Sneha Dhanodkar

Drama

3.4  

Sneha Dhanodkar

Drama

कन्टोन्मेंट एरिया और हम

कन्टोन्मेंट एरिया और हम

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कन्टोन्मेंट एरिया मे रहने का दर्द। तीन दिन पहले सुबह सुबह ज़ब पुलिस और डॉक्टर की टीम आयी तो पता लगा सामने वाले घर मे अंकल जी कोरोना पॉजिटिव आये है। सोच कर ही दिल दहल गया।। सबसे पहले ख्याल आया उनके घर मे दो दो छोटी बच्चियों का। उनके घर मे उनका बेटा, पत्नी और दो बेटियां है। एक की बच्ची सवा साल की है और दूसरी की अभी कुछ दो माह पहले ही डिलीवरी हुयी है यानि दो माह की बच्ची। अंकल को तो अस्पताल ले गए। बाकी सब घर मे थे। दिन भर पुलिस और डॉक्टर्स का आना जाना लगा रहा। मीडिया वाले भीं सारे समय मौजूद रहे। पुरे मोहल्ले मे एक एक घर मे पूछताछ हुयी। डॉक्टर्स ने दिलासा दिया और समझाइश दी घर मे रहने की।

उनके घर मे सबके टेस्ट सैंपल लिये गए उन छोटी बच्चियों के भीं। शाम तक हमारी गली फेमस हो गयी। 

शाम को सब खाना पूर्ति होने के बाद हमारी गली सील कर दी गयी। दोनों ओर से। ना कोई अंदर आएगा ना बाहर जायेगा। घर मे बच्चे ओर बुजुर्ग होने के कारण हम काफ़ी डर गए। दरवाजे खिड़किया सब बंद करके दुबक गए घर मे।  

खिड़की के शीशों से नजर सामने वाले घर पर ही जा रही थी। हम महसूस कर रहे थे जीतना डर हम सब लोगो को लग रहा था उतने ही आराम मे उस घर के लोग बाहर घूम रहे थे। 

गैलरी मे घूम रहे थे, पौधों को पानी दे रहे थे।उनका लड़का हस कर फ़ोन पर सबसे बात कर रहा था। उन लोगो को देख कर लग रहा था मानो कुछ हुआ ही ना हो।

और हम जैसे दहशत मे घरो मे बैठे थे। बस यही सोच रहे थे की है भगवान उनके घर मे बाकी सब की रिपोर्ट नेगेटिव आये। बड़ी मुश्किल से रात बीती।सुबह आलम सारे पड़ोसियों के लिये बदला हुआ था। सबके घर बंद थे।। बस खुला था तो वो घर जहाँ कोरोना पॉजिटिव वाला लाल स्टिकर लगा हुआ था। ना कचरे वाला आया ना अख़बार वाला। गली की सफाई भीं नहीं हुयी। यहाँ तक की जो टीम चेकिंग के लिये आयी थी वो अपने ग्लव्स भीं सड़क पर ही फेंक गए थे। दूध वाला भीं दस बार फ़ोन करने पर आया वो भीं गली के किनारे पर।वहाँ पर जाकर दूध लेना पड़ा। उसमे भीं डर लगा हुआ था। 

एक अजीब सी मनस्तिथि हो गयी थी। दो दिन यही हाल रहा। हम सब घर के अंदर और जिनके घर का मरीज पॉजिटिव वो लोग आराम से घूम रहे थे। जबकि उन्हें निर्देश दिए गए थे की वो घर मे ही रहे।  

उनके घर का कचरा अलग से ले जाया जायेगा पर वो सुनने को तैयार ही नहीं थे। प्रशासन तक खबर पहुचायी गयी की वो लोग घूम रहे है पर कोई नहीं आया। 

बड़ी मुश्किल से कंप्लेंट करने के बाद गली को सेनीटाइज़ किया गया। तीसरे दिन सुबह फिर एम्बुलेंस आयी।उनकी दोनों लड़कियो की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी वो दोनों को ले गए। दोनों की दुधमुंही बच्चियां उनकी नानी के पास थी घर मे।  

हमें लगा अब तो ये लोग सुधर जायेंगे। क्युकि हम और ज्यादा डर गए थे। पर पता नहीं किसी मिट्टी के बने हुए थे ये लोग। फिर शाम को उनका लड़का वो छोटी सी बच्ची को लेकर बाहर घूमता नजर आया।  

क्या इन बच्चियों की शक्ल देख कर उन लोगो को नहीं लगा की हमें अपनी सुरक्षा खुद करनी चाहिये। मुझे तो दया आ रही थी उन बच्चियों पर। 

अगले दिन सुबह फिर वही हाल वो लड़का फिर कचरा फेकने बाहर आ गया।  ये उन लोगों में है शायद की हम तो डूबेंगे ही। बाकी सबको भीं ले डूबेंगे।  मैंने ही सोच लिया की अब मैं कचरा डालने नहीं जाउंगी। ज़ब तक ये लोग यहाँ है या जब तक इनकी रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आ जाती।

गली की हालात तो पुराने कबाड़ख़ाने की तरह हो गयी थी। कचरे से भारी सुनसान सडके। ना कोई आने वाला ना जाने वाला। 

किसी एक की गलती की सजा हम सब भुगत रहे थे । वो भीं डर और दहशत के साये मे। और इतना होने के बाद भीं वो लोग नहीं सुधर रहे जिनके कारण सब दहशत मेँ है। पता नहीं आगे क्या क्या होगा। खैर उस घर के लोगो को छोड़ कर बाकी सब तो अपने घर मेँ दुबक गए है। देखे अब आगे क्या होता है।


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