कंबल
कंबल
सुमित अपने छोटे भाई को गोदी में लिए-लिए मंदिर की सीढ़ियों के बाहर खड़ा था। वह इंतजार कर रहा था कि अब की 25 दिसंबर उसे बिना रजाइ या कंबल के नहीं काटनी पड़ेगी।
मगर लाइन इतनी लंबी थी कि उसका नंबर आते आते कंबल बंट चुके थे। वह खड़ा रहा सीढ़ियों पर और देखता रहा उन्हें जिन्हें वह कंबल मिल चुका था।
उनके चेहरे की खुशियों को। उसकी गोद में उसका भाई रो-रो के उसको बोल रहा था, "कंबल भाई!! कंबल!!"
थोड़ी देर में उसे पता चला कि एक चर्च के बाहर भी कंबल बांट रहे हैं।
वह भाई को गोदी में लिए-लिए वहां भागा। वहाँ लंबी कतार में खड़ा हो गया और वहां खड़ा-खड़ा सेंटा से यही प्रार्थना कर रहा था कि, “मेरी भी 25 दिसंबर अच्छी बनाओ।" वहां भी लाइन इतनी लंबी थी कि उसने आस ही छोड़ दी थी कि उसे कंबल मिलेगा।
दोनों भाई चिपक कर जोर जोर से रो रहे थे। तभी पास से गुजरने वाले एक आदमी ने दोनों से पूछा, "क्यों रो रहे हो?”
सुमित बोला, “सेंटा सबको गिफ्ट देता है मगर मेरा सेंटा ना मंदिर में खड़ा है, न ही चर्च में। जो मुझे या मेरे भाई को एक कंबल तक दे सके।।”
उस आदमी को उन दोनों पर तरस आ गया। उसने अपनी जैकेट उतार कर उसे दे दी बोला, "सेंटा इतने लोगों को गिफ्ट दे रहा था न तो तुम तक आते-आते लेट हो गया उसने मुझे यह दिया था, तुम बहुत देर से आए न।।”
सुमित रोते-रोते बोलने लगा, “हां शायद हम दोनों ही देर से आए।।”