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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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कोरा काग़ज़

कोरा काग़ज़

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आज जब अलमारी की सफाई करने बैठी तो न जाने कितनी ही ऐसी चीजें हाथ में आई जिनको कभी इस्तेमाल भी नहीं किया गया। ये चीजें या तो किसी शादी का शगुन थीं या शौक-शौक में पहली नजर की पसंद बनकर घर की इस अलमारी में जगह बना चुकी थी। ऐसी ही एक चीज जो मेरी ज़िंदगी का एक अनछुआ पहलू थी, मेरे आँचल में आ गिरी।

वो एक कोरा काग़ज़ था, सिर्फ कहने के लिए क्योंकि उस पर तो मोहन के प्यार की एक अनदेखी दास्ताँ लिखी हुई थी जो सिर्फ मैं ही पढ़ पाई थी और जो मेरी शादी में उसके प्रेम का शगुन था, जिसे वो कभी भी अपने शब्द न दे सका और यह काग़ज़ कोरा ही रह गया।


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