -पुरुष में एक समान है या किसी में संक्रमण का कुछ अधिक जोखिम है।"
डॉक्टर सुभाष जी ने उसकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए बताया-"अभी तक अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार पुरुषों में पाया जाने वाला टेस्टेस्टेरोन हार्मोन एक इम्यूनोसपरेसिव हार्मोन है और महिलाओं में पाया जाने वाला एस्ट्रोजन एक इम्यूनोइन्हेंसिंग हार्मोन है। इस सिद्धांत के अनुसार महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों की तुलना में अच्छी होती है इस प्रकार वे पुरुषों की तुलना में संक्रमण से बचने में ज्यादा समर्थ हैं। हमारी मन: स्थिति भी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करती है। हमारा प्रसन्नचित रहना शरीर में सेरोटोनिन नामक हार्मोन के संतुलित मात्रा में स्राव को नियंत्रित करता है। बहुत ज्यादा खराब मन:स्थिति में इसका कम स्राव अवसाद ग्रस्त कर देता है। जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है।"
अंकित ने अनलॉक के दौरान लोगों के बदले व्यवहार पर चिंता व्यक्त करते हुए डॉक्टर साहब से कहा-"डॉक्टर साहब , जिस तरह से ट्रैफिक के नियमों की अवहेलना ,लोग हेलमेट का प्रयोग केवल चालान बचाने के लिए करते नजर आते थे ।अब वही स्थिति मास्क की हो रही है ।कुछ लोग बिना मस्तक ,नहीं -नहीं, बिना मास्क के घूम रहे हैं या उन्होंने मास्क लगाया है तो नाक और मुंह दोनों खोल रखे हैं ।ऐसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिए?"
डॉक्टर साहब अपनी हंसी रोक नहीं पाए और हंसते हुए बोले-"अंकित, तुमने गलती से ही सही लेकिन एकदम सही बात कही है सरकार आर्थिक गतिविधियों के लिए ढील दे रही है लेकिन रोगाणु और संक्रमण कोई ढील नहीं देंगे। ऐसे लोगों को को बिना मस्तक वाला कहना ज्यादा सटीक होगा।अब यह जागरूक लोगों की ही जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों को ठीक तरीके से समझाएं। पर समझाते समय चिड़िया और बंदर वाली कहानी भी ध्यान में रखनी है । कहीं चिड़िया बंदर को उपदेश देकर अपने घोंसले से भी हाथ न धो बैठे। वैसे इक्का-दुक्का ऐसी दुर्घटनाओं के भी समाचार आ रहे हैं कि किसी व्यक्ति ने मास्क आदि के लिए टोका तो पता चला कि उसने उसकी बात मानने की बजाय समझाने वाले को ही ठोका।"
थोड़ा सा ठहर कर डॉक्टर साहब फिर बोले-"स्कूल बंद हैं,बच्चों को स्कूल जाने की चिंता नहीं है । ऐसे में वह मोबाइल पर देर रात तक व्यस्त रहते हैं, सुबह देर तक सोते हैं अधिकांश लोग भूल जाते हैं कि कहा गया है ' अर्ली टू बेड एण्ड अर्ली टू राइज,मेक्स ए मैन हेल्दी, वेल्दी एंड वाइज।'यह स्थिति भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए रात को समय से सोना और प्रातः जल्दी उठना आवश्यक है। सभी लोग संतुलित पौष्टिक भोजन नियमित समय पर लें ,व्यायाम और योगा , उचित मात्रा में सोना जैसी गतिविधियों को अपनी दिनचर्या में स्थान दें । इक्कीस जून अर्थात अंतरर्राष्ट्रीय योग दिवस निकट है।' योगा ऐट होम एण्ड योगा विद फैमिली' वर्ष 2020 की थीम है। सभी लोग अपनी दिनचर्या को नियोजित करें।घर से बाहर कर अत्यावश्यक होने पर ही निकलें। यह सामाजिक- दूरी वाला टर्म उचित नहीं है इसकी जगह पर शारीरिक- दूरी होना चाहिए।' दो गज दूरी -बड़ी जरूरी' इस सिद्धांत को सभी अपनाएं ताकि हम सबको सुरक्षित रखते हुए स्वयं भी सुरक्षित और स्वस्थ रहें।तो हमें संतोष देने वाले समाचार मिलते रहेंगे। जैसे इस समय एक प्रसन्नता दायक समाचार है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में आठवीं बार भारत को अस्थाई सदस्य के रूप में दो वर्ष के लिए चुना गया है।"
अंकित के फोन की घंटी बजी अंकित ने देखा और बोला-"दादा जी का फोन, इस अमूल्य जानकारी के लिए डॉक्टर साहब आपका हम दोनों की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद। हम आपके इन विचारों को आपकी चेतावनी का ध्यान रखते हुए प्रसारित करते हुए लोगों को जागरूक करते रहेंगे ।"
दोनों ने सिर झुका कर और दोनों हाथ जोड़कर डॉक्टर साहब को बड़ी श्रद्धा के साथ प्रणाम किया और डॉक्टर साहब ने भी देवताओं सी आशीर्वाद वाली मुद्रा में आते हुए उन दोनों को बड़े ही स्नेह साथ आशीर्वाद दिया और दोनों भाई बहन अपने मुंहबोले दादाजी- दादीजी की सेवा में उपस्थित होने के लिए चल पड़े।